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चर्चित विधेयक नवंबर 2020

 चर्चित विधेयक 2020


चर्चित विधेयक नवंबर 2020

राजस्थान में तीन कृषि संशोधन विधेयक
31 अक्टूबर को राजस्थान सरकार ने केंद्रीय कृषि कानूनों खिलाफ कानूनों के खिलाफ विधानसभा में तीन कृषि संशोधन विधेयक पेश किए।
• इन विधेयकों का उद्देश्य केंद्र द्वारा हाल ही में पारित कृषि कानूनों को निष्प्रभावी करना है।
• किसानों के उत्पीड़न पर कम से कम 3 साल की कैद और 5 लाख रूपए तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
1. कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) (राजस्थान संशोधन) विधेयक 2020
2. कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार (राजस्थान संशोधन) विधायक 2020
3. आवश्यक वस्तु (विशेष उपबंध और राजस्थान संशोधन) विधेयक 2020

निम्नलिखित विधेयक भी पेश किए गए -
• मास्क अनिवार्य करने के लिए महामारी संशोधन विधेयक 2020
• सिविल प्रक्रिया संहिता राजस्थान संशोधन विधेयक 2020
• पशु चिकित्सा पशु विज्ञान संशोधन विधेयक

मास्क को अनिवार्य 
राजस्थान, राज्य में मास्क को अनिवार्य करने का कानून बनाने वाला देश का पहला राज्य बना है। अब राजस्थान में सार्वजनिक स्थान, लोक परिवहन, निजी परिवहन, कार्यस्थल, सामाजिक और राजनीतिक समारोह में मास्क पहनना अनिवार्य होगा।
2 नवंबर को विधानसभा में राजस्थान महामारी अधिनियम 2020 की धारा-4 में संशोधन करने के बाद विधेयक पारित कर दिया गया।
प्रावधान - मास्क न पहनने पर 200 से ₹2000 तक के जुर्माने का प्रावधान है।
बार-बार उल्लंघन करने पर ₹10000 तक जुर्माना और 2 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है।
नया कानून लागू होने से 1957 से चला आ रहा राजस्थान संक्रमण रोग अधिनियम समाप्त हो जाएगा।

सरकारी गोपनीयता अधिनियम (Official Secrets Act) 
इस कानून को मूल रूप से ब्रिटिश शासन काल (1899 से 1905 तक) के दौरान लागू किया गया था। इस अधिनियम का एक मुख्य उद्देश्य समाचार पत्रों की आवाज को दबाना था।
भारतीय सरकारी गोपनीयता अधिनियम, 1923 द्वारा पूर्व में लागू अधिनियम को प्रतिस्थापित किया गया, और देश के प्रशासन में गोपनीयता संबधी सभी मामलों तक इसका विस्तार किया गया। 
जासूसी अथवा गुप्तचरी को अधिनियम की धारा 3 के तहत कवर किया गया है। अधिनियम की धारा 5 के तहत ‘सरकार की अन्य गोपनीय सूचनाओं का खुलासा’ कवर किया गया है। 
अधिनियम के अनुसार- किन दस्तावेजों अथवा जानकारी को ‘गोपनीय’ की श्रेणी में रखा जा सकता है, इसका निर्णय सरकार द्वारा किया जायेगा।

सीबीआई के लिए सहमति
सीबीआई दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (डीपीएसईए) द्वारा गठित है।
सीबीआई का मूल अधिकार क्षेत्र दिल्ली तक ही सीमित है।
सीबीआई को राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार में जांच करने के लिए उसकी अनुमति की आवश्यकता होती है परंतु अन्य एजेंसियों जैसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी के अधिकार क्षेत्र में पूरा देश आता है।

सीबीआई द्वारा जांच के लिए दो प्रकार की सहमति होती है -
1. सामान्य सहमति
2. विशेष अनुमति
• जब कोई राज है मामले की जांच के लिए सीबीआई को सामान्य सहमति देता है तो एजेंसी कार बार जांच के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है हालांकि जब सामान्य सहमति वापस ले ली जाती है, तो सीबीआई को हर मामले के लिए सहमति लेनी होती है।
• यदि विशिष्ट सहमति नहीं दी जाती है, तो सीबीआई अधिकारियों द्वारा राज्य में प्रवेश करने पर पुलिसकर्मियों को उपलब्ध नहीं कराया जाता है। ऐसे में सीबीआई को निर्बाध जांच में बाधा आती है।

हरियाणा में पंचायत सदस्यों को ‘वापस बुलाने का अधिकार’ संबंधी विधेयक पारित 
हरियाणा में राज्य विधानसभा द्वारा 6 नवंबर, 2020 को पंचायत सदस्यों को ‘वापस बुलाने का अधिकार’ (Right to recall) संबंधित विधेयक ‘हरियाणा पंचायती राज (द्वितीय संशोधन) विधेयक, 2020’ पारित किया गया।  
उद्देश्य:- पंचायत सदस्यों की मतदाताओं के प्रति जवाबदेही में वृद्धि करना।  
विधेयक में काम में विफल रहने वाले सरपंचों, ब्लाक समिति सदस्यों व जिला परिषद सदस्यों को कार्यकाल पूरा होने से पहले ही हटाने का अधिकार मतदाताओं को दिया गया है। 
इसके अंतर्गत, ग्रामीण निकायों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण का प्रावधान किया गया है। तथा पिछड़े वर्गों में ‘अधिक वंचित वर्गों’ को 8% आरक्षण प्रदान किया गया है।  
पंचायती राज निकायों के सदस्यों व सरपंच को वापस बुलाने हेतु कार्यवाही शुरू करने के लिए वार्ड अथवा ग्राम सभा के 50% सदस्यों को लिखित में देना होगा। इसके पश्चात, एक गुप्त मतदान कराया जायेगा, जिसमें ग्राम सभा के दो-तिहाई सदस्यों द्वारा जन प्रतिनिधि के खिलाफ मतदान करने पर उन्हें पदमुक्त कर दिया जाएगा।

राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस
भारत में 9 नवंबर को "राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस" मनाया जाता है, जिसे विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 (Legal Services Authorities Act 1987) को लागू करने के लिए मनाया जाता है।
कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 को 11 अक्टूबर 1987 को लागू किया गया था, जबकि अधिनियम 9 नवंबर 1995 को प्रभावी हुआ था। इस दिन की शुरुआत भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 1995 में की गई थी।

जांच में देरी पर अभियुक्त के पास जमानत का अधिकार 
सर्वोच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि 'जांच एजेंसी द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर जांच पूरी नहीं करने पर एक अभियुक्त को, उसके खिलाफ किसी भी दर्ज मामले के बावजूद, 'डिफॉल्ट' (default) या ‘अनिवार्य’ (compulsive) जमानत दी जानी चाहिए।  
अदालत ने माना कि अगर जांच एजेंसी समय पर जांच पूरी करने में विफल रहती है, तो एक अभियुक्त के पास आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 167 (2) के तहत डिफॉल्ट जमानत के लिए 'अविलोप्य अधिकार' (indefeasible right) है। 
धारा 167 के तहत, एक अभियुक्त को मृत्यु, आजीवन कारावास या 10 साल से अधिक की सजा वाले अपराध के लिए अधिकतम 90 दिनों की हिरासत में रखा जा सकता है। यदि जांच किसी अन्य अपराध से संबंधित है, तो अभियुक्त को 60 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता है। कुछ विशेष विधियों जैसे कि नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम में, हिरासत की अवधि 180 दिनों तक बढ़ सकती है।

अदालत की अवमानना 
अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 के अनुसार, अदालत की अवमानना या तो दीवानी अवमानना (civil contempt) या आपराधिक अवमानना (Criminal contempt) हो सकती है।  
दीवानी अवमानना का अर्थ है किसी भी निर्णय, निर्देश, आदेश, रिट या अदालत की अन्य विचाराधीन प्रक्रिया की जानबूझकर अवज्ञा या उल्लंघन। 
आपराधिक अवमानना किसी भी मामले के प्रकाशन (चाहे शब्दों द्वारा, शब्दों या लिखित या संकेतों द्वारा, या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा, या अन्यथा) से संबन्धित है, जो किसी भी अदालत के अधिकार को कम करने का प्रयास करता है; या हस्तक्षेप या किसी भी न्यायिक कार्यवाही के दौरान हस्तक्षेप करता है या बाधा डालता है। अदालत की अवमानना मामले में दोष सिद्ध होने पर छ: माह तक की साधारण कारावास, अथवा दो हजार रुपए तक का जुर्माना अथवा दोनों की सजा दी जा सकती है। आरोपी द्वारा माफी मांगने और इससे अदालत के संतुष्ट होने पर आरोपी की सजा माफ की जा सकती है।

उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020
प्रावधान :-
• यह होगी सजा और जुर्मानाछल कपट से, प्रलोभन देकर, बलपूर्वक या विवाह के लिए धर्म परिवर्तन के सामान्य
मामले में कम से कम एक वर्ष तथा पांच वर्ष अधिकतम सजा। कम से कम 15 हजार रुपये तक जुर्माना।
• नाबालिग लड़की, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की महिला का जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर कम से कम तीन वर्ष और अधिकतम 10 वर्ष तक कारावास। कम से कम 25 हजार रुपये जुर्माना।
• सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामलों में कम से कम तीन वर्ष और अधिकतम 10 वर्ष तक की सजा और कम से कम 50 हजार रुपये होगा जुर्माना।
उत्तर प्रदेश में लव जिहाद की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर यह कदम उठाया गया है।
अध्यादेश के अन्य प्रावधान
सामूहिक धर्म परिवर्तन के मामलों में शामिल संबंधित सामाजिक संगठनों का पंजीकरण निरस्त कर उनके
विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।
अध्यादेश के उल्लंघन की दोषी किसी संस्था या संगठन के विरुद्ध भी सजा का प्रावधान होगा।
जबरन धर्म परिवर्तन के मामलों में साक्ष्य देने का भार भी आरोपित पर होगा।
यह अपराध संज्ञेय अपराध की श्रेणी में होगा और गैर जमानती होगा। अभियोग का विचारण प्रथम श्रेणी
मजिस्ट्रेट की कोर्ट में होगा।
यदि किसी लड़की का धर्म परिवर्तन एक मात्र प्रयोजन विवाह के लिए किया गया तो विवाह शून्य घोषित किया
जा सकेगा।
पीड़िता या पीड़ित के अलावा उसके माता-पिता, भाई - बहन या रक्त संबंधी भी मामले में रिपोर्ट दर्ज करा सकेंगे।

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