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राजस्थान में औषधीय महत्व के पादप

 
Important medicinal plants in Rajasthan


राजस्थान में औषधीय महत्व के पादप

घर-घर औषधि योजना
शुभारम्भ -  1 अगस्त 2021
• इस योजना के तहत वन विभाग की ओर से आगामी पांच वर्षों में प्रदेश के सभी 1 करोड़ 26 लाख परिवारों को तुलसी, गिलोय, कालमेघ और अश्वगंधा के आठ-आठ औषधीय पौधे तीन बार निःशुल्क उपलब्ध कराए जाएंगे।
• योजना का उद्देश्य:- प्रदेश के लोगों की स्वास्थ्य की रक्षा करना तथा औषधीय पौधों का संरक्षण और संवर्द्धन करना है।

अश्वगंधा:- नागौर, कोटा, झालावाड़
अश्वगंधा को शक्तिवर्धक माना जाता है परंतु आयुर्वेद में इसका उपयोग गठिया का दर्द, जोड़ों की सूजन और रक्तचाप के उपचार में किया जाता है।
इसकी पत्तियां त्वचा रोग, सूजन एवं घाव भरने में उपयोगी होती है।
अश्वगंधा में निकोटीन और सोमनीन जैसे अनेक एल्केलाइड्स पाए जाते हैं।
मानसिक तनाव को ठीक करने में लाभदायक है।
स्ट्रेस को कम करने में मदद ।

कालमेघ:- शक्तिवर्धक के रूप में।
इसकी पत्तियों का उपयोग बुखार, पीलिया, मलेरिया, सिरदर्द, रक्तशोधक, विषनाशक, उच्च रक्तचाप, त्वचा रोग तथा अन्य पेट की बीमारियों में लाभकारी है।
गिलोय:- पेट के कीड़े और टीबी के उपचार में।

तुलसी:- 
• प्रकार - राम तुलसी और श्याम तुलसी।
• खांसी, जुकाम, चेहरे पर चमक एवं धार्मिक महत्व।

गूगल:-
• इसकी गोंद (लांजा) को औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
इसकी गोंद को जलाने से निकला धुआं जुकाम में लाभदायक होता है। इसकी गोंद के कुल्ले करने से कमजोर मसूड़ों, गले के छालों एवं पयारिया में लाभ मिलता है।
• यह शांतिदायक, मूत्रवर्धक, बलकारी एवं बलगमरोधी है।
• बलगमरोधी होने के कारण तपेदिक के उपचार में सहायक है।
• आंत के छालों, दस्त एवं अल्सर में उपयोगी।

सतावरी:-
• इसकी जड़ का उपयोग किया जाता है।
• यह एक प्रकार की एंटीऑक्सीडेंट एवं जीवाणुरोधी है।
• यह ठंडा प्रदान करती है। गर्मियों में इसका उपयोग प्यास शांत करने में किया जाता है।
• स्त्री रोगों में भी लाभदायक है।
महावारी पूर्व सिंड्रोम, गर्भाशय से रक्त स्त्राव और मां में दूध उत्पादन शुरू करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है।

अफीम:-
• यह एक वर्षीय शाकीय पादप है।
• अफीम पौधे के कच्चे फल (Capsule) से प्राप्त होती है।
• अफीम में लगभग 30 प्रकार के एल्केलाइड्स पाए जाते हैं। जैसे - मार्फीन, कोडीन, निकोटीन आदि।
• दर्द निवारक के रूप में उपयोग।
• दस्त एवं अतिसार में उपयोगी।
• कोडीन का उपयोग खांसी, जुकाम में।
• यह उत्तेजना एवं बेचैनी से राहत दिलाकर नींद उत्पन्न करती है।
• अफीम के विवेकहीन प्रयोग से भूख कम लगना, अनिद्रा, मूर्छा, लकवा आदि व्याधियां उत्पन्न हो जाती है।

ग्वारपाठा:-
• इसकी पत्तियों के रस से विभिन्न प्रकार की क्रीम एवं सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री बनाई जाती है।
पेय पदार्थों में उपयोग।
चर्म रोग, दांत दर्द एवं घाव भरने में।
• कफ विकार, खांसी, बवासीर, कब्ज, यकृत सूजन।

नीम:- नीम लेपित यूरिया।
बबूल:- दांतों की सफाई।
हल्दी:- सौंदर्य प्रसाधन सामग्री में, घाव भरने में।

राजस्थान में सफेद मूसली, हिंगोट, गोखरू, कंटीरी, पीली कंटीरी आदि औषधीय महत्व के पादप भी पाए जाते हैं।

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