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राजस्थान की मिट्टियां

 
Soils of Rajasthan


राजस्थान की मिट्टियां

मृदा शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के सोलम (Solum) शब्द से हुई है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है - फर्श।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद - 1929 (नई दिल्ली)
ICAR - Indian Council of Agricultural Research.

पहले इसे पढ़ें 👉 भारत की मिट्टियां

राजस्थान की मृदा का सामान्य वर्गीकरण
• ICAR ने राजस्थान की मृदा को 8 मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया है।

1.रेतीली/शुष्क/बलुई/मरूस्थलीय मिट्टी
• निर्माण:- अधिक तापान्तर तथा बलुआ पत्थर व ग्रेनाइट के अपरदन से। 
• क्षेत्र:- जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर (JBBJ)
• मोटे कण होने के कारण इसकी जलग्रहण क्षमता कम होती है। (जल रिसाव अधिक)
इस कारण इसे बार-2 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। अतः इसे प्यासी मिट्टी भी कहा जाता है।
• फसल उत्पादन:- बाजरा (सर्वाधिक), ज्वार, मूंग, मोठ, चना, ग्वार।
• इस मृदा की निचली परतों में कैल्शियम के पिंड (कंकड़) की एक परत पाई जाती है।
• नोट:- राजस्थान में रेतीली मिट्टी का विस्तार सर्वाधिक है।

2. भूरी रेतीली मिट्टी
• निर्माण:- बलुआ पत्थर से।
• क्षेत्र:- पाली, नागौर, सीकर, झुंझुनू (PNSJ), जालौर, अजमेर
• इस मिट्टी में फॉस्फेट अधिक पाया जाता है।

3. लवणीय मिट्टी
• यह मृदा अधिक सिंचाई व रासायनिक उर्वरकों के अधिक प्रयोग वाले क्षेत्रों में पाई जाती है।
• क्षेत्र:- श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, बाड़मेर, जालौर।
• इन क्षेत्रों में वाष्पीकरण की अधिकता से केशिकत्व क्रिया होती है, जिससे मृदा की ऊपरी सतह पर लवणों की सांद्रता बढ़ जाती है। अतः इस मृदा की ऊपरी परत सफेद नजर आती है।
• इस मृदा में केवल लवण प्रतिरोधी फसल उगाई जा सकती है। जैसे - बरसीम (जानवरों का चारा), धान, गन्ना, अनार।
• मृदा की लवणीयता व क्षारीयता को कम करने के लिए जिप्सम व रॉक फास्फेट का उपयोग किया जाता है।
• इस मृदा को रेह/कल्लर/ऊसर भी कहते हैं।

4. लाल-पीली मिट्टी
• निर्माण:- ग्रेनाइट, शिस्ट व नीस चट्टानों के अपरदन से।
• क्षेत्र:- बनास बेसिन (UBC + ATSm)
उदयपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ (UBC), अजमेर, टोंक, सवाईमाधोपुर (ATSm)  
• रंग:- लौह तत्व (Fe) की अधिक मात्रा के कारण इसका रंग लाल होता है तथा जलयोजन के कारण इसका रंग पीला हो जाता है।
• फसल उत्पादन:- मूंगफली व कपास।

5. लेटराइट मिट्टी/लाल चिकनी/Red Laomi
• निर्माण:- प्राचीन स्फट्कीय (Crystalline) व कायांतरित चट्टानों के अपरदन से।
• क्षेत्र:- दक्षिणी उदयपुर, दक्षिणी राजसमंद, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ (BDP माही बेसिन)
• रंग:- लौह तत्व (Fe) की अधिक मात्रा के कारण इसका रंग लाल होता है। 
• फसल उत्पादन:-
मक्का की किस्म - माही कंचन, माही धवल।
चावल की किस्म - माही सुगंधा।

6. लाल-काली मिट्टी
• क्षेत्र:- पूर्वी उदयपुर, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, चितौड़गढ़, भीलवाड़ा।
• इसमें चूना, नाइट्रोजन (N) और फास्फोरस (P) की कमी पाई जाती है परंतु पोटाश पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
• इस मिट्टी में चीका (Clay) की अधिकता पाई जाती है।
• यह उपजाऊ मिट्टी है जिसमें मक्का, कपास, अफीम की खेती की जाती है।

7. काली मिट्टी/रेगुर/ज्वालामुखी मिट्टी
• निर्माण:- बेसाल्ट लावा के अपक्षय से।
• क्षेत्र:- हाड़ौती।
• यह मृदा चरनोजम मृदा के समान होती है।
• इस मिट्टी में Clay की मात्रा सर्वाधिक होती।
• बहुत बारीक कण (Clay) होने के कारण इसकी जलग्रहण क्षमता सर्वाधिक होती है तथा यह जल को लंबे समय तक धारण कर सकती है।
इस कारण एक बार सिंचाई के बाद लंबे समय तक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
• थोड़ी सी वर्षा होने पर यह फूलकर चिपचिपी हो जाती है तथा सूखने पर इसमें मोटी-2 दरारें पड़ जाती है। अतः इसे स्वत: जुताई मृदा भी कहते है।
• कपास की खेती के लिए उपयुक्त होने के कारण इसे काली कपासी मिट्टी (Black Cotton Soil) भी कहते है।
• फसल उत्पादन:- कपास, मसालें, सोयाबीन, गन्ना, चावल।

8. जलोढ़/दोमट/कछारी मिट्टी
• निर्माण:- नदियों के अवसादों से।
• क्षेत्र:- ABCD + जयपुर + दौसा + सवाईमाधोपुर
ABCD - अलवर, भरतपुर, करौली, धौलपुर।
• फसल उत्पादन:- गेहूं, सरसों, तंबाकू
• इस मृदा में पोटाश (K) अधिक पाया जाता है।
• जलोढ़ मिट्टी सर्वाधिक उपजाऊ होती है।

मृदा का वैज्ञानिक वर्गीकरण
• संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग (USDA) द्वारा।

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