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धातु। अधातु। उपधातु। अयस्क। मिश्र धातु। धातुकर्म सिद्धांत और विधियां

 
Metallurgy in Hindi


धातुकर्म  सिद्धांत  और  विधियां

 धातु
 अधातु
 ये प्राय: ठोस होती है।
इनमें कठोरताआघातवर्धनीयता (Malleability), तन्यता (Ductility), विद्युत एवं ऊष्मा के सुचालकता के गुण पाए जाते हैं।
• इनमें धात्विक चमक भी पाई जाती है।
• धातुओं को आवर्त सारणी में बाई और रखा जाता है।
• पारा एकमात्र धातु हैजो कमरे के ताप पर द्रव अवस्था में पाया जाता है।
• उदाहरण:- एल्यूमीनियम (Al), कॉपर (Cu), आयरन (Fe), जिंक (Zn), सिल्वर (Ag), सोना (Au)
 ये तत्व प्राय: भंगुर होती है।
ये विद्युत की  कुचालक होती है।
चमकहीन होती है।
• अधातुओं को आवर्त सारणी में दाई और रखा जाता है।
• ब्रोमीन एकमात्र अधातु हैजो कमरे के ताप पर द्रव अवस्था में पाया जाता है।
उदाहरण:- कार्बन (C), ऑक्सीजनहाइड्रोजननाइट्रोजनसल्फरफॉस्फोरस।
 
उपधातु (Metalloids):-
वे तत्व जिनमें धातु एवं अधातु दोनों के गुण विद्यमान हो उन्हें उपधातुएं कहते हैं।
उदाहरण:- बोरॉनसिलिकॉनआर्सेनिक।
 
मिश्र धातु (Alloy):- दो या दो से अधिक तत्वों के समांगी मिश्रण को मिश्र धातु कहते हैं।कहते हैं।

मिश्र धातु

घटक

उपयोग

पीतल

Cu (तांबा) + Zn (जिंक)

बर्तन बनाने मेंमूर्तियां बनाने में

कांसा

Cu (तांबा) + Sn (टिन)

बर्तन बनाने मेंमूर्तियां बनाने में

सोल्डर

Pb (लैड) + Sn

विद्युत तारों की वेल्डिंग में

फ्यूज तार

Pb (लैड) + Sn (टिन) 

 

जर्मन सिल्वर

Cu + Ni (निकल)

मूर्तियां बनाने में

नाइक्रोम

Fe +  Ni Cr (क्रोमियम)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

पारा के मिश्र धातु को अमलगम कहते हैं।
अमलगम की विद्युत चालकता तथा गलनांक कम होते हैं।
इसका उपयोग दातों में स्थित खड्डो को भरने हेतु किया जाता है।

खनिज (Minerals):-
पृथ्वी की भू-पर्पटी में संयुक्त रूप से पाए जाने वाले तत्वों या यौगिकों को खनिज कहते हैं। 
इनमें रेत, कंकड़, पत्थर आदि अशुद्धियां भी विद्यमान होती है।

अयस्क (Ore):-
वे खनिज जिनमें कोई विशेष धातु काफी अधिक मात्रा में होती है।
• सभी खनिज अयस्क नहीं होते हैं परंतु सभी अयस्क खनिज होते हैं।
 
  ऐलुमिनियम के अयस्क:-
• बॉक्साइट (Al₂O₃.2H₂0)
• अभ्रक (K₂O.Al₂O₃.6SiO₂.2H₂O)
• फेल्सपार (KAlSi₃O₈)
• कोरण्डम (Al₂O₃)
• क्ले
  आयरन (लोहा) के अयस्क:-
• हेमेटाइट (Fe₂O₃)
• लिमोनाइट (2Fe₂O₃.3H₂O)
• मैग्नेटाइट (Fe₂O₄)
• सिडेराइट (FeCO₃)
• आयरन पायराइट (FeS₂)
 कॉपर (तांबा) के अयस्क:-
• कॉपर पायराइट (CuFeS₂)
• कॉपर ग्लांस (Cu₂S)
• रूबी कॉपर (Cu₂O)
  जिंक (जस्ता) के अयस्क:-
• जिंक ब्लेण्ड (ZnS)
• जिंकाइट (Zno)
• कैलामाइन (ZnCO₃)

