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भारत का संवैधानिक विकास

भारत का संवैधानिक विकास, भारत की राजव्यवस्था

भारत का संवैधानिक विकास

1600 ई. में लंदन में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना हुई।
महारानी एलिजाबेथ प्रथम के चार्टर द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत के साथ व्यापार करने का अधिकार प्रदान किया गया।

• मुगल शासक जहांगीर के काल में दो अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी की तरफ से भारत आए -
1. 1608 में कैप्टन विलियम हॉकिंस जहांगीर के दरबार में आया। और सूरत में एक फैक्ट्री स्थापित की।
2. 1615 में सर टॉमस रो भारत आया।
अजमेर में जहांगीर से मिला और व्यापार की अनुमति प्राप्त की।

1764 के बक्सर के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने बंगाल पर शिकंजा कस लिया।

• अंग्रेजों ने व्यापार की शुरुआत बंगाल से की थी तथा बंगाल से ही गवर्नरों की नियुक्ति करना शुरू किया।
बंगाल का पहला गवर्नर लॉर्ड क्लाइव था।

अंग्रेजों ने समय-समय पर कई एक्ट पारित किए जो भारतीय संविधान के विकास में सहायक बनें।


रेग्युलेटिंग एक्ट 1773

इस एक्ट के माध्यम से कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित किया गया।
बंगाल के गवर्नर को गवर्नर जनरल बना दिया।
गवर्नर जनरल की सहायता के लिए चार सदस्यीय कार्यकारी परिषद का गठन किया गया। इस परिषद में निर्णय बहुमत द्वारा लिए जाने की भी व्यवस्था की गयी। बराबर वोट होने पर गवर्नर जनरल निर्णायक मत देता था।
गवर्नर जनरल - वारेन हेस्टिंग्स 
सदस्य - क्लैवरिंग, मॉनसन, बरवैल तथा फ्रांसिस  
• मद्रास तथा बम्बई प्रेजीडेंसियों को बंगाल प्रेजीडेन्सी के अधीन कर दिया गया तथा बंगाल के गवर्नर जनरल को तीनों प्रेजीडेंसियों का गवर्नर जनरल बना दिया गया।
वारेन हेस्टिंग्स बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल बना। (बंगाल का अंतिम गवर्नर भी यही था)

• इस अधिनियम द्वारा कलकत्ता (बंगाल) में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गयी।
इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा तीन अन्य न्यायाधीश थे।
प्रथम मुख्य न्यायाधीश - सर एलिजा इम्पे
 तीन अन्य न्यायाधीश - चैंबर्स, लिमेंस्टर, हाइड

• कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया गया।

एक्ट ऑफ सैटलमेंट
रेगुलेटिंग एक्ट की कमियों को दूर करने के लिए ब्रिटिश संसद ने 1781 में एक संशोधित अधिनियम पारित किया जिसे एक्ट ऑफ सैटलमेंट कहते है।


1784 ई. का पिट्स इंडिया एक्ट

इस एक्ट से संबंधित विधेयक ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री पिट द यंगर ने संसद में प्रस्तुत किया।
•  इसने कंपनी के राजनैतिक और वाणिज्यिक कार्यों को अलग-अलग कर दिया।
व्यापारिक कार्यों का नियंत्रण - कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स द्वारा
राजनीतिक कार्यों का नियंत्रण - बोर्ड ऑफ कंट्रोल द्वारा
• गवर्नर की कार्यकारी परिषद में सदस्यों की संख्या घटाकर 4 से 3 कर दी गई।
• बोर्ड ऑफ कंट्रोल ब्रिटिश की संसदीय समिति थी। इसमें 6 सदस्य होते थे, जिनमें दो ब्रिटिश मंत्री होते थे। (अर्थात ब्रिटिश मंत्रिमंडल के सदस्य कंपनी पर प्रत्यक्ष रूप से अधिकार रखने लगे)
• भारत में कंपनी के अधीन क्षेत्र को पहली बार ब्रिटिश आधिपत्य का क्षेत्र कहा गया।

विशेष अधिनियम 1786
गवर्नर जनरल कॉर्नवालिस को वीटो पावर दिया गया।

नोट - पिट्स इंडिया एक्ट विवाद को लेकर प्रधानमंत्री लॉर्ड नॉर्थ की गठबंधन सरकार को त्यागपत्र देना पड़ा। यह भारत का एकमात्र अधिनियम है, जिसके विवाद में ब्रिटेन की सरकार गिरी।
• वारेन हेस्टिंग्स 1785 में इंग्लैंड पहुंचा तो एडमंड बर्क द्वारा उसके ऊपर महाभियोग लगाया गया।
वारेन हेस्टिंग्स एकमात्र गवर्नर जनरल थे, जिन पर इंग्लैंड लौटने के बाद महाभियोग चलाया गया।

1793 ई. का चार्टर अधिनियम
• कंपनी के कर्मचारियों तथा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों को भारतीय राजस्व से वेतन की व्यवस्था की गई।
• सभी गवर्नर जनरल के लिए वीटो पावर दिया गया।


