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युद्ध और शांति ।। Editorial

 
युद्ध और शांति

युद्ध और शांति

युद्ध और संघर्ष
दो राजनैतिक इकाइयों के मध्य होने वाला सशस्त्र संघर्ष जिसमें 1,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो युद्ध कहलाता है। जबकि संघर्ष हिंसक, अहिंसक दोनों प्रकार का हो सकता है। 
इस प्रकार युद्ध राज्यों के मध्य संघर्ष का उच्चतम बिंदु माना जाता है।

वर्तमान विश्व में युद्ध तथा संघर्ष
• अजरबेजान तथा अर्मेनिया के मध्य
• अमेरिका तथा ईरान के मध्य
• पाकिस्तान में बलूचिस्तान की मांग हेतु संघर्ष
• ईरान, इराक तथा तुर्की में कुर्दिस्तान हेतु संघर्ष
• अफगानिस्तान में तालिबानी संघर्ष
• सूडान में गृहयुद्ध
• चीन तथा ताइवान संघर्ष
• मध्य एशियाई संकट
• चीन तथा दक्षिणी चीन सागर के अन्य देशो के मध्य संघर्ष
• भारत तथा चीन सीमा-विवाद
• विश्व के विभिन्न हिस्सों में आतंकवादी संगठनों से राज्यों का युद्ध यथा आईएसआईएस।


युद्ध के कारण

युद्ध के तीन मुख्य कारण है -
1. मानवीय आक्रामकता हेतु युद्ध
2. आर्थिक लाभ हेतु युद्ध
3. राज्य के भौगौलिक विस्तार हेतु युद्ध

वर्तमान में युद्ध तथा संघर्ष की प्रकृति

राज्य बनाम राज्य 
इस प्रकार के तनाव में दो राज्य/देश एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ते हैं। जैैैसेे - आर्मेनिया अजरबेजान युद्ध 2020

गृह युद्ध
जब किसी एक देश में विभिन्न हितों को ध्यान में रखकर उस देश के अंदर युद्ध प्रारम्भ हो तो वह गृहयुद्ध कहलाता है।
जैसे - अफगानिस्तान में तालिबान युद्ध, रूस के चेचन्या में संघर्ष

आतंक के विरुद्ध युद्ध
इसका प्रतिपादन 2001 में अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश द्वारा किया गया था। यह मुख्यतः आतंकवादी संगठनों के विरुद्ध किसी देश द्वारा चलाई गई मुुुुहिम होती है। जै
जैसे - अमेरिका बनाम आईएसआईएस।

विश्व युद्ध
जब दो या अधिक राज्यों के मध्य युद्ध में विश्व की सभी बड़ी शक्तियां किसी न किसी के पक्ष में युद्ध करे तो वह तनाव विश्व युद्ध में बदल जाता है। 
जैसे - प्रथम विश्व युद्ध (1914 से 1918 तक)


युद्ध के स्थान पर शांति क्यों आवश्यक है ?

शांति एक आवश्यक आवश्यकता है, जो मानव जाति को विकास के पथ पर अग्रसर करती है।
वर्तमान में परमाणु हथियारों में इतनी क्षमता है, कि वे सम्पूर्ण मानवता का विनाश कर सकते हैं। ऐसे में मानव सभ्यता की रक्षा हेतु शांति आवश्यक है।
• शांति एक आवश्यक तथा प्राकृतिक सामाजिक स्थिति है, जबकि युद्ध अप्राकृतिक है।
• युद्ध से जहाँ आर्थिक, सामाजिक क्षति होती है, वहीं शांतिकाल में आर्थिक तथा सामाजिक उन्नति होती है।

शांति स्थापित करने के उपाय
शांति स्थापित करने के निम्न उपागम हैं -

शांति स्थापित करने के यथार्थवादी उपागम - इस नीति में शांति स्थापना हेतु विभिन्न देश कूटनीतिक संबंधों का प्रयोग करते हैं। इस उपागम में राजनय की क्षमता अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। जैसे हाल ही में जारी भारत-चीन सीमा विवाद को कूटनीतिक वार्ता के माध्यम सेे सुलझाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

शांति स्थापित करने के उदारवादी उपागम - इस विचारधारा में शांति स्थापित करने में अंतर्राष्ट्रीय विधि तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओ की भूमिका पर विशेष बल दिया जाता है। 
यह नीति अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका को महत्वपूर्ण मानती है। जैसे - संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियान।

शांति स्थापित करने के मार्क्सवादी उपागम - इस विचारधारा में आर्थिक असमानता को संघर्ष का कारण माना जाता है। ऐसे में शांति स्थापित करने के लिए आर्थिक समानता पर बल दिया जाता है। इसलिए विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठन गरीब देशों को आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं।


