महिला एवं बाल अपराध नोट्स
Women and child crime notes, Rajasthan police notes, types of law.
बच्चों से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धाराएं
धारा 82
इस धारा के अनुसार 0 से 7 वर्ष की आयु वर्ग वाले बालक द्वारा कोई भी किया गया अपराध, अपराध की श्रेणी में नहीं माना जाएगा क्योंकि इस वर्ष तक के बच्चों की मानसिक क्षमता इतनी व्यापक नहीं होती कि वह समझ पाए कि अपराध क्या होता है।
धारा 83
इस धारा के अनुसार 0 से 12 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों द्वारा यदि कोई अपराध किया जाए तो उसे अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं करेंगे यदि बालक मानसिक रूप से विकृत है।
धारा 166 (B )
इस धारा के अनुसार यदि कोई भी पीड़ित व्यक्ति, चिकित्सक के पास इलाज के लिए जाए और उसका इलाज करने से मना कर दिया जाए तो इस अपराध के लिए सीआरपीसी की धारा 357 (C) के तहत 1 साल की सजा का प्रावधान होगा।
धारा 305
किसी भी बालक द्वारा आत्महत्या व आत्मदाह का प्रयास करना अपराध माना जाएगा। (सजा 7 वर्ष)
धारा 326
किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी प्रकार के रासायनिक पदार्थ (जैसे - तेजाब आदि) से किसी भी व्यक्ति पर हमला करना अपराध माना जाएगा। (सजा 10 वर्ष)
धारा 326 (A)
इस धारा के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति यदि जानबूझकर तेजाब या किसी अन्य रासायनिक पदार्थ से हमला करता है तो कानून संशोधन अधिनियम 2005 के अनुसार आजीवन कारावास का प्रावधान है।
धारा 326 (B)
यदि किसी व्यक्ति द्वारा तेजाब इत्यादि से हमला करने का प्रयास किया जाए तो न्यूनतम 5 वर्ष और अधिकतम 7 वर्ष सजा का प्रावधान है
धारा 369
इस धारा के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी शिशु का अपहरण इस उद्देश्य से किया गया हो कि शिशु का कोई भी शारीरिक अंग चुराया जाए तो यह अपराध होगा। (सजा 5 वर्ष)
बच्चों के लिए ऑनलाइन पोर्टल -
1. खोया पाया ऑनलाइन पोर्टल -
• इस ऑनलाइन पोर्टल पर यदि किसी बच्चे का अपहरण हुआ हो, तो उससे संबंधित शिकायत यहां दर्ज करवाई जाती है।
2. स्वयं ऐप
12 जनवरी 2017 से महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा शुरू
• इसमें बच्चों से संबंधित सभी योजनाओं का विवरण होता है।
• यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जिसके माध्यम से छात्र विभिन्न बैंकों और संस्थानों द्वारा दिये जाने वाले शिक्षा ऋण और सरकारी छात्रवृत्ति के बारे में एक साथ जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
• यह पोर्टल RTE 2009 के अंतर्गत संचालित है।
बच्चों से संबंधित कानून
1. बाल एवं किशोर श्रम निषेध और नियमन अधिनियम 1986
• इस अधिनियम के अंतर्गत बालक की उम्र के पड़ाव
0 से 15 वर्ष आयु वर्ग - बालक
15 से 18 वर्ष - किशोर
18 वर्ष से अधिक - व्यस्क
इस अधिनियम की धारा 3 के तहत 14 वर्ष तक की आयु वर्ग के बालक से किसी भी प्रकार का 10 एवं गैर-खतरनाक कार्य कराना संज्ञेय अपराध है।
इस अधिनियम में बच्चों की दो श्रेणियां बनाई गई है।