धातुओं का निष्कर्षण-धातुकर्म
(Extraction of Metals-Metallurgy):-
धातुओं को उनके अयस्कों से अलग करने की प्रक्रिया।
चरण - 
(A) अयस्क को तोड़ना तथा पीटना (Crushing and grinding of Ore)
(B) अयस्क का सांद्रण (Concentration of Ore)
(C) धातु का निष्कर्षण (Extraction of Metal)
(अ) सांद्रित अयस्क को धातु ऑक्साइड में बदलना
(i) निस्तापन  (ii) भर्जन
(ब) धातु ऑक्साइड का अशुद्ध धातु में अपचयन
(D) धातु का शोधन (Purification of Metal)

(A) अयस्क को तोड़ना तथा पीटना (Crushing and grinding of Ore)
• सर्वप्रथम अयस्क का चयन किया जाता है।
• जॉ क्रशर (Jaw Crusher) की सहायता से इसे छोटे-छोटे टुकड़ों में तोडा जाता है।
• वापिस इसे स्टेम्प मिल की सहायता से पीसकर बारीक चूर्ण में बदल दिया जाता है। इस प्रक्रिया को चूर्णीकरण (Pulverisation) कहते हैं।
• चूर्णित अयस्क को चालनियों द्वारा छाना जाता है।

(B) अयस्क का सांद्रण (Concentration of Ore)

गैंग/मैट्रिक्स/आधात्री:-
पृथ्वी से निकाले गए अयस्कों में मिट्टी, रेत, कंकड आदि अशुद्धियां पाई जाती है, जिन्हें  गैंग/मैट्रिक्स/आधात्री कहते हैं।
अयस्क से इन अशुद्धियों को दूर करना अयस्क का सांद्रण/प्रसाधन/सज्जीकरण कहलाता है।

(1) गुरुत्व पृथक्करण विधि / द्रवीय धावन विधि
(Gravity Separation Method):-
• आधात्री का घनत्व धातु अयस्क से कम होने पर इस विधि का उपयोग किया जाता है।
• बारीक चूर्णित अयस्क को जल में मिलाकर अच्छी तरह से हिलाते हैं। अब इसे ढालू या नालीनुमा मेज पर जल की तेज धारा के साथ प्रवाहित करते हैं। जिसके कारण हल्के आधात्री कण जल के साथ बह जाते हैं। तथा भारी अयस्क के कण बचे रह जाते हैं‌।
• सामान्यतः आयरन के अयस्कों का सांद्रण इसी विधि से किया जाता है। जैसे - हेमेटाइट

(2) चुंबकीय पृथक्करण विधि:-
• इसमें दो या दो से अधिक अयस्कों का मिश्रण होता है। जिसमें एक अयस्क अशुद्धि के रूप में होता है, जिसकी चुंबकीय प्रकृति होती है।
• ऐसे चूर्णित अयस्क को रबर के पट्टे की सहायता से धीरे-धीरे आगे खिसकाते हैं। 
चुंबकीय कण चुंबकीय क्षेत्र में घिरनियों पर आकर्षित होकर रोलर के निकट गिरते है तथा अचुंबकीय अयस्क के कण रोलर से दूर गिरते हैं।
• इस विधि से फेरों चुंबकीय अयस्क का सांद्रण किया जाता है। उदाहरण - हेमेटाइट

