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कृषि विधेयक 2020

कृषि विधेयक 2020

कृषि विधेयक 2020

सितंबर 2020 में कृषि सुधार से संबंधित तीन बिल पारित किए गए (राष्ट्रपति से मंजूरी प्राप्त, अतः ये अब कानून बन चुके हैं) जिनका पंजाब ,हरियाणा ,उत्तर प्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों में किसानों एवं विपक्षी दलों द्वारा विरोध किया जा रहा है।
ये विधेयक केंद्र सरकार द्वारा जून 2020 में कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु लाए गए अध्यादेशों की जगह लेंगे।

नोट - कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस शासित राज्यों को केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के विरुद्ध भारतीय संविधान के अनुच्छेद 254 (2) के तहत अपने-अपने कानून पारित करने की सलाह दी है।

अनुच्छेद 254 (2) 
यह अनुच्छेद अनुसूची 7 के तहत समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर राज्य विधायिका को संसद द्वारा पारित कानून के विरुद्ध कानून बनाने की अनुमति देता है।
• ऐसे कानून को राष्ट्रपति की मंजूरी आवश्यक होती है। राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने पर राज्य के कानून को प्रभावी माना जाएगा और उस राज्य में संबंधित केंद्रीय कानून लागू नहीं होगा।
• गौरतलब है, कि कृषि समवर्ती सूची का विषय है। इसलिए पंजाब जैसे राज्य अपना कानून पारित कर सकते हैं।


1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक - 2020

 The farmers produce trade and commerce (promotion and facilitation) bill -2020

इस विधेयक के प्रावधान -
* किसान व व्यापारी राज्यों में स्थित कृषि मंडी / APMC के बाहर अपने उत्पादों की खरीद-बिक्री कर सकते हैं।
APMC= agriculture produce Market committee  (कृषि उत्पाद बाजार समिति) 

* राज्य के भीतर अथवा बाहर किसान उत्पादों के व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। 
* व्यापार व परिवहन लागत को कम करके किसानों को उनके उत्पादों का अधिक मूल्य दिलवाया जाएगा। 
* ई-ट्रेडिंग हेतु सुविधाजनक तंत्र विकसित किया जाएगा।

किसानों की मौजूदा स्थिति -
* किसान राज्य सरकार की कृषि
मंडियों में अपनी फसल कमीशन एजेंट अथवा आढ़तियों के माध्यम से बेचने हेतु मजबूर होते हैं। यह आढ़तिये उत्पाद बिक्री से मिलने वाली रकम का लगभग 3% हिस्सा कमीशन के तौर पर ले लेते हैं।
*  FCI (food corporation of India) समेत अन्य सरकारी एजेंसियां 60-90 दिनों तक एमएसपी के आधार पर किसानों से फसलें खरीदती है। 
* किसानों के पास भंडारण व्यवस्था नहीं होने से वे फसल की कीमत अच्छी होने का इंतजार नहीं कर सकते हैं एवं अक्सर कम कीमत पर ही फसल को बेचने हेतु मजबूर हो जाते हैं।

इस नए कानून से किसानों को होने वाला फायदा :- 
* किसान अपने लिए बाजार का चुनाव कर सकते हैं।
* किसान अपने राज्य अथवा दूसरे राज्य में स्थित कोल्ड स्टोर, भंडारण गृह एवं प्रसंस्करण इकाइयों को भी अपना कृषि उत्पाद सीधे भेज सकते हैं। 
* फसलों की सीधी बिक्री से आढ़तियों अथवा मिडिलमैन को कमीशन नहीं देना पड़ेगा।
* किसानों को परिवहन शुल्क, सेस या लेवी नहीं देनी पड़ेगी।
* इसके बाद मंडियों को ज्यादा प्रतिस्पर्धी होना होगा। प्रतिस्पर्धी डिजिटल व्यापार को भी प्रोत्साहन मिलने से पारदर्शिता अधिक होगी एवं इसका सीधा लाभ किसानों को मिलेगा और उनकी आय में वृद्धि होगी।

विरोध का कारण:- 
* न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) आधारित खरीद प्रणाली एवं एपीएमसी /कृषि मंडियों के बंद होने की आशंकाएं हैं। 
* ई-नाम जैसे सरकारी ई-ट्रेडिंग पोर्टल  को भी नुकसान होगा क्योंकि इनका कारोबार कृषि मंडियों पर ही आधारित होता है।
* आढ़तियों का एकाधिकार एवं कमीशन से होने वाला मुनाफा खत्म हो जाएगा।
* राज्य सरकारों को मंडी शुल्क के नाम पर प्राप्त होने वाला राजस्व भी समाप्त हो जाएगा। विशेषतः पंजाब, हरियाणा व पश्चिमी उत्तर प्रदेश से।
* राज्यों में सत्तारूढ़ दल मंडी शुल्क के नाम पर होने वाली कमाई को नहीं खोना चाहते हैं।


2. मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा विधेयक - 2020

The farmers (empowerment and protection) agreement on price assurance and farm services bill -2020

इस विधेयक के प्रावधान:- 
* किसानों को कृषि कारोबार करने वाली कंपनियों, प्रसंस्करण यूनिट, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों व संगठित खुदरा विक्रेताओं से सीधे जोड़ना
* कृषि उत्पादों की पूर्व में कीमत तय करके व्यापारियों से करार या अनुबंध (contract)  की सुविधा प्रदान करना ।
* सीमांत एवं छोटे किसानों को समूह व अनुबंधित कृषि का लाभ देना।

Note - अनुबंधित कृषि को ठेका खेती या संविदा कृषि अथवा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग भी कहते हैं।
         - देश के 86% किसानों के पास 5 हेक्टेयर से भी कम भूमि है।

* बाजार की अनिश्चितता के खतरे का नुकसान किसानों के बजाय प्रायोजको अथवा कंपनियों पर ही निर्धारित करना। 
* अधिक उत्पादन हेतु किसानों तक आधुनिक प्रौद्योगिकी पहुंचाना।
* विपणन (marketing) की लागत को कम करके किसानों की आय को बढ़ाना। 
* 30 दिनों के भीतर विवाद के निपटारे की व्यवस्था करना। 

Note - विवाद के निपटारे हेतु SDM स्तर के अधिकारी या उसके द्वारा नियुक्त  arbitration committee को अधिकृत किया गया है।  (अब न्यायालय में ऐसे विवादों पर सुनवाई नहीं होगी।)
 
अनुबंध कृषि (contract farming) की मौजूदा स्थिति:- 
* मौजूदा अनुबंध कृषि का स्वरूप अलिखित है। फिलहाल निर्यात होने लायक आलू ,गन्ना, कपास ,चाय, कॉफी व फूलों के उत्पादन हेतु ही कॉन्ट्रैक्ट किया जाता है। 
कुछ राज्यों में अनुबंध कृषि हेतु नियम भी बनाए हुए हैं।

इस विधेयक से किसानों को होने वाला फायदा:- 
* किसान आपसी सहमति के आधार पर फसल की कीमत तय करते हुए उसकी बिक्री हेतु प्रसंस्करण यूनिट, थोक विक्रेता एवं निर्यातक आदि से समझौता कर सकते हैं। जिसके जरिए किसानों को फसल बोने से पहले उसके न्यूनतम मूल्य की गारंटी मिल जाएगी अर्थात किसानों का जोखिम अब खरीददारों का होगा।
* किसान फसल की बुवाई से पहले रणनीति तय करके उसके अनुरूप बीज, खाद आदि की खरीद कर सकेंगें।
* फसल का बाजार मूल्य अगर अधिक हो जाता है, तो खरीददारों को उसी के अनुरूप भुगतान करना होगा चाहे इस समझौते में उत्पाद की कीमत कम ही क्यों न तय हुई हो। विवाद होने पर तय समय सीमा में उसका निस्तारण किया जाएगा।
* कृषि क्षेत्र में शोध व विकास (R & D) कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलेगा एवं अनुबंधित किसानों को सभी प्रकार के कृषि उपकरणों की सुविधाजनक आपूर्ति सुनिश्चित होगी।
* कृषि उत्पादों की गुणवत्ता सुधरेगी एवं निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा ।
* अनुबंधित किसानों को फसल बेचने में आसानी होगी एवं समय पर भुगतान मिल सकेगा।

विरोध की वजह :-
* अनुबंधित कृषि समझौते में किसानों का पक्ष कमजोर रहने से वे अपने अनुरूप मोलभाव नहीं कर पाएंगे।
* नए कानून से कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों अथवा कॉरपोरेट्स के हाथों में चला जाएगा जिसका नुकसान किसानों को ही उठाना पड़ेगा।
* बड़ी कंपनियां छोटे किसानों से समझौता नहीं करेगी।


3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक - 2020

The essential commodities (amendment) Bill -2020

इस विधेयक के प्रावधान:- 
* अनाज, दलहन, तिलहन, प्याज, आलू आदि को आवश्यक वस्तु की सूची से हटाया जाएगा केवल आपातकालीन स्थितियों में ही उत्पादों के संग्रह की सीमा को तय किया जा सकेगा‌। 
इस प्रावधान से कृषि क्षेत्र में निजी एवं प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
* उत्पादों की कीमतों में स्थिरता आएगी एवं प्रतिस्पर्धा का माहौल बनेगा। भंडारण गृह एवं खाद्यान्न आपूर्ति श्रृंखला के आधुनिकीकरण में भी निवेश पड़ेगा।
*  युद्ध, सूखा, बाढ़ जैसी आपातकालीन स्थितियों को छोड़कर वस्तुओं के उत्पादन, भंडारण एवं वितरण पर सरकारी नियंत्रण खत्म होगा। 