• 14 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए परिवार से जुड़े व्यवसाय को छोड़कर विभिन्न क्षेत्रों में काम करने पर पूर्ण रोक का प्रावधान किया गया है। यह संगठित और असंगठित क्षेत्र दोनों पर लागू होता है।
• ऐसे किशोर जिन्होंने 14 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो तथा 18 वर्ष की आयु पूरी न की हो, उन्हें खतरनाक माने जाने वाले उद्योगों को छोड़ कर दूसरे कारोबार में कुछ शर्तों के साथ काम करने की छूट मिल जाएगी।
अधिनियम में सजा का प्रावधान
यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करें तो न्यूनतम ₹20 हजार और अधिकतम ₹50 हजार जुर्माना
तथा न्यूनतम 6 माह और अधिकतम 2 वर्ष सजा का प्रावधान है।
अपराध की पुनरावृति हो तो न्यूनतम सजा 1 वर्ष तथा अधिकतम सजा 3 वर्ष
नोट - यदि अभिभावक या माता-पिता द्वारा बाध्य किया जाए वे भी दोषी होंगे।
• अभिभावक को पहली बार माफ कर दिया जाता हैं परंतु दूसरी बार ₹10000 का जुर्माना लगाया जाता है।
नोट - सरकार को यह अधिकार है, कि वह नियम बनाकर 14 से 18 वर्ष के बच्चों के लिए कार्य करने की अवधि या कार्य करने के प्रकार का निर्धारण कर सकती है।
अपराध में न शामिल की गई श्रेणियां
1. परिवार तथा परिवारिक व्यवसाय में स्कूल के बाद बच्चा सहयोग कर सकता है, यदि व्यवसाय खतरनाक न हो
2. श्रव्य दृश्य उद्योग (फिल्म उद्योग) में यदि वह सुरक्षा के सभी मानक पूरे करें।
3. खेल गतिविधियों में भाग लेना।
2. बाल व किशोर श्रम पुनर्वास निधि
इस निधि में जुर्माने की राशि जमा की जाती है। इसका प्रयोग पीड़ित बच्चों के पुनर्वास के लिए किया जाता है।
बाल श्रम से जुड़े हुए अनुच्छेद -
अनुच्छेद 23 - बाल श्रम व मानव व्यापार का निषेध
अनुच्छेद 24 - खतरनाक गतिविधियों में 14 वर्ष से कम बच्चों की नियुक्ति निषेध
अनुच्छेद 34 - बालकों के विकास की नैतिक जिम्मेदारी सरकार की होगी
अनुच्छेद 21 (A) - 6 से 14 वर्ष बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार
बाल श्रम रोकने के लिए चलाए गए अभियान
• बाल कौशल योजना
• मजदूरी से शिक्षा की ओर अभियान
• बचपन योजना - यह योजना भीख मांगने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए है।
बाल श्रम की स्थितियां
बालक को शाम 7:00 बजे से सुबह 8:00 बजे तक नियुक्त नहीं किया जा सकता।
सप्ताह में 1 दिन अवकाश होना जरूरी है।
अधिकतम 6 घंटे कार्य करवाया जा सकता है (विश्राम समय जोड़कर), लगातार 3 घंटे कार्य पर एक घंटा विश्राम अनिवार्य है।
3. किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015
नोट - बच्चों के लिए हेल्पलाइन नंबर 1098
किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) अधिनियम, 2018
यह एक्ट अनाथ, छोड़ दिए गए और सरेंडर किए गए बच्चों (माता-पिता ने जिनसे अपना कानूनी अधिकार छोड़ दिया है) के घरेलू और इंटर कंट्री एडॉप्शन की व्यापक प्रक्रिया का प्रावधान करता है।
एडॉप्शन अर्थात गोद लेना एक कानूनी प्रक्रिया है, जिसमें कोई बच्चा अपने दत्तक (एडॉप्टिव) माता-पिता का कानूनी बच्चा बन जाता है और इस प्रकार अपने जैविक माता-पिता से स्थायी रूप से अलग हो जाता है।
6 अगस्त, 2018 को किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) संशोधन बिल, 2018 लोकसभा में पेश किया गया था।
