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भारत की मिट्टियाँ। मृदा की समस्याएं

Indian Soils


मृदा सामान्य जानकारी

पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत Crust में मृदा पाई जाती है।

मृदा कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थों का मिश्रण होता है, जिसका निर्माण चट्टानों के अपक्षय तथा जीवांशों के सड़ने-गलने से होता है।

मृदा निर्माण की प्रक्रिया:- पेडोजिनेसिस (Pedogenesis)
मृदा के अध्ययन को क्या कहते है ? - पीडोलॉजी (Pedology)
मृदा विज्ञान (Pedology) का जनक:- V.V. डॉकुचेव (रूस)

मृदा का संगठन:-
• खनिज (45%) • वायु (25%)
• जल (25%)  • जैव पदार्थ/ह्यूमस (5%)

N(4) : P(2) : K (1)
• सभी मृदाओं में N की कमी होती है।
• P:- पानी के साथ बहता है। इसलिए वर्षा अधिक होने पर P कम।
परंतु शुष्क मृदा में P अधिक होता है।
• K:- लवण से प्राप्त होता है।
सभी मृदाओं में उचित मात्रा में होता है।

निक्षालन (Leaching)
जहां अधिक वर्षा होती है वहां मिट्टी के खनिज पदार्थ व पोषक तत्व पानी के साथ रिस रिसकर निचले स्तरों में चले जाते हैं, जिससे ऊपरी परत की उर्वरता घट जाती है।
जैसे:- केरल में पश्चिमी घाट पर अधिक वर्षा के कारण मिट्टी में उपस्थित सिलिका पदार्थ का निक्षालन हो गया है, जिसके कारण केरल में लेटराइट मिट्टी का निर्माण हुआ है।

केशिका/केशिकत्व प्रभाव (Capillary effect)
• जल में पृष्ठ तनाव का गुण होता है अर्थात पानी अपने क्षेत्र को बढ़ाना नहीं चाहता है।
यहीं कारण है कि जल की बूंद गोल होती है अर्थात नीचे छत पर जल की बूंद गिराने पर वह फैलती नहीं है, बल्कि बूंद (गोल) के रूप में वही रहती है।
जबकि पेट्रोल, केरोसिन गिरने के बाद फैल जाते हैं क्योंकि उनमें पृष्ठ तनाव का गुण नहीं पाया जाता है।
• पृष्ठ तनाव के कारण जल गुरुत्वाकर्षण के विपरीत दिशा में संकीर्ण नलियों में ऊपर चढ़ने का प्रयास करता है, जिसे केशिका क्रिया कहते हैं।
• भूमिगत जल में पानी के साथ चूना भी होता है। अतः जब भूमिगत जल का वाष्पीकरण होता है, तो केशिका क्रिया के कारण पानी के साथ-2 चूना भी मिट्टी की सतह पर आ जाता है।
पानी तो वाष्पीकृत होकर उड जाता है और चूना पदार्थ सतह पर शेष रह जाता है अर्थात सतह पर कैल्शियम (Ca) की परत बिछ जाती है और मिट्टी अनुपजाऊ हो जाती है।

ह्यूमस:-
• वनस्पतियों एवं जीवों के वे सड़े-गले भाग (जीवाश्म) जो मिट्टी में मिल जाते हैं, उन्हें ह्यूमस कहते हैं।
• ह्यूमस के निर्माण में सूक्ष्मजीवों (कवक, जीवाणु) की भूमिका होती है।
• ह्यूमस मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को बढ़ा देते हैं।

मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile)
• मृदा की ऊपरी सतह से आधारभूत चट्टान तक के ऊर्ध्वाधर काट को ‘मृदा परिच्छेदिका’ (Soil Profile) तथा मृदा की क्षैतिज परतों को ‘मृदा संस्तर’ (Soil horizon) कहते हैं।
• अर्थात् ऊपरी धरातल से लेकर नीचे स्थित अंतरिक्ष (unweathered material) तक भूमि की ऊर्ध्व काट मृदा परिच्छेदिका कहलाती है। 