 Note :- केंद्र सरकार द्वारा 1955 ईस्वी में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने और उन्हें जमाखोरी व कालाबाजारी से बचाने हेतु आवश्यक वस्तु अधिनियम पारित किया गया था। इसमें आवश्यक वस्तु की कोई विशेष परिभाषा नहीं दी गई है।
किसी वस्तु को आवश्यक वस्तु घोषित करने से सरकार उस वस्तु के उत्पादन, आपूर्ति एवं वितरण को नियंत्रित करने के साथ उस पर स्टॉक लिमिट (संग्रह की सीमा) भी लागू कर सकती है।

इस अधिनियम से किसानों को होने वाला फायदा :- 
* खाद्य आपूर्ति श्रृंखला के प्रति बड़ी कंपनियां आकर्षित होंगी जिससे कोल्ड स्टोर एवं भंडारण ग्रहों की व्यवस्था में सुधार होगा। 
* खाद्य आपूर्ति श्रंखला के अच्छी स्थिति में होने से कीमतों में स्थिरता भी बनी रहेगी। 
* अच्छी भंडारण सुविधा के चलते फसलें बर्बाद होने से बचेगी
* फसलों को लेकर किसानों की अनिश्चितताएं खत्म हो जाएगी।

इस अधिनियम के विरोध का कारण :- 
* असामान्य परिस्थितियों में तय की गई कीमत इतनी अधिक होगी कि उसे वहन करना आम आदमी के वश में नहीं होगा।
* आवश्यक खाद्य वस्तुओं के भंडारण की छूट से कॉरपोरेट क्षेत्र फसलों की कीमत को कम कर सकते हैं।

उपर्युक्त तीनों विधेयकों पर सरकार का तर्क :- 
* सरकार ने तीनों कृषि विधेयकों को आजादी के बाद किसानों को कृषि में एक नई आजादी देने वाला बताया है। 
सरकार का मानना है कि इन कृषि सुधारों से किसान और अधिक सशक्त बनेगा।
* एमएसपी एवं कृषि मंडीयों को समाप्त नहीं किया जाएगा।
"एक देश एक कृषि बाजार" की अवधारणा को बढ़ावा मिलेगा।

सुझाव
देश के अन्नदाता को आत्मनिर्भर और अधिक सक्षम बनाने एवं किसानों द्वारा किए जा रहे विरोध को शांत करने हेतु सरकार द्वारा निम्न प्रयास  किए जाने चाहिए - 
 1. सरकार द्वारा इन विधेयकों के अस्पष्ट प्रावधानों में स्पष्टता लानी चाहिए। जैसे-  न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)  को कानूनी अधिकार बनाया जाना चाहिए। 
2. विरोध कर रहे किसानों तक पहुंचकर उन्हें कृषि में सुधार की जरूरत को समझाना चाहिए।
3. असंगठित छोटे किसानों को नुकसान से बचाने हेतु मजबूत संस्थागत व्यवस्था बनाई जानी चाहिए।
4. कृषि के आधारभूत ढांचे में सुधार करने के साथ आधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रयोग भी कृषि क्षेत्र में किया जाना चाहिए। 
5. एमएसपी के संदर्भ में स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करना चाहिए।
6. E-NAM जैसे प्रयासों के माध्यम से ई-ट्रेडिंग को बढ़ावा देना चाहिए।
7. कृषि में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देने के साथ-साथ कृषि मंडियों की पहुंच में विस्तार हो इसके लिए भी सरकार द्वारा प्रयास किए जाने चाहिए।

अन्य तथ्य - 
MSP = minimum support price ( न्यूनतम समर्थन मूल्य)
कृषि मूल्य एवं लागत आयोग (CACP) द्वारा फसलों का एमएसपी निर्धारित किया जाता है। CACP  कृषि मंत्रालय के अधीन एक संस्था है।  यह वैधानिक निकाय नहीं है।
 (CACP= commission for agricultural cost and prices)

वर्तमान में 23 फसलों हेतु एमएसपी निर्धारित है। 
7 प्रकार के अनाज। जैसे- धान, गेंहू, मक्का, बाजरा, ज्वार, जौ।
5 प्रकार की दाले। जैसे- चना ,अरहर , उड़द , मूंग , मसूर ।
7 तिलहन फसलें ।
4 नकदी फसलें जैसे- कपास , जूट आदि।