यह बिल एडॉप्शन की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को एडॉप्शन के आदेश देने की शक्ति प्रदान करता है।
गौरतलब है, कि किशोर न्याय अधिनियम वर्ष 2000 में लागू किया गया था, जिसे 2006, 2011 व 2015 में संशोधित किया गया।
4. बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006
10 जनवरी 2007 को मंजूरी
उद्देश्य - भारत में बढ़ते बाल विवाह को रोकने के लिए
यह अधिनियम 1 नवंबर 2007 से लागू हुआ तथा इस अधिनियम के अंतर्गत विवाह से पहले पुरुष की आयु 21 वर्ष तथा लड़की की आयु 18 वर्ष होना आवश्यक है एवं इनका उल्लंघन करने पर 2 वर्ष की सजा तथा 1लाख रुपये का जुर्माना लगेगा।
नोट - यदि कोई व्यक्ति बाल विवाह की सूचना देता है, तो उसे इनाम दिया जाता है।
बाल विवाह में उपस्थित होना भी एक दंडनीय अपराध है। सजा 2 वर्ष एवं 1लाख रुपये का जुर्माना
जब बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 को लागू किया गया, तब शारदा एक्ट (बाल विवाह अवरोधक अधिनियम 1929) (28 सितंबर 1929 को आया) को निरस्त कर दिया गया।
5. पॉक्सो एक्ट 2012
(Protection of Children from Sexual Offences Act)
यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम 2012
1 जून 2012 को यह अधिनियम पारित हुआ।
14 नवंबर 2012 को लागू हुआ।
• इस अधिनियम के अंतर्गत 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को बालक के रूप में परिभाषित किया गया है।
अपराध की श्रेणियां -
1. लैंगिक हमला - धारा 7
यदि किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी प्रकार का शारीरिक यौन उत्पीड़न के उद्देश्य से किसी भी बालक के साथ दुष्कर्म का प्रयास करना या जब कोई व्यक्ति लैंगिक आशय से किसी बालक के निजी अंगों को स्पर्श करता है अथवा बालक से स्वयं के अथवा किसी अन्य व्यक्ति के निजी अंगों को स्पर्श करने के लिए कहता है अथवा ऐसा करने का दबाव बनाता है, तो यह लैंगिक हमला होता है।
जब यह कृत्य किसी लोक सेवक या सरकारी विभाग के कर्मचारी द्वारा, चिकित्सा विभाग के अधिकारी द्वारा या किसी भी सरकारी कर्मचारी द्वारा किया जाता है, तो यह गुरुतर लैंगिक हमला कहलाता है।
3. प्रवेशन लैंगिक हमला - धारा 3
नोट - बच्चों से साक्ष्य 30 दिनों के अंदर प्राप्त किए जाएंगे।
धारा 3 - प्रवेशन लैंगिक हमला की परिभाषा
धारा 4 - प्रवेशन लैंगिक हमला के लिए सजा का प्रावधान
धारा 5 - गुरुत्तर प्रवेशन लैंगिक हमला की परिभाषा
धारा 7 - लैंगिक हमला
धारा 8 - लैंगिक हमला के लिए सजा का प्रावधान
धारा 11 - लैंगिक उत्पीड़न की परिभाषा
धारा 12 - लैंगिक उत्पीड़न के लिए सजा का प्रावधान
धारा 13 - बालक का अश्लील प्रयोजनों के लिए उपयोग
धारा 14 - अश्लील प्रयोजनों के लिए सजा का प्रावधान
यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम का दुरुपयोग करता है अर्थात गलत शिकायत दर्ज करवाता है, तो उसके लिए 6 माह की सजा का प्रावधान है।
नोट - इस अधिनियम के अंतर्गत विशेष न्यायालय बनाने का प्रावधान है। इन विशेष न्यायालयों की स्थापना राज्य सरकार तथा उच्च न्यायालय की सिफारिश से होती है।
वर्तमान में प्रत्येक जिले में सेशन न्यायालय को विशेष न्यायालय घोषित किया गया है।
