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पीड़कनाशी। उर्वरक। जैविक खेती। योजक

 
Types of fertilizers



पीड़कनाशी । उर्वरक । जैविक खेती । योजक

पीड़कनाशी (Pesticides):-
वे रासायनिक पदार्थ जो कवक, बैक्टीरिया, कीट, खरपतवार आदि को नष्ट करने या उनकी वृद्धि को रोकने में सहायक होते हैं।
• कीटनाशी, जीवाणुनाशी, कवकनाशी, शाकनाशी आदि को सम्मिलित रूप से पीड़कनाशी  कहा जाता है।
उदाहरण:- Aldrin. Dieldrin. DDT.
• प्रत्येक कीटनाशक गैर-लक्षित कीड़ों, लोगों, पालतू जानवरों और पर्यावरण के लिए जोखिम पैदा कर सकते है।

कीटनाशी (Incesticides):-
यह एक प्रकार का पीडकनाशी होता है।
कीटनाशी कीटों (Incests) को नष्ट करने में या उनकी वृद्धि को रोकने में सहायक होते हैं।
उदाहरण:- Endrin. Chlordane. Chlordecone.
Endosulfan.
DDT:- यह विश्व का पहला कार्बनिक कीटनाशी है। यह अजैव-निम्नीकरणीय दीर्घस्थाई कार्बनिक प्रदूषक है।

शाकनाशी (Herbicides):-
वे रासायनिक पदार्थ जो खरपतवारों को नष्ट करने में या उनकी वृद्धि को रोकने में सहायक होते हैं।
उदाहरण - पैराक्वाट, पैराक्वेट, डाइक्वाट, डाइक्वेट, एट्राजीन, ग्लाइफोसेट
2,4-डी (2,4-डाइक्लोरो फिनॉक्सी एसिटिक अम्ल)
यह विश्व का पहला कार्बनिक शाकनाशी है।
यह गेहूं व अन्य फसलों में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार को नष्ट करने में उपयोगी है।
भारत में इसका प्रयोग 1946 से शुरू।

कवकनाशी (Fungicides):-
वे रासायनिक पदार्थ जो कवक (फफूंद) को नष्ट करने में या उनकी वृद्धि को रोकने में सहायक होते हैं।
उदाहरण:- डाइक्लोरान, डाइक्लोरोफेन, केप्टान, केप्टाफॉल
उपयोगिता:-
• बीजों के उपचार में
• मृदा के उपचार में
• घोल के रूप में (दवा का छिड़काव)
• छिड़काव के रूप में। (रोगों को रोकना)

उर्वरक (Fertilizers)
वे रासायनिक पदार्थ जिनका उपयोग पौधों की वृद्धि और कृषि उपज बढ़ाने के लिए किया जाता है। (उद्योगों में निर्माण)
• प्राय: पौधों को उर्वरक दो प्रकार से दिये जाते है -
(1) ज़मीन में डालकर 
(2) पत्तियों पर छिड़काव करके
उर्वरक पौधों के लिये आवश्यक तत्वों की पूर्ति करते हैं।
उदाहरण:- यूरिया, अमोनियम सल्फेट, पोटेशियम सल्फेट, पोटेशियम नाइट्रेट, कैल्शियम नाइट्रेट, सुपर फॉस्फेट
• एक अच्छे उर्वरक में नाइट्रोजन : फॉस्फोरस : पोटेशियम का अनुपात क्रमश: 4:2:1 होता है।

प्रमुख अकार्बनिक उर्वरक:-
नाइट्रोजन उर्वरक
नाइट्रोजन क्लोरोफिल का मुख्य घटक है, जो प्रकाश संश्लेषण का संतुलन बनाए रखता है।
पादपों को हरा बनाए रखता है।
यह पादपों में अमीनो अम्ल का भाग है तथा प्रोटीन बनाता है।
पादपों की वृद्धि को बढ़ाता है।
उदाहरण:- यूरिया, अमोनियम सल्फेट, अमोनियम नाइट्रेट
• यूरिया में 46% नाइट्रोजन होती है।
• प्रथम कारखाना - सिन्दरी उर्वरक (झारखंड, 1951)

पोटाश उर्वरक:-
• पोटेशियम पादप के तने को मजबूत करता है।
• रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
• उदा.- पोटेशियम सल्फेट, पोटेशियम नाइट्रेट

फास्फेटिक उर्वरक:-
कोशिका की वृद्धि एवं विकास
पादप जड़ की वृद्धि मे लाभदायक
उदा.- रॉक फास्फेट 
सुपर फास्फेट ऑफ लाइम
यह कैल्शियम डाई हाइड्रोजन फास्फेट और जिप्सम का मिश्रण है। इसमें 16-20% P₂O₅ होता है।