1813 ई. का चार्टर अधिनियम

• ईस्ट इंडिया कंपनी का व्यापारिक एकाधिकार समाप्त कर दिया गया।
परंतु कंपनी को चाय व चीन के साथ व्यापार में एकाधिकार दिया गया।
• कंपनी भारत में शिक्षा के विकास के लिए प्रतिवर्ष 1 लाख रुपए खर्च करेगी।
ईसाई मिशनरीज भारत में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार कर सकते हैं।
• इस अधिनियम द्वारा कुछ सीमाओं के अधीन ब्रिटेन के आम नागरिकों को भारत के साथ व्यापार करने की अनुमति प्रदान की गई।


1833 ई. का चार्टर अधिनियम

• कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिए गए।
• कंपनी ने भारत में शासन स्थापित करना अपना उद्देश्य बनाया। अर्थात कंपनी पूर्णतया एक राजनीतिक इकाई बन गई।
• बंगाल के गवर्नर जरनल को भारत का गवर्नर जनरल बनाया गया।
भारत का प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक बना।
• गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में एक विधि सदस्य जोड़ा गया। (कुल सदस्य 3+1 =4)
विधि सदस्य को मतदान का अधिकार नहीं था।
दास प्रथा को समाप्त किया जाएगा। (1843 में एलनबरो ने समाप्त की)
• किसी भी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा।
• मद्रास और बॉम्बे के गवर्नरों की कानून बनाने की शक्तियां समाप्त कर दी गई।

नोट - प्रथम विधि सदस्य लॉर्ड मैकाले को नियुक्त किया गया।
साथ ही भारतीय कानूनों का वर्गीकरण करके लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में विधि आयोग का गठन किया गया।
लॉर्ड मैकाले को भारत में अंग्रेजी शिक्षा का जनक कहा जाता है।


1853 ई. का चार्टर अधिनियम

• कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स में सदस्यों की संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी गई।
• गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में विधि सदस्य को स्थाई कर दिया गया।
कार्यकारी परिषद के विधायी कार्यों को प्रशासनिक कार्यों से पृथक करने की व्यवस्था की गयी।
• कानून निर्माण में सहायता हेतु गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में 6 नए सदस्य लिए जाएंगे।
यहां से भारत की संसद का इतिहास प्रारंभ होता है।
• उच्च पदों (सिविल सेवकों) के लिए लिखित परीक्षा का आयोजन किया जाएगा। (यहां से ICS लिखित परीक्षा का इतिहास प्रारंभ होता है)
1854 में मैकाले समिति बनाई गई, जो सिविल सेवाओं से संबंधित थी।

नोट - 1854 में प्रस्तुत चार्ल्स वुड डिस्पैच को भारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टा कहा जाता है।
1864 में सत्येंद्र नाथ टैगोर प्रथम भारतीय आईसीएस बने।


1858 ई. का भारत शासन अधिनियम

• 1857 के विद्रोह के कारण कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया तथा भारत का शासन सीधे ब्रिटिश क्राउन (महारानी) के हाथों में चला गया।
1858 से 1947 तक ताज का शासन रहा।
• भारत के शासन को अच्छा बनाने के कारण इस अधिनियम को अच्छा अधिनियम तथा ताज (Crown) का अधिनियम भी कहा जाता है।
• कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स तथा बोर्ड ऑफ कंट्रोल को समाप्त कर दिया गया।
• गवर्नर जनरल का पदनाम बदलकर वायसराय कर दिया गया। (ब्रिटिश क्राउन का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि)
भारत का प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिंग बना।
• वायसराय की सहायता के लिए भारत सचिव पद सृजित किया गया। यह ब्रिटिश कैबिनेट का मंत्री होता था।
प्रथम भारत सचिव चार्ल्स वुड बना।
• भारत सचिव की सहायता के लिए 15 सदस्यीय भारत परिषद का गठन किया गया।

नोट - भारत का अंतिम गवर्नर जनरल + प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिंग था।
भारत का अंतिम गवर्नर सी राजगोपालाचारी था।


1861 ई. का भारत परिषद अधिनियम

• गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद 5वां सदस्य जोडा गया।
• विभागीय प्रणाली (मंत्रिमंडलीय व्यवस्था Portfolio system) की शुरुआत की गई।
• वायसराय को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई।
• मुंबई व मद्रास प्रेसिडेंसियों को पुन: विधायी शक्तियां प्रदान कर भारत में विकेंद्रीकरण की शुरुआत की गई।
1773 के रेगुलेटिंग एक्ट में केंद्रीयकरण की शुरुआत की गई थी।
• कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत हुई।
• कार्यकारी परिषद के अतिरिक्त सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई। ये सदस्य कुलीन भारतीय होते थे, परंतु यह अनिवार्य नहीं था।
न्यूनतम सदस्य - 6
अधिकतम सदस्य -12

नोट - 1862 में लॉर्ड कैनिंग ने तीन भारतीयों बनारस के राजा, पटियाला के महाराजा और सर दिनकर राव को विधान परिषद में मनोनीत किया।