न्यायालय सुनवाई को 1 वर्ष में पूरा करेगा, तथा सुनवाई पूर्ण रूप से एक गोपनीय तथा बंद कमरे में होंगी।
सुनवाई में बच्चे के साथ अभिभावक या अन्य कोई विश्वासपात्र हो सकता है।
मीडिया के द्वारा बच्चे की पहचान घोषित करने पर रोक है।
विशेष न्यायालय की अनुमति लेकर मीडिया बच्चे से संपर्क बना सकती हैं।
मीडिया अगर प्रावधानों का उल्लंघन करे तो छह माह की सजा का प्रावधान है।
अगर अपराध किसी बच्चे के द्वारा किया गया हो तो उसकी सुनवाई किशोर न्याय अधिनियम 2000 के अंतर्गत की जाएगी।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग तथा राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग इस अधिनियम की निगरानी रखेंगे तथा प्रावधानों को क्रियान्वित करेंगे।
नोट- इस अधिनियम के अंतर्गत अश्लील चलचित्रो तथा चित्रों का संग्रहण भी अपराध माना गया है।
यदि यह अपराध बच्चों के निकट संबंधी ने या किसी ऐसे व्यक्ति ने जिस पर बच्चा विश्वास करता हो या किसी सरकारी अफसर ने या चिकित्सक ने किया है, तो वे भी अपराधी की श्रेणी में आएंगे।
नोट - मानसिक रूप से अस्वस्थ बालकों के साथ होने वाले अपराध को भी इसी श्रेणी में रखा गया है।
न्याय की प्रक्रिया बच्चे के अनुकूल होनी चाहिए।
राज्य सरकार इस अधिनियम के संरक्षण हेतु एक विशेष लोक अभियोक्ता की नियुक्ति करती है।
बच्चे को प्राप्त अधिकार
• न्यायिक कार्यवाही के दौरान बालक की भावना या मर्यादा को ठेस पहुंचने वाला कोई भी प्रश्न नहीं पूछा जा सकता।
• क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकार
• सहज या मैत्रीपूर्ण वातावरण प्राप्त करने का अधिकार
• कार्यवाही बंद कमरे में करवाने का अधिकार
यदि एक बालक, अन्य बालक के साथ लैंगिक अपराधों का दोषी है, तो न्यायिक कार्यवाही किशोर न्यायिक बोर्ड के द्वारा की जाएगी।
यदि बालक दोषी पाए जाए तो उसके खिलाफ निम्न आदेश पारित किए जा सकते हैं -
• समझाइश या उचित सलाह देना
• अच्छे आचरण की सलाह देना
• समूह वार्ता में भाग लेने की सलाह देना
• न्याय संगत सेवा करने का आदेश देना (सुधार गृह में भेजना)
• सशर्त रिहाई का आदेश
अधिनियम में उल्लेखित संस्थाएं और उनके दायित्व -
1. बाल कल्याण संस्था
सूचना प्राप्त होते ही बालक का संज्ञान लेना
• अनाथ, परितयक तथा अभ्यपित बालक की संपूर्ण कार्यवाही तथा जांच के बाद मुक्त करने की घोषणा।
• बालक को समस्त कानूनी सेवाओं को उपलब्ध करवाना।
2. केंद्र व राज्य सरकार
• विशेष न्यायालयों की स्थापना करवाना
• अधिनियम की कमियों को दूर करना
• अधिनियम के प्रति जागरूकता फैलाना
• अधिनियम के बारे में प्रशिक्षण देना
3. न्यायालय
• कार्यवाही को 1 साल में पूरा करें
• न्यायिक प्रक्रिया के दौरान मैत्रीपूर्ण वातावरण उपलब्ध करवाना
• बच्चों की मर्यादा को व्यवस्थित रखने का कर्तव्य
• पीड़ित के अधिकारों का संरक्षण करना
• त्वरित न्याय प्रक्रिया संपन्न करना
हाल ही पॉक्सो एक्ट में किए गए संशोधन -
•12 वर्ष से कम उम्र की बच्ची के साथ बलात्कार की सजा फांसी की गई है।
•12 वर्ष से अधिक तथा 16 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ बलात्कार करने पर 20 वर्ष का कारावास या उम्रकैद या फांसी की सजा की गई है।
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