राजस्थान के अभिलेख - 1
Inscription of Rajasthan.
बडली अभिलेख। बसंतगढ़ अभिलेख। बुचकला अभिलेख। बिजौलिया अभिलेख। घटियाला अभिलेख। घोसुंडी अभिलेख।चीरवा का शिलालेख। बाउक प्रशस्ति।
निम्न में से कौनसा शिलालेख राजस्थान का प्राचीनतम शिलालेख है ?
1.बुचकला 2.बिजौलिया 3.बड़ली 4.बसंतगढ़
उत्तर - बड़ली अभिलेख
• राजस्थान में पुरातात्विक सर्वेक्षण का कार्य 1871 ईस्वी में A.C.L Carlleyle द्वारा प्रारंभ किया गया।
अभिलेख
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बडली (अजमेर)
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बसंतगढ़ (सिरोही)
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वर्मलात
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बुचकला (जोधपुर)
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नागभट्ट प्रतिहार-॥
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बिजौलिया (भीलवाड़ा)
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बडली अभिलेख
1912 ई. में गौरीशंकर हीराचंद ओझा को भिलोट माता मंदिर से प्राप्त हुआ था, जो वर्तमान में अजमेर संग्रहालय में सुरक्षित है।
• यह राजस्थान का प्राचीनतम अभिलेख है, जो उत्तर प्रदेश के पिपरावा अभिलेख (487 ई. पू.) के बाद भारत का दूसरा सबसे प्राचीन अभिलेख माना जाता है।
• यह अभिलेख वीर निर्वाण संवत 84 का है, जो माध्यमिका के एक जैन केंद्र होने की जानकारी देता है।
बसंतगढ़ अभिलेख
यह बसंतगढ़ के क्षेमकरी (खिमेल) माता मंदिर से प्राप्त
हुआ है, जो वर्तमान में अजमेर के राजपूताना म्यूज़ियम में स्थित है।
• यह वर्मलात के सामंत राज्जिल तथा राज्जिल के पिता वज्रभट्ट (सत्याश्रय) का वर्णन करता है, जो कि अर्बुद देश का स्वामी था।
वर्मलात चावडा वंश का शासक था।
इस अभिलेख में राजस्थानी आदित्य नामक शब्द आया है।
प्रश्न.कौनसा अभिलेख सामंत प्रथा की जानकारी देता है ? - बसंतगढ़ अभिलेख
प्रश्न.किस अभिलेख में सर्वप्रथम 'राजस्थानी' शब्द का उल्लेख हुख है ? - बसंतगढ़ अभिलेख
नोट:- चावड़ा/चाप/चापोत्कट वंश का शासन गुजरात राजस्थान के मिले-जुले क्षेत्र (गुर्जरात्रा प्रदेश) में था। चावड़ा वंश की राजधानी - भीनमाल • 641 ईस्वी में ह्वेनसांग ने भीनमाल की यात्रा की थी। ह्वेनसांग ने लिखा है कि मैं गुर्जर प्रदेश से गुजर रहा हूं जिसकी लंबाई 300 मील और परिधि (परिमाप) 833 मील है। यहां क्षत्रियों को शासन हैं। ह्वेनसांग ने भीनमाल को पी-लो-मो-लो कहा है। • भीनमाल के प्राचीन विद्वान:- कवि माघ की पुस्तक - शिशुपाल वध ब्रह्मगुप्त की रचनाएं - ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, खंड खाद्यक • ब्रह्मगुप्त को भारत का न्यूटन कहा जाता है। |
बुचकला अभिलेख
यह अभिलेख बिलाड़ा के पार्वती मंदिर के सभामंडप से
प्राप्त हुआ, जिसकी खोज ब्रह्मभट्ट नानूराम ने की थी।
• अभिलेख के अनुसार नागभट्ट-॥ (गुर्जर प्रतिहार शासक वत्सराज का पुत्र) के सामंत युवक की पत्नी जाबालि जो की जज्जुक की पुत्री थी, ने देवालय में मूर्ति स्थापित करवाई थी।
मंदिर का वास्तुकार देइया (पंचहरि का पुत्र) था।
प्रश्न.कौन सा अभिलेख गुर्जर प्रतिहारों की जानकारी देता है ? - बुचकला अभिलेख
बिजौलिया अभिलेख
यह अभिलेख पार्श्वनाथ मंदिर से प्राप्त हुआ है, जो दिगंबर जैन लोलाक ने मंदिर तथा कुंड के निर्माण की स्मृति में लगवाया था।
इस मंदिर का वास्तुकार माहणक था।
इसमें सांभर तथा अजमेर के चौहानों की वंशावली की जानकारी मिलती है। इस अभिलेख में चौहानों को वत्स गौत्रीय ब्राह्मण बताया गया है।
नोट:- फतेहपुर (सीकर) के नवाब न्यामत खां (जान कवि) ने भी अपनी पुस्तक कायमरासौ में चौहानों को ब्राह्मण बताया है। इतिहासकार दशरथ शर्मा ने अपनी पुस्तक द अर्ली चौहान डायनेस्टी में चौहानों की उत्पत्ति ब्राह्मणों से मानी है। |
इसके अनुसार चौहान राजा वासुदेव ने सांभर झील का निर्माण करवाया था तथा नागौर को राजधानी बनाया था। (551 ई)
इस अभिलेख से विग्रहराज-चतुर्थ की दिल्ली विजय की जानकारी प्राप्त होती है।
अभिलेख के अनुसार यहां बहने वाली कुटिला नदी के आसपास कई जैन तथा शैव तीर्थ थे।
जैसे - घटेश्वर, कुमारेश्वर आदि।
भूमि अनुदान की जानकारी मिलती है।
रचनाकर-गुणभद्र, लेखक-केशव, उत्कीर्णक-गोविंद
नोट:- यह मेनाल के शिव मंदिरों की जानकारी देता है। भूमि अनुदान की जमीन को डोहली कहा जाता था। जैनों के उत्तम शिखर पुराण की भी जानकारी देता है। |
प्रश्न.निम्नलिखित में से कौन-कौन से अभिलेख प्रतिहार शासकों की जानकारी देते हैं ? -
1.घटियाला अभिलेख 2.बाउक प्रशस्ति
3.घोसुंडी अभिलेख 4.चीरवा का शिलालेख
उत्तर - घटियाला अभिलेख और बाउक प्रशस्ति
घटियाला अभिलेख - 861 ईस्वी (जोधपुर)
• ये अभिलेख प्रतिहार राजा कक्कुक द्वारा स्थापित करवाए गए थे।
इनमे से एक लेख एक प्राचीन जैन मंदिर (माता की साल) में प्राकृत भाषा में उत्कीर्ण है तथा अन्य 4 लेख संस्कृत भाषा में मंदिर के पास ही खाखू देवल नामक स्थान पर उत्कीर्णित है।
• इन 4 लेखों में प्रथम लेख प्राकृत अभिलेख का आशय (Same) रूप है।
इस लेख में हरिश्चन्द्र से लेकर कुक्कुक तक प्रतिहार शासकों की वंशावली मिलती है।
• इन लेखों में से दो लेखों को क्रमशः विनायक तथा सिद्धम से शुरू किया गया है।
• गुजरात, वल्ल, माड़, शिव, मालानी, पचभद्रा, त्रिवेणी, अज़्ज आदि क्षेत्रों में कुक्कुक की लोकप्रियता का वर्णन है।
• कुक्कुक ने घटियाला तथा मंडोर मे जय स्तम्भ स्थापित करवाए थे।
• कुक्कुक ने घटियाला (रोहिन्सकूप) मे आभीरों के उपद्रवों का दमन कर उसे व्यापारिक केंद्र के रूप में स्थापित किया तथा उसे ब्राह्मणो, महाजनो तथा क्षत्रियों के रहने लायक बनाया।
• इन लेखों का लेखक मातृरवि नामक मग ब्राह्मण तथा उत्कीर्णक (engraver) सुवर्णकार (goldsmith) कृष्णेश्वर था।
संस्कृत के प्रथम लेख का लेखक कुक्कुक को बताया गया है तथा प्राकृत लेख का अंतिम श्लोक भी इसी ने लिखा था।
बाउक प्रशस्ति- 837 ईस्वी
यह अभिलेख मूलतः मंडोर के किसी विष्णु मंदिर में लगा हुआ था, जिसे बाद में जोधपुर शहर के परकोटे में लगा दिया गया था।
यह लेख प्रतिहारों की वंश परंपरा जानने का उपयोगी साधन है।
यह प्रशस्ति प्रतिहार राजा बाउक ने खुदवाई थी।
इस प्रशस्ति में विष्णु तथा शिव पूजा की जानकारी मिलती है।
नोट:- बाउक कुक्कुक का भाई था। |
घोसुंडी अभिलेख - दूसरी शताब्दी ई. पू.