(3) झाग प्लवन (फेन प्लवन) विधि:-
• सल्फाइड अयस्कों के सांद्रण में उपयोगी।
जैसे - PbS, ZnS, CuFeS₂
• सिद्धांत:- सल्फाइड अयस्क तेल द्वारा तेजी से गीले (Wet) होते हैं जबकि सिलिकेट आधात्री जल द्वारा तेजी से गीले (Wet) होते हैं।
•  झागकारक:- चीड़ तेल, वसीय अम्ल (Fatty acid)
• प्लवन कारक (Floating):- ये पदार्थ सल्फाइड कणों को जल प्रतिकर्षी बनाते हैं, जिससे ये कण जल पर तैर सके। इन्हें संग्रही (Collector) भी कहते है।
उदाहरण - सोडियम एऐथिल जैन्थेट
• फेनस्थायी कारक:- झाग को स्थायित्व प्रदान करते हैं।
जैसे - क्रीसॉल, ऐनीलिन।
• सक्रियकारक - कॉपर सल्फेट द्वारा प्लवन क्षमता में वृद्धि।
• अवनमक या डिप्रेशर:- झाग को कम करते है। 
जैसे - सोडियम सायनाइड (NaCN)

विधि:- एक बड़े आयताकार टैंक में चूर्णित अयस्क में जल, चीड़ का तेल, अल्प मात्रा में प्लवन कारक एवं फेनस्थायी कारक पदार्थ मिलाये जाते है।
इसमें वायु की प्रबल धारा प्रवाहित कराई जाती है, जिसके कारण हल्के सल्फाइड अयस्क के कण झाग के साथ ऊपर तैरने लगते हैं, जिन्हें वहां से पृथक कर लिया जाता है।
आधात्री के कण जल से भीगकर पात्र के पैंदे में एकत्रित हो जाते हैं।
कभी-कभी दो सल्फाइड अयस्कों को पृथक करने के लिए भी यह विधि उपयोगी है। इसके लिए डिप्रेशर का उपयोग किया जाता है।
उदाहरण:- जिंक ब्लेण्ड (ZnS) और गेलेना (PbS) को पृथक करने के लिए डिप्रेशर के रूप में सोडियम सायनाइड (NaCN) का प्रयोग किया जाता है।
यह ZnS को फेन में आने से रोकता है किंतु PbS को नहीं रोकता है, जिससे दोनों का आसानी से पृथक्करण हो जाता है।

(4) रासायनिक पृथक्करण विधि / निक्षालन:-
• इसमें अयस्क को उपयुक्त विलायक में घोलते है।
• इसमें आधात्री कण अविलेय होने के कारण पृथक हो जाते हैं।
• यह विधि ऐलुमिनियम, चांदी और सोना धातुओं के अयस्कों के सांद्रण में प्रयुक्त होती है।
• बॉक्साइट से ऐलुमिना का निक्षालन:-
जब बॉक्साइट में Fe₂O₃ और SiO₂ की अशुद्धियां समान मात्रा में हो तो बेयर विधि, 
जब बॉक्साइट में Fe₂O₃ की अशुद्धियां अधिक हो तो हॉल विधि, 
जब बॉक्साइट में SiO₂ की अशुद्धियां अधिक हो तो
सरपेक विधि का प्रयोग किया जाता है।
• सोने-चांदी के अयस्कों का सोडियम सायनाइड (NaCN) द्वारा निक्षालन कराया जाता है।

(C) धातु का निष्कर्षण (Extraction of Metal)
(अ) सांद्रित अयस्क को धातु ऑक्साइड में बदलना
(i) निस्तापन  (ii) भर्जन
(ब) धातु ऑक्साइड का अशुद्ध धातु में अपचयन

(i) निस्तापन (Calcination):-
• यह प्रक्रिया सामान्यतः कार्बोनेट अयस्कों के लिए की जाती है।
• सांद्रित अयस्क को वायु की अनुपस्थिति में परावर्तनी भट्टी में इतना गर्म किया जाता है कि अयस्क पिघले नहीं।
• इससे अयस्क में से नमी व वाष्पशील अशुद्धियां बाहर निकल जाती हैं। (H₂O, CO₂, SO₂) 
• छिद्रित धातु ऑक्साइड शेष बचता है।
CaCO₃ = CaO + CO₂ (ɡ)
ZnCO₃ = ZnO + CO₂ (ɡ)

(ii) भर्जन (Roasting):-
• यह प्रक्रिया सामान्यत: सल्फाइड अयस्कों के लिए की जाती है।
• सांद्रित अयस्क को वायु की अधिक उपस्थिति में परावर्तनी भट्टी में इतना गर्म किया जाता है कि अयस्क पिघले नहीं।
• इससे अयस्क में से नमी व वाष्पशील अशुद्धियां बाहर निकल जाती हैं।
2PbS + 3O₂ = 2PbO + 2SO₂
2ZnS + 3O₂ = 2ZnO + 2SO₂
 
निस्तापन
भर्जन
• यह वायु की अनुपस्थिति में होता है।
• इसमें छोटे-छोटे अणुओं H₂O, CO₂, SO₂ आदि का निष्कासन होता है किंतु कोई भी रासायनिक परिवर्तन नहीं होता।
• यह वायु की अधिक उपस्थिति में होता है।
• इसमें रासायनिक परिवर्तन होता है। इस दौरान ऑक्सीकरण क्लोरीनीकरण आदि क्रियाएं संपन्न होती है।

(ब) धातु ऑक्साइड का अशुद्ध धातु में अपचयन:-
• यह ऑक्सीजन हटाने की प्रक्रिया है।
• धातु ऑक्साइडों का कार्बन (कोक), कार्बन मोनोऑक्साइड, वैद्युत अपघटनी द्वारा अपचयन कराया जाता है।
CuO + C = Cu + CO
CuO + CO = Cu + CO₂

(D) धातुओं का शोधन/परिष्करण
(Purification/Refining):-
• धातुओं से अशुद्धि हटाने के लिए विद्युत अपघटनी परिष्करण विधि का प्रयोग किया जाता है।
• इस विधि में अशुद्ध धातु को एनोड तथा शुद्ध धातु को परत के रूप में कैथोड पर लगाया जाता है।
• धातु के लवण के विलयन को विद्युत अपघट्य के रूप में उपयोग में लिया जाता है।
• अशुद्ध तांबा एनोड है, जबकि शुद्ध तांबे की पट्टी कैथोड का कार्य करती है। विद्युत धारा प्रवाहित करने पर शुद्ध तांबा कैथोड पर निक्षेपित (जमा) हो जाता है।
विलेय अशुद्धियां विलियन में घुल जाती है। 
• अविलेय अशुद्धियां एनोड की तली पर निक्षेपित (जमा) हो जाती है, जिसे एनोड पंक (Anode mud) कहते हैं।**

धातुकर्म का ऊष्मागतिकी सिद्धांत:-
• किसी प्रक्रम के लिए मानक ताप (298K) एवं दाब (1 वायुमंडलीय) पर गिब्ज हेल्मोलट्ज समीकरण -
∆G⁰ = ∆H⁰ − ∆TS⁰

∆G⁰ = मानक गिब्ज मुक्त ऊर्जा परिवर्तन
∆H⁰ = मानक एन्थैल्पी परिवर्तन
∆TS⁰ = मानक एन्ट्रोपी परिवर्तन

ऐलिंघम आरेख:- सर्वप्रथम HJT एलिंघम ने तत्वों के ऑक्साइडो के विरचन में मानक गिब्ज मुक्त ऊर्जा के लिए आरेख खींचें। एक मोल ऑक्सीजन से विभिन्न तत्वों के ऑक्साइडों के निर्माण में ∆G⁰ की गणना की गई।
गिब्ज ऊर्जा (∆G⁰) और ताप (T) के मध्य ग्राफ वक्र खींचे गए।

