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राजस्थान में पर्यावरणीय चुनौतियां। मरुस्थलीकरण। अकाल व सूखा

 
Desertification in Rajasthan


राजस्थान में पर्यावरणीय चुनौतियां

• राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है और यहाँ विशिष्ट पारिस्थितिक तंत्रों का विकास हुआ है। राज्य के पर्यावरण में  अत्यधिक विविधता है और मानवीय गतिविधियों से इस पर्यावरण की छेड़छाड़ में निरन्तर वृद्धि हो रही है। इसके कारण तथा अनेक प्राकृतिक कारणों से राज्य में पर्यावरण की अनेक समस्याएँ चुनौतियों के रूप में उभर कर आ रही है।जैसे:- मरुस्थलीकरण, सूखा और अकाल, वनोन्मूलन, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, जलाभरण (सेम) की समस्या, जल में फ्लोराइड के कारण फ्लोरोसिस होना।


मरुस्थलीकरण क्या होता है

• मरूस्थलीकरण का समान्य अर्थ है उपजाऊ एवं अमरूस्थली भूमि का क्रमिक रूप से मरूस्थली भूमि में परिवर्तित होना। 

• काजरी के पूर्व निदेशक HS मान के अनुसार, “मरूस्थलीकरण से तात्पर्य उन सभी प्रक्रियाओं के सामूहिक प्रभाव से है जिनके कारण एक विशेष पारिस्थितिक तंत्र में मूलभूत परिवर्तन आ जाता है तथा जिससे अमरूस्थली क्षेत्र मरूस्थल में परिवर्तित होने लगता है। यह जलवायु एवं जैविक तत्वों की क्रिया-प्रतिक्रिया का परिणाम होता है।”

• 1977 में, केन्या के नैरोबी में मरुस्थलीकरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCOD) आयोजित किया गया था।
• रियो सम्मेलन/पृथ्वी सम्मेलन 1992 में संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) नामक दस्तावेज जारी किया गया,  जो 17 जून 1994 को फ्रांस में लागू हुआ।
इसलिए 1995 से प्रतिवर्ष 17 जून को विश्व मरुस्थलीकरण और सूखा रोकथाम दिवस मनाया जाता है।

• 1994 में ही भारत UNCCD का हस्ताक्षरकर्ता देश बन गया।
• सतत् विकास लक्ष्य का क्रमांक 15 (भूमि पर जीवन (Life on land) मरुस्थलीकरण से संबंधित है।

 अंतरराष्ट्रीय मरुस्थल एवं मरुस्थलीकरण वर्ष:- 2006

• 2019 में भारत ने मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के पार्टियों के सम्मेलन (COP14) की मेजबानी की।
थीम:- Lets Grow the Future Together.

विश्व में मरुस्थल के प्रकार:-
1. गर्म एवं शुष्क मरुस्थल
2. अर्द्ध शुष्क मरुस्थल
3. तटीय मरुस्थल
4. शीत (ध्रवीय) मरुस्थल

मरुस्थलों की विशेषता
• वर्षा का अभाव। (15-25 सेमी वार्षिक वर्षा)
• तापमान की विसंगति (गर्म मरुस्थल में अत्यधिक व शीत मरुस्थल में निम्न)।
• मिट्टी में उर्वरकता व जैविक तत्वों का अभाव
• पशुओं के चारे का अभाव
• निरन्तर सूखा
• वन्य जीवों का अभाव
• बलुई रेतीली मिट्टी की अधिकता।

इसरो द्वारा मरुस्थलीकरण पर एटलस जारी
• भारत के मरुस्थलीकरण एवं भूमि अवनयन एटलस का नवीनतम संस्करण 17 जून 2021 को जारी किया गया।
• इसे अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, (ISRO, अहमदाबाद) द्वारा जारी किया गया है।
• एटलस 2018-19 की समय सीमा के लिए निम्नीकृत भूमि का राज्य-वार क्षेत्र प्रदान करती है।
• यह 2003-05 से 2018-19 तक 15 वर्षों की अवधि के लिए परिवर्तन विश्लेषण भी प्रदान करती है।


राजस्थान में मरुस्थलीकरण

• राजस्थान में मरूस्थल विकास का प्रमुख कारण अविवेकपूर्ण मानवीय क्रियाओं को माना जाता है। 

भारत के मरुस्थलीकरण एवं भूमि अवनयन एटलस 2021 के अनुसार:-
1.देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के विषय में मरुस्थलीकरण में सर्वाधिक योगदान राजस्थान (6.46%) का है। राजस्थान के बाद महाराष्ट्र (4.35%), गुजरात (3.12%), कर्नाटक (2.16%), लद्दाख (2.12%) स्थान पर है।

2. झारखंड के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 68.77% भाग (5.48 मिलियन हेक्टेयर) पर मरुस्थल है।
• झारखंड के बाद राजस्थान के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 62.06% भाग (21.23 मिलियन हेक्टेयर) पर मरुस्थल है।

राजस्थान में मरुस्थलीकरण (62.06%) में योगदान:-
1. वायु अपरदन (Soil Erosion) - 43.37%
2. वनस्पति निम्नीकरण - 7.64%
3. जल अपरदन - 6.21%
4. लवणीयता (Salinity) - 1.07%
5. शेष अन्य

• राजस्थान के मरुस्थल क्षेत्र में जनसंख्या:- 40%

• राजस्थान के 12 जिलें मरुस्थलीकरण से प्रभावित है।
जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर, श्रीगंगानगर, झुंझुनू, सीकर, चुरू, नागौर, पाली, जालोर, हनुमानगढ़।
• जबकि राष्ट्रीय कृषि आयोग के अनुसार 11 जिलें मरुस्थलीकरण से प्रभावित है।
जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर, जोधपुर, श्रीगंगानगर, झुंझुनू, सीकर, चुरू, नागौर, पाली, जालोर।

मरुस्थल का मार्च/मरु मार्च:-
• मरुस्थल के आगे बढ़ने (विस्तार होने) को मरुस्थल का मार्च कहते हैं।
• दिशा:- दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर।
• सर्वाधिक मरुस्थल का मार्च:- हरियाणा की ओर।
• मरुस्थलीकरण में सर्वाधिक योगदान बरखान बालुका स्तूप देते हैं।
• अरावली पर्वतमाला मरुस्थल के मार्च को रोकती है।
नोट:- वर्तमान में 12 जिलों के अतिरिक्त 5 जिलों (जयपुर, अलवर, अजमेर, राजसमंद, सिरोही) में भी मरुस्थलीकरण का प्रभाव देखा गया है।
कारण:- अरावली क्षेत्र में वनोन्मूलन, खनन तथा अजमेर के आसपास वाले क्षेत्र में अरावली का विस्तार कम है, जिसके कारण यहां से आने वाली हवाओं के कारण मरुस्थल का विस्तार हो रहा है।
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मरुस्थलीकरण वाली PDF में 1 Correction है।
• सीमावर्ती क्षेत्र विकास कार्यक्रम का वर्ष गलत है।
यह कार्यक्रम 7वीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) के समय शुरू किया गया था।
• 1 अपडेट:-
डांग क्षेत्र विकास कार्यक्रम का वर्ष सही लिखा है परंतु इसे 2005-06 में पुनः शुरू किया गया है। इस तथ्य को आप Add कर लीजिए।
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आगे के नोट्स (मरुस्थलीकरण रोकने के उपाय, सूखा एवं अकाल, बंजर भूमि विकास कार्यक्रम,...) सहित पूरी PDF टेलीग्राम ग्रुप DevEduNotes2 पर डाल दी गई है।
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