NPK उर्वरक (पूर्ण उर्वरक):-
• यह मृदा में तीनों पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम की आपूर्ति करते हैं। इसलिए इन्हें पूर्ण उर्वरक भी कहा जाता है। (4:2:1)

उर्वरको के लाभ:-
• इनका परिवहन व भंडारण आसान है।
• पानी में घुलनशील है और मिट्टी में आसानी से घुल जाते हैं। जिससे पौधे इन्हें आसानी से अवशोषित कर लेते हैं।
• पोषक तत्वों की कमी पूरी करते हैं।
• फसलों पर तेजी से असर करते हैं। 
• फसल की उपज बढ़ाते हैं।

उर्वरक के नुक़सान:-
• महंगें होते हैं।
• मिट्टी में मौजूद जीवाणु और सूक्ष्म जीवों के लिए हानिकारक।
• इनके प्रयोग से मिट्टी में हानिकारक रसायनों की मात्रा बढ़ती है।
• मिट्टी की उर्वरता को कम करते हैं।
• लीचिंग होती है और उर्वरक यूट्रोफिकेशन के कारण नदियों तक पहुंचते हैं।
• लंबे समय तक जमीन की सतह पर नहीं रहते।
• जल में घुलकर भूजल (Ground Water) को प्रदूषित करते हैं।

विकल्प:- जैविक खाद का प्रयोग करना।
जैविक उर्वरक (Bio Fertilizer)
• ये पौधों एवं जानवरों से प्राप्त प्राकृतिक उर्वरक होते हैं।
• इनका निर्माण पशुधन खाद, औद्योगिक कूड़ा, नगर निगम कीचड़ और कृषि अवशेषों से किया जाता है।
• रासायनिक उर्वरक तेजी से असर करते हैं जबकि जैविक उर्वरक धीमी गति से असर करते हैं परंतु ये मिट्टी की उर्वरता को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

विश्व का पहला नैनो यूरिया तरल
• इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (IFFCO) ने दुनिया का पहला नैनो यूरिया लिक्विड विकसित किया है। (2021 में)
• आधा लीटर नैनो लिक्विड यूरिया की एक बोतल 50 किलो की यूरिया की बोरी के बराबर काम करेगी।
लाभ:- यह पौधों के लिए बेहतर पोषण गुणवत्ता के साथ उत्पादन को बढ़ाता है। (उपज में 8% तक वृद्धि)
• मिट्टी, जल और वायु प्रदूषण को कम करने में सक्षम। (क्योंकि इसका इस्तेमाल पत्तियों पर छिड़काव के रूप में होता है और यह सामान्य दानेदार यूरिया की तरह जमीन में नहीं डाला जाता।
• फसलों की गुणवत्ता में सुधार तथा खेती की लागत में कमी।

जैविक खेती (Organic Farming)
प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग करते हुए कृषि कार्य करना।
इसमें रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता।
• मूल रूप से जैविक खेती भारतीय पद्धति है।
उद्देश्य:- आत्मनिर्भर कृषि प्रणाली विकसित करना।
महत्व:-
1. भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि।
2. पशुधन में वृद्धि।
3. बाहरी लागतों में कमी।
4. गुणवत्तापूर्ण उत्पादों का उत्पादन।
5. स्वास्थ्यवर्धक।

जैविक खेती का भारत में भविष्य:-
• राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (2000)
• दसवीं पंचवर्षीय योजना में जैविक खेती को राष्ट्रीय प्राथमिकता क्षेत्र घोषित किया।
• देश का प्रथम जैविक खेती केंद्र - गाजियाबाद (2004)
• देश का प्रथम जैविक राज्य - सिक्किम
• परंपरागत कृषि विकास योजना
• राष्ट्रीय कृषि विकास योजना
• एकीकृत बागवानी विकास मिशन
• जैविक खेती नेटवर्क परियोजना के माध्यम से देश के विभिन्न हिस्सों में जैविक खेती का विस्तार किया जा रहा है।
• राजस्थान में भी जैविक खेती को अपनाया गया है।

बाइंडर्स / योजक:-
• इनका उपयोग पाउडर सामग्री में चिपकने वाले गुण प्रदान करने के लिए किया जाता है।
• इन पदार्थों को टेबलेट बनाने के दौरान सूखा या तरल रूप में मिलाया जाता है।
• उदाहरण:- गोंद, ग्वार, स्टार्च, ग्लूकोज, लेक्टोज, मिथाइल सेल्युलोज‌।

 बाइंडर्स के गुण:- 
1. गैर विषैले होने चाहिए।  2. लागत कम
3. उचित रंग  4. क्रियात्मक रूप से निष्क्रिय
5. इनमें कोई सूक्ष्मजीव नहीं होना चाहिए।
6. खाद्य सामग्री के रूप में अनुमोदित (Verify)

SAVE WATER

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