मृदा के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक
1. निष्क्रिय कारक
• पैतृक शैल:- चट्टाने टूटती-फूटती रहती है, जिनसे मिट्टी को आधारभूत खनिज व पोषक तत्व मिलते है।
जैसे:- लावा चट्टानों से काली मिट्टी।
आग्नेय व कायांतरित चट्टानों से लाल-पीली मिट्टी का निर्माण होता है।

• उच्चावच (Relief) 
पर्वतीय ढाल वाले क्षेत्रों में अधिक अपरदन के कारण मृदा की पतली परत व समतल मैदानी क्षेत्रों में जमाव के कारण मोटी परत पाई जाती है।
• समय:- मृदा के निर्माण में जितना अधिक समय लगता है मृदा भी उतनी ही विकसित होती है।
• अवस्थिति (Location):-
(I) स्थानीय/क्षेत्रीय मृदा:-
ऋतु क्रिया के प्रभाव से विखंडित चट्टाने जब अपने मूल स्थान से नहीं हटती या बहुत कम हटती है, तो इस प्रकार से निर्मित मिट्टी को स्थानीय मिट्टी कहा जाता है। जैसे - दक्षिण भारत के पठारों पर।
इस मिट्टी में जनक चट्टानों के गुण पाए जाते हैं।
कण मोटे होते हैं।
अनुपजाऊ मिट्टी। 
परंतु लावा के अपक्षय से बनी काली मिट्टी उपजाऊ होती है।
अपरदन कम।
जल ग्रहण क्षमता कम।
मृदा परिच्छेदिका का निर्माण होता है।
उदाहरण:- लाल-पीली मिट्टी

(II) विस्थापित/स्थानांतरित/अक्षेत्रीय मिट्टी:-
नदी, हिमनद, पवन आदि के प्रभाव से विखंडित चट्टानों से बनी मिट्टी जब अपने मूल स्थान से हटकर दूर चली जाती है, तो इस तरह से निर्मित मिट्टी को विस्थापित मिट्टी कहा जाता है। जैसे - भारत के मध्यवर्ती मैदानों तथा तटीय मैदानों की मिट्टियां।
इस मिट्टी में जनक चट्टानों के गुण कम पाए जाते हैं।
कण बारीक होते हैं।
उपजाऊ मिट्टी। 
अपरदन अधिक।
जल ग्रहण क्षमता अधिक।
मृदा परिच्छेदिका का निर्माण नहीं होता है।
उदाहरण:- जलोढ मिट्टी।

2. सक्रिय कारक
• वनस्पति एवं सूक्ष्मजीव:-
वनस्पति ह्यूमस की मात्रा निर्धारित करती है।
वनस्पति अधिक होने पर ह्यूमस की मात्रा अधिक होती है।
जैसे:- पर्वतीय क्षेत्रों में (हिमालय, नीलगिरी)
सूक्ष्मजीव मृत पदार्थों का अपघटन कर ह्यूमस का निर्माण करते हैं।

• जलवायु (Climate):-
(I) वर्षा:- अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में निक्षालन क्रिया के कारण लेटराइट मृदा जबकि कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मरुस्थलीय (शुष्क) मृदा पाई जाती है।
(II) तापमान:- 
अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में जीवाणु सक्रिय होकर जैव पदार्थों को अपघटित करके ह्यूमस का निर्माण करते हैं।
कम तापमान वाले क्षेत्रों में जीवाणु कम सक्रिय होते हैं, जिससे ह्यूमस का निर्माण कम होता है।

नोट:- शुष्क क्षेत्रों (राजस्थान) में वाष्पीकरण अधिक होता है, जिससे मिट्टी में केशिका क्रिया होने लगती है और मिट्टी के ऊपर चूना (कैल्शियम) की परत बिछ जाती है, जो कि मिट्टी को अनुपजाऊ बना देता है।

रचना एवं गुणों के आधार पर मृदा का वर्गीकरण

1.जलोढ मृदा/कांप मृदा (Alluvial Soil)
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