शांति स्थापित करने के सम्मुख चुनौतियां

1. अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की विश्वसनीयता पर प्रश्न - अंतर्राष्ट्रीय संगठन पक्षपात करते हैं। जैसे - हाल ही में कोरोना के मामले पर विश्व स्वास्थ्य संगठन पर चीन का पक्ष लेेेने का आरोप लगा।

2. अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में सुधारों की अवहेलना 
आईएमएफ, विश्वबैंक तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में कुछ देशों का प्रभाव स्थापित है। इन संस्थाओ के निर्माण से लेकर आज के समय तक विश्व की परिस्थितियां बदल चुकी हैं। कई अन्य देश आज इन संगठनों में प्रभावी देशों से अधिक शक्तिशाली व प्रभावशाली हो गए हैं। जैसे - वर्तमान में भारत विभिन्न क्षेत्रों (जनसंख्या, क्षेत्रफल, सेना, अर्थव्यवस्था) में ब्रिटेन से आगे है, परंतु संयुक्त राष्ट्र में वीटो शक्ति ब्रिटेन के पास है, भारत के पास नहीं। 
अतः वर्तमान परिस्थितियों में अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का पुनर्गठन होना चाहिए, परंतु विशेषाधिकार प्राप्त देशों द्वारा लगातार इन सुधारों की अवहेलना की जा रही है, जो संघर्ष को जन्म दे रही है।

3. शक्तिशाली देशों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय नियम-कानूनों की अवहेलना
चीन तथा अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश लगातार अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, संयुक्त राष्ट्र के नियमों तथा अंतर्राष्ट्रीय समझौतों की अवहेलना करते हैं।
जैसे - अमेरिका द्वारा पेरिस संधि से हटना, ईरान पर एकतरफा प्रतिबन्ध लगाना, चीन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को नहीं मानना।

4. संरक्षणवाद
संरक्षणवाद की अवधारणा के फलस्वरूप राष्ट्रीय लाभ को आधार बनाकर अंतर्राष्ट्रीय नियमो का उलंघन करना भी संघर्ष का कारण बनता है।
जैसे - अमेरिका पेरिस संधि से स्वयं को अलग कर चुका है तथा फ्रांस द्वारा घोषणा की गई है, कि जो पेरिस संधि को नहीं मानेंगे, उनसे फ़्रांस का आर्थिक संबंध नहीं होगा।
इस प्रकार हितों का टकराव भी संघर्ष का कारण बनता है।

5. धार्मिक तथा नृजातीय श्रेष्ठता की भावना
अधिकतर आतंकवादी तथा अलगाववादी संगठन इसी भावना से ग्रस्त होकर संघर्ष को बढ़ावा देते हैं।


शांति स्थापित करने में भारत की भूमिका 

1. भारत की विचारधारा
भारत ने सम्पूर्ण विश्व को वसुधैव कुटुंबकम, अहिंसा परमो धर्म:, सर्व धर्म समभाव जैसी विचारधाराएं दी है। जो शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व पर आधारित है और विश्व में शांति स्थापित करने में सहायक है।

2. भारत की अंतर्राष्ट्रीय नीति
अंतर्राष्ट्रीय विधियों का पालन, गुटनिरपेक्षता की नीति, पंचशील के सिद्धांत, पर्यावरण के लिए प्रतिबद्धता जैसी भारत की नीतियां विश्व में शांति स्थापित करने में सहायक है। 

3. भारत की कूटनीति 
वर्तमान में विश्व के सभी बड़े देशों से भारत के बेहतर सम्बन्ध हैं। जैसे - भारत के अमेरिका के साथ-2 ईरान से भी अच्छे संबंध हैं।
अतः भारत विभिन्न संघर्षो में मध्यस्थ की भूमिका निभाकर विश्व शांति स्थापित करने में अपना योगदान दे सकता है।

4. भारत की शक्ति
भारत को हिन्द तथा प्रशांत महासागर में दक्षिण पूर्व एशिया के देश सुरक्षा प्रदाता के रूप में देखते हैं, जो कहीं न कहीं इन क्षेत्रों में आक्रामकता को प्रतिसंतुलित करता है।

 
पिछले सौ वर्षों के इतिहास में विश्व ने दो महायुद्धों को झेला  है। उनसे उत्पन्न कठिनाइयों, संकटो तथा विनाश को महसूस किया है।
ऐसे में यह आवश्यक है, कि सभी देश शांतिपूर्ण सह-अस्तिव के सिध्दांत पर चलें।
सभी कारको को यह समझना होगा की शांति संकट नहीं है, जिसे टाला जा सके, बल्कि यह आवश्यकता है, जो मानवीय विकास का आधार है।

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