कृषि वर्ष  (farm year)- 1 जुलाई से 30 जून तक।
गन्ने की फसल हेतु उचित व पारिश्रमिक मूल्य (FRP=fair and remunerative price) निर्धारित किया जाता है। 

शांता कुमार समिति के अनुसार केवल 6% किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिल पाता है।

ई-राष्ट्रीय कृषि बाजार (E-NAM)
E-NAM = ELECTRONIC-NATIONAL AGRICULTURAL MARKET.
ई-राष्ट्रीय कृषि बाजार (E-NAM) को अप्रैल 2016 में शुरू किया गया था। यह किसानों, व्यापारियों और ख़रीददारों को ऑनलाइन ट्रेडिंग (व्यापार) और आसान मार्केटिंग द्वारा बेहतर कीमत पाने में मदद करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। यह कृषि उपज के लिए एक ऑनलाइन ट्रेडिंग (व्यापार) मंच है।

लाभ
किसानों के लिए, यह बिक्री के अत्यधिक विकल्प प्रदान करता है। यह गोदाम आधारित बिक्री के माध्यम से किसानों की पहुंच बाजारों तक बढ़ाएगा और इस तरह से किसानों को अपनी उपज को बेचने के लिए मंडी तक ले जाने की की ज़रूरतनहीं होगी।
स्थानीय व्यापारी के लिए, यह एक बड़े राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचने का अवसर प्रदान करता है।
थोक ख़रीददारों, प्रोसेसर्स, निर्यातक आदि कोराष्ट्रीय कृषि बाजार(NAM)मंच के माध्यम से स्थानीय मंडी / बाजार स्तर पर सीधे ट्रेडिंग (व्यापार) में भाग लेने में सक्षम होने से लाभ होता है, जिससे उनके बिचौलियों का ख़र्च कम हो जाता है।
यह देश भर में प्रमुख कृषि पण्यों/वस्तुओं (Agricultural commodities) में मूल्य श्रृंखलाओं के उद्गमन की सुविधा प्रदान करता है तथा वैज्ञानिक भंडारण और कृषि उपजों की आवाजाही को बढ़ावा देने में मदद करता है।

APMC act = Agricultural Produce Marketing Committee Act.
इस एक्ट के अंतर्गत कृषि उपज केवल निर्धारित मंडियों में पंजीकृत अथवा लाइसेंस प्राप्त व्यापारियों को ही बेची जा सकती है। इसी कारण परिवहन की लागत बढ़ी है। 
इन लाइसेंस प्राप्त व्यापारियों द्वारा समूह बनाकर किसानों को कम कीमत पर फसल बेचने हेतु मजबूर किया जाता है।

नोट - केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को पंजाब सरकार ने 20 अक्टूबर को रद्द कर दिया। इसके साथ पंजाब केंद्र के इन कानूनों को रद्द करने वाला देश का पहला राज्य भी बन गया। 

• पंजाब विधानसभा में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 20 अक्टूबर को केंद्र सरकार के कृषि बिलों और प्रस्तावित इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल के खिलाफ प्रस्ताव (रेजोल्यूशन) पेश किया, जिसे पारित कर दिया गया।

पंजाब सरकार ने ये तीन बिल पेश किए -
1. फार्मर्स प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) स्पेशल प्रोविजंस एंड पंजाब अमेंडमेंट
बिल
2. द एसेंशियल कमोडिटीज (स्पेशल प्रोविजंस एंड पंजाब
अमेंडमेंट) बिल
3. द फार्मर्स (एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन) एग्रीमेंट ऑन
प्राइस एश्योरेंस एंड फार्म सर्विसेज (स्पेशल प्रोविजंस
एंड पंजाब अमेंडमेंट बिल)

राजस्थान में तीन कृषि संशोधन विधेयक
31 अक्टूबर को राजस्थान सरकार ने केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ विधानसभा में तीन कृषि संशोधन विधेयक पेश किए।
• इन विधेयकों का उद्देश्य केंद्र द्वारा हाल ही में पारित कृषि कानूनों को निष्प्रभावी करना है।
• किसानों के उत्पीड़न पर 3-5 साल की कैद और 5 लाख रूपए तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
1. कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) (राजस्थान संशोधन) विधेयक 2020
2. कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार (राजस्थान संशोधन) विधायक 2020
3. आवश्यक वस्तु (विशेष उपबंध और राजस्थान संशोधन) विधेयक 2020
• पंजाब और छत्तीसगढ़ के बाद केंद्रीय कृषि कानून को निष्प्रभावी करने वाला राजस्थान तीसरा राज्य बना।

किसान आंदोलन
केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में देश के विभिन्न हिस्सों के किसान आंदोलनरत है।
इसके तहत किसानों ने 8 दिसंबर 2020 को भारत बंद का आह्वान किया है। 

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