आपका स्वागत है, डार्क मोड में पढ़ने के लिए ऊपर क्लिक करें PDF के लिए टेलीग्राम चैनल DevEduNotes2 से जुड़े।

गांधी जी का प्रेरक प्रसंग - दान का सही अर्थ

गांधीजी का प्रेरक प्रसंग


सेठ ने गांधीजी से समझा दान और व्यापार का अंतर

महात्मा गांधी के पास अनेक व्यक्ति अपनी विभिन्न प्रकार की समस्याएं लेकर पहुंचते थे। चूंकि गांधीजी का जनसंपर्क अत्यंत विशुद्ध था और उनका स्वभाव भी उदार व सहयोगी था, इसलिए आम जनता से लेकर खास लोगों तक कोई भी उनके पास आने में संकोच नहीं करता था। 
गांधी जी जब पार्टी के कार्यो से निवृत्त हो अवकाश पर रहते तो लोगों से भेंट करने का उनका सिलसिला चल पड़ता। ऐसे ही एक बार गांधीजी के पास एक सेठ जी आए। गांधी जी उनका चेहरा देखकर समझ गए कि वह काफी परेशानी में है।
गांधीजी ने उनसे बड़े स्नेह से उनकी समस्या के विषय में पूछा तो वह शिकायती लहजे में बोले - देखिए न बापू दुनिया की कितनी कपटी है। मैंने पचास हजार रुपए लगाकर एक धर्मशाला बनवाई, धर्मशाला बनने पर मुझे  ही उसकी प्रबंध समिति से अलग कर दिया गया। जब तक वह नहीं बनी थी, तब तक वहां कोई नहीं आता था और अब बन जाने पर पचासों उस पर अधिकार जताने आ गए हैं।
गांधी जी ने मुस्कुराकर समझाया दान का सही अर्थ न समझ पाने के कारण आपको दुःख हो रहा है। 
किसी चीज को देकर कुछ पाने की इच्छा दान नहीं ,व्यापार हैं। और जब आपने व्यापार किया है, तो लाभ और हानि दोनों के लिए आपको तैयार रहना चाहिए। 
व्यापार में लाभ भी हो सकता है और हानि भी गांधी जी की बात सुनकर सेठ जी को अपनी गलती का एहसास हुआ। 

"सार यह है कि दान तभी फलितार्थ होता है जब वह प्रतिदान की इच्छा से रहित हो। निस्वार्थ और निरपेक्ष भाव से किया गया दान अपने सही आशय को पूर्ण करता है।"

गांधी जयंती 2020
मोहनदास करमचंद गांधी यानि महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था।
• महात्मा गांधी जी को भारत का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। 
• 30 जनवरी को नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इसलिए हर वर्ष भारत में 30 जनवरी को शहीद दिवस (Martyr's Day) मनाया जाता है।

SAVE WATER

Post a Comment

0 Comments