1892 ई. का भारत परिषद अधिनियम

• वायसराय की कार्यकारी परिषद में 1 सदस्य और बढ़ा दिया गया।
• अतिरिक्त सदस्यों की संख्या भी बढ़ाई गई।
न्यूनतम 10 और अधिकतम 16
• अतिरिक्त सदस्यों का अप्रत्यक्ष निर्वाचन व्यापार बोर्ड के सदस्यों, नगर निगम तथा सीनेट द्वारा करवाया जाता था, परंतु चुनाव शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया। (अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली की शुरुआत)
• अतिरिक्त सदस्यों को प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया। ये बजट पर बहस कर सकते थे।


1909 ई. का भारत परिषद् अधिनियम

इस अधिनियम को मार्ले-मिन्टो सुधार भी कहते हैं।
उस समय लॉर्ड मार्ले इंग्लैंड में भारत सचिव और लॉर्ड मिंटो भारत में वायसराय थे।
• इस अधिनियम के द्वारा भारत में पहली बार जाति, धर्म व भाषा के आधार पर अलग निर्वाचन क्षेत्र निश्चित किए गए अर्थात इस अधिनियम द्वारा सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली या पृथक निर्वाचन प्रणाली की शुरुआत की गई।
सबसे पहले इस प्रणाली में मुसलमानों को शामिल किया गया है। अर्थात मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे।
लॉर्ड मिंटो को भारतीय सांप्रदायिकता का जनक कहा जाता है।
• भारतीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले की सिफारिशों को इस अधिनियम में जगह दी गई।
• अतिरिक्त सदस्यों को विधायी परिषद में पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया।
• भारतीयों को वायसराय की कार्यकारी परिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया।
सत्येंद्र नाथ सिन्हा वायसराय की कार्यपरिषद का प्रथम भारतीय सदस्य बना।


1919 ई. का भारत शासन अधिनियम

इस अधिनियम को मौन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार भी कहते हैं।
• इस अधिनियम के द्वारा सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार करके सिखों, भारतीय ईसाईयों, आंग्ल-भारतीयों और यूरोपियों को इसमें शामिल किया गया।
महिलाओं को मताधिकार दिया गया।
• केंद्र में द्विसदनात्मक व्यवस्था और प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था प्रारंभ की।
1. राज्य परिषद (वर्तमान में राज्यसभा)
2. केंद्रीय विधान सभा (वर्तमान में लोकसभा)
प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली की शुरुआत की गई।
प्रांतीय विषयों को आरक्षित तथा हस्तांतरित दो भागों में बांटा गया‌
• संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के गठन का प्रावधान किया गया।
यूपीएससी का गठन ली आयोग की सिफारिश पर 1926 में किया गया।
यूपीएससी का प्रथम अध्यक्ष - रॉस बार्कर
• केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया गया।

नोट - द्वैध शासन का जनक लियो कार्टिस को माना जाता है।
मौन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड घोषणा पत्र - 1917
मौन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार - 1919


साइमन कमीशन 1927
1919 के अधिनियम की जांच हेतु 7 सदस्यीय साइमन कमीशन का गठन किया गया।
इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे। इस कारण सभी दलों ने इसका बहिष्कार किया।

नोट - साइमन कमीशन के गठन के समय इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बाल्डवीन तथा भारत सचिव बर्कन हेड थे।
बर्कन हेड ने कहा कि भारतीय संविधान बनाने में सक्षम नहीं है।

नेहरू रिपोर्ट 1928
बर्कन हेड की चुनौती को स्वीकार करते हुए मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में 8 सदस्यीय सर्वदलीय संविधान निर्मात्री समिति का गठन किया गया। जिसने अगस्त 1928 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
• नेहरू रिपोर्ट से असंतुष्ट होकर मोहम्मद अली जिन्ना ने 1929 में अपनी 14 मांगे प्रस्तुत की, जिन्हें जिन्ना का 14 सूत्रीय फार्मूला कहा जाता है।

• साइमन कमीशन के प्रस्तावों पर विचार करने के लिए तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किए गए।

सांप्रदायिक अवार्ड या कम्युनल अवार्ड
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रैमजे मैकडोनाल्ड ने अगस्त 1932 में पृथक निर्वाचन व्यवस्था को दलितों के लिए विस्तारित किया।
दलितों के लिए प्रांतीय विधान मंडलों में 71 सुरक्षित स्थान प्रदान किए गए।

पूना पैक्ट सितंबर 1932
दलितों के लिए अलग निर्वाचन व्यवस्था के कारण गांधी जी ने पुणे की यरवदा जेल में अनशन प्रारंभ कर दिया।
सितंबर 1932 में महात्मा गांधी व भीमराव अंबेडकर के बीच एक समझौता हुआ, जिसे पूना समझौता कहा जाता है‌।
इसके तहत -
• कांग्रेस ने दलितों को प्रांतीय विधानमंडलों में 147/148 सुरक्षित सीटें देने का वादा किया।
• केंद्रीय विधानमंडलों में दलितों को 18% सुरक्षित सीटें दिए जाने की घोषणा की।


भारत सरकार अधिनियम (1935)

यह अधिनियम साइमन कमीशन की सिफारिश पर बनