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समान नागरिक संहिता

Uniform civil code



समान नागरिक संहिता

Uniform civil code.

23 नवंबर 1948 को संविधान में अनुच्छेद 44 जोड़ा गया। जिसके अनुसार राज्य समान नागरिक संहिता  को लागू करने का प्रयास करेगा।

अनुच्छेद 44 को  राज्य के नीति निदेशक तत्व में शामिल किया गया हैं। (भाग - 4) अतः यह न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं है।

👉पृष्ठभूमि

भारत में अनेक धर्म व संस्कृति को मानने वाले लोगों का निवास है। यहां तक की देश के अलग-अलग हिस्सों में एक ही मजहब के लोगों के रीति-रिवाज भी अलग-अलग है। अतः भारत में धार्मिक आधार पर अलग-अलग नियम, कानून व्यवस्था नजर आती है। जैसे- मुस्लिमों के लिए शरिया कानून

सर्वप्रथम 1835 ई. में दूसरे विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सभी भारतीयों हेतु फौजदारी मामलों में समान कानून व्यवस्था बनाने का सुझाव दिया। 

1858 ई. में ब्रिटिश क्रॉउन द्वारा भारतीयों को विश्वास दिलाया गया कि उनके धार्मिक मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। 

बी.एन. राव कमिटी - 1941
इसे Hindu law committee भी कहा गया।
इस समिति द्वारा सिफारिश की गई की हिंदू कानूनों को संहिताबद्ध इस तरीके से किया जाए कि महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हो।

1948 में संविधान सभा में हिंदू कोड बिल पेश किया गया लेकिन इसके भारी विरोध के कारण तत्कालीन कानून मंत्री डॉ भीमराव अंबेडकर को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।
इसके बाद भी कई बार संसद में हिंदू कोड बिल पेश किया गया लेकिन भारी विरोध के चलते यह पारित नहीं हो पाया।
अंततः इसे चार भागों में पारित करवाना पड़ा -
1. हिंदू विवाह अधिनियम - 1955
2. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम - 1956
3. हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप बिल -1956
4. एडॉप्शन एंड मेंटिनेस बिल - 1956

हिंदू कोड बिल के तहत हिंदू कानूनों का संहिताकरण किया गया। अर्थात् पारंपरिक हिंदू कानूनों में सुधार किया गया। जैसे - विवाह, उत्तराधिकार,  विवाह-विच्छेद आदि मामलों में।
जिससे हिंदू महिलाओं के अधिकारों में वृद्धि हुई। 

हिंदू कोड बिल पारित होने के साथ ही यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की मांग उठती है। 
हिंदू कोड बिल के आलोचकों के अनुसार मुस्लिम पर्सनल लॉ में भी इस आधार पर परिवर्तन किया जाना चाहिए।

नोट - विशेष विवाह अधिनियम-1954
समान नागरिक संहिता का एक हिस्सा।
स्पेशल मैरिज एक्ट, कोई भी दो भारतीय नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित हो, के विवाह को मान्यता प्रदान करता है। (लेकिन इसमें समलैंगिकों के अंतर धार्मिक विवाह का उल्लेख नहीं )

शाहबानो केस - 1985
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार को संविधान के अनुच्छेद 44 के प्रावधान को लागू करने का प्रयास करना चाहिए। समान नागरिक संहिता राष्ट्रीय एकता को और अधिक सशक्त बनाए रखेगी।

* वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक प्रथा पर रोक लगाई गई तथा सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर समान नागरिक संहिता को लागू करने का समर्थन किया।

* 21 वें विधि आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की गई की सरकार को समान नागरिक संहिता को लागू करने की आवश्यकता नहीं बल्कि निजी कानूनों में संशोधन करते हुए इनका संहिताकरण किया जाना चाहिए।
विधि आयोग के अनुसार निजी कानूनों में अंतर होना मजबूत लोकतंत्र की पहचान है। धार्मिक व क्षेत्रीय विविधताओं को समान नागरिक संहिता लागू करके कम नहीं किया जा सकता।

* बीजेपी द्वारा अपने चुनावी घोषणा पत्र में समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात की गई थी।


👉समान नागरिक संहिता के पक्ष में तर्क - 


* अनुच्छेद 44 में इसका उल्लेख है। अतः संविधान को पूर्णतया लागू करना सरकार का कर्तव्य है।

* यदि क्रिमिनल मामलों में एक समान कानून हो सकता है, तो सिविल मामलों में क्यों नहीं।

* अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता की बात करता है। अतः समान कानून लागू न करना समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।

* अनुच्छेद 15 के अनुसार किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म , जाति , लिंग , मूल वंश आदि के आधार पर भेदभाव अमान्य है। लेकिन विभिन्न धर्मों के पर्सनल लॉ पुरुषों की तुलना में महिलाओं की स्थिति को कमजोर करने वाले हैं।

* मुस्लिम पर्सनल लॉ 1400 साल पुराने शरीयत कानून पर आधारित है। जो वर्तमान परिस्थितियों हेतु योग्य नहीं है। 
जैसे :-  मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत -
- बहुविवाह मान्य है। (एक पति चार पत्नी)
- मुस्लिम लड़कियों की शादी की उम्र निर्धारित नहीं है।
- तलाक ए बिद्दत भले ही समाप्त हो गया हो लेकिन तलाक ए हसन आज भी मान्य है, जिसमें तलाक लेने का आधार बताने की आवश्यकता नहीं है।
- उत्तराधिकार की व्यवस्था जटिल है। पैतृक संपत्ति में पुत्र व पुत्रियों हेतु समान अधिकार की व्यवस्था नहीं है।
विवाह के उपरांत पुत्रियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार एवं विवाह के बाद अर्जित संपत्ति में पत्नी के अधिकार अपरिभाषित है।
अतः समान नागरिक संहिता लागू करने से महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो सकेगी। जैसे - मंदिर में प्रवेश, एक पति एक पत्नी अवधारणा, तीन तलाक, विवाह आदि।

* एक देश एक कानून व्यवस्था होने से देश और समाज को सैकड़ों कानूनों से मुक्ति मिलेगी।

* समान नागरिक संहिता भारत की धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की छवि को और अधिक मजबूत बनाने में सहायक होगी।

* सुप्रीम कोर्ट द्वारा भी कई बार इसका समर्थन किया गया है।


👉समान नागरिक संहिता के विपक्ष में तर्क - 


* भारत एक बहुधार्मिक एवं बहु-संस्कृति वाला देश है। जहां हर एक धर्म व जाति के अपने रस्मों-रिवाज है। ऐसे में समान नागरिक संहिता लागू करके इस विविधता की खूबसूरती को कम करना सही नहीं है। 

* मुस्लिम पर्सनल लॉ शरीयत कानून पर आधारित है। जो कि मुस्लिमों की आस्था का विषय है। अतः समान नागरिक संहिता लागू करके इसे समाप्त करना अनुच्छेद 25 का हनन है। (व्यक्ति की धार्मिक स्वतंत्रता एक मूल अधिकार है।)

* विधि आयोग की सिफारिश के अनुसार समान नागरिक संहिता लागू करने के बजाय निजी कानूनी प्रक्रियाओं में संशोधन करना अधिक उचित नजर आता है। जिससे देश की बहु सांस्कृतिक छवि बनी रहेगी।


👉 समान नागरिक संहिता लागू करने में आने वाली चुनौतियां - 


* अल्पसंख्यकों की एक बड़ी आबादी द्वारा समान नागरिक संहिता का पुरजोर विरोध किया जाता रहा है। ऐसे में इतनी बड़ी आबादी की मांग को दरकिनार करते हुए इसे लागू करना एक बहुत बड़ी चुनौती है।

* ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा समान नागरिक संहिता लागू करने हेतु किए गए हर प्रयास का विरोध किया जाता रहा है।

*  समान नागरिक संहिता लागू होने से वोट बैंक की राजनीति नहीं हो पाएगी। अतः राजनीतिक दल अपने स्वार्थपरक यह नहीं चाहते।

* इसे लागू करने हेतु विभिन्न कानूनों में संशोधन आवश्यक है। जैसे - 
1. ईसाई मैरिज एक्ट - 1872
2. पारसी मैरिज एंड डिवोर्स एक्ट-1936 
3. शरिया कानून - 1937
4. हिंदू मैरिज एक्ट - 1955

अत: भारत जैसे बहु सांस्कृतिक देश में समान नागरिक संहिता लागू करना एक बड़ी चुनौती है।

नोट - भारत में विवाह, तलाक, पैतृक संपत्ति, उत्तराधिकार एवं गोद लेने संबंधित मामलों हेतु सभी धर्मो द्वारा अपने पर्सनल लॉ का इस्तेमाल किया जाता है। 
मुस्लिम, पारसी व ईसाई धर्म के अपने अलग-अलग पर्सनल लॉ है। जबकि हिंदू सिविल लॉ के तहत हिंदू, सिक्ख, जैन और बौद्ध आते हैं।

अंततः सरकार को देश की सांस्कृतिक बहुलता को ध्यान में रखते हुए,  विकसित देशों की समान नागरिक संहिता एवं भारत में लागू कानूनों का अध्ययन करके दुनिया का सबसे अच्छा एवं प्रभावी इंडियन सिविल कोड लागू करने का प्रयास करना चाहिए।

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