• यह अभिलेख चित्तौड़ के नगरी के निकट घोसुंडी गांव से प्राप्त हुआ है, जिसकी भाषा संस्कृत एवं लिपि ब्राह्मी है।
• इस अभिलेख के अनुसार गज वंश के राजा सर्वतात (पाराशरी का पुत्र) ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करवाया तथा संकर्षण और वासुदेव के पूजाग्रह के चारों ओर पत्थर की चारदीवारी का निर्माण करवाया।
• यह अभिलेख राजस्थान में वैष्णव संप्रदाय (भागवत संप्रदाय) से संबंधित प्राचीनतम अभिलेख है, जिसे डॉ डी आर भंडारकर द्वारा प्रकाशित किया गया था।
नोट:- कविराजा श्यामलदास ने इस अभिलेख का उल्लेख किया है। • अकबर ने यहां हाथीबड़ा और प्रकाश स्तंभ (ऊब दीवड) बनवाया था। इसलिए इसे हाथीबड़ा अभिलेख भी कहा जाता है। घोसुंडी बावड़ी अभिलेख -1504 ईस्वी राणा कुंभा के पुत्र रायमल की पत्नी रानी श्रृंगार देवी ने यहां एक बावड़ी का निर्माण करवाया और एक अभिलेख लगवाया था। वास्तुकार - महेश्वर इस अभिलेख में श्रृंगार देवी द्वारा अपने पति रायमल तथा अपने पिता मारवाड़ के राव जोधा और दादा रणमल की प्रशंसा की गई है। |
चीरवा का शिलालेख - 1273 ईस्वी
उदयपुर के चीरवा गाँव में यह अभिलेख स्थित है, जो कि संस्कृत भाषा व नागरी लिपि में उत्कीर्णित है।
यह अभिलेख गुहिलवंशीय बापा के वंशजों- पद्मसिंघ, जैत्रसिंह, तेजसिंह, समरसिंह कि उपलब्धियों का वर्णन करता है।
इसमें जैत्रसिंह को शत्रु राजाओं के लिए प्रलय-मारुत के समान बताया गया है।
• इसमें तलारक्ष नामक प्रशासनिक पद का वर्णन है, जो तातेड़ जाति (जैन) के पास वंश परंपरा से चला आ रहा था।
• इस अभिलेख में एकलिंग जी के अधिष्ठाता पाशुपत योगियों के अग्रणी शिवराशि का भी वर्णन मिलता है।
• इस अभिलेख में चैत्रगच्छ के आचार्यों का वर्णन है, जिससे उस समय की शिक्षा व्यवस्था की जानकारी मिलती है।
• यह अभिलेख सती प्रथा की जानकारी देता है।
(तातेड जाति के बालक नामक व्यक्ति की युद्ध में मृत्यु होने पर पत्नी भोली सती हुई)
रचियता:- रत्नप्रभ सूरि, लेखक:- पार्श्वचन्द्र
उत्कीर्णक:- केलिसिंह, शिल्पी:- देल्हण
बिजौलिया अभिलेख से प्राचीन नगरों की जानकारी प्राप्त होती है -
नगर | प्राचीन नाम |
जालौर | जाबालिपुर |
नाडोल | नड्डल |
सांभर | शाकंभरी |
दिल्ली | ढिल्लिका |
भीनमाल | श्रीमाल |
मांडलगढ़ | मंडलकर |
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