प्रश्न.ऐलिंघम आरेख की सहायता से हेमेटाइट अयस्क के अपचयन में ऊष्मागतिकी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
आयरन के निष्कर्षण में कोक का प्रयोग होता है अर्थात् वात्या भट्टी में फेरिक ऑक्साइड का अपचयन कोक द्वारा होता है। एलिंघम आरेख से पता चलता है कि कार्बन तथा आयरन के ऑक्साइड का निर्माण लगभग 1073 K पर होता है।





अपचयन की व्याख्या हम निम्न प्रकार कर सकते हैं –
1. ऐलिंघम आरेख से यह जानकारी मिलती है, कि Fe2O3 के निर्माण की मानक गिब्स ऊर्जा (∆G°), CO से CO2 के निर्माण के लिये आवश्यक मानक गिब्स ऊर्जा (∆G°) से अधिक है। 
इसका अर्थ यह है कि 1073 K से कम ताप पर हेमेटाइट (Fe2O3) कार्बन मोनो-ऑक्साइड (CO) से अपचयित हो जायेगा।
2. 1073 K के ऊपर Fe2O5 के निर्माण की मानक मुक्त ऊर्जा, कोक से CO के निर्माण के लिये मानक मुक्त ऊर्जा (∆G°) के मान से अधिक है, अतः 1073 K ताप से अधिक ताप पर हेमेटाइट (Fe2O3) कोक के द्वारा अपचयित होता है।
Fe3O3(s) + 3C(s) → 2Fe(s) + 3CO(g)
कोक
अत: जब तापमान 1073 K से अधिक हो तो वात्या भट्टी में Fe2O3 का अपचयन कोक के द्वारा हो जाता है।
यदि तापमान 1073 K से कम हो तो Fe2O3, का अपचयन CO के द्वारा होता है।

Q. बेसेमरीकरण से किस प्रकार कॉपर को प्राप्त किया जाता है ? क्रिया विधि बताइए 
Ans.
इसमें कॉपर ऑक्साइड एवं कॉपर सल्फाइड का स्वतः अपचयन होता है। यह बेसेमर परिवर्तक में कराया जाता है।
• बेसेमर परिवर्तक नाशपती के आकार की स्टील से बनी भट्टी होती है, जिसके अन्दर अम्लीय SiO₂ या क्षारीय MgO का अस्तर लगा होता है, जो गालक का कार्य करते हैं।
इसमें शुण्डिकाओं से गर्म वायु भेजी जाती है, जिससे द्रवित धातु नीचे की ओर एकत्र होती है। 
चित्र में बताये अनुसार यह परिवर्तक क्षैतिज अक्ष पर खड़ा होता है, जिसको आगे-पीछे झुकाया जा सकता है।
• बेसेमर परिवर्तक में भर्जित अयस्क (कॉपर मेट) की वायु की ऑक्सीजन व सिलिका से निम्न रासायनिक अभिक्रियाएं होती है -

2Fes+ 30₂ → 2Fe0 + 2S0₂
FeO + SiO₂ → FeSiO₃
आधात्री गालक    धातुमल (गलनीय कीट)
2Cu₂S+30₂ → 2Cu₂O+2SO₂
Cu₂S + 2Cu₂0 → 6Cu + SO₂  (स्वतः अपचयन)
फफोलेदार कॉपर

• पिघली कॉपर धातु में SO₂ गैसें विलेय होती हैं, जिसे रेत के सांचों में उडेला जाता है। इसे ठंडा करने पर SO₂ गैस  बुलबुलों के रूप में बाहर निकलती है, जिससे कॉपर की सतह पर फफोल (सतह ऊंची-नीची) पड़ जाते हैं।
इसी कारण इसे फफोलेदार कॉपर (Blistered Copper) कहते हैं।

नोट:- गुरूत्वीय पृथक्करण विधि, चुंबकीय पृथक्करण विधि, झाग प्लवन विधि, ऐलिंघम आरेख, बेसेमरीकरण आदि के चित्र इंटरनेट पर सर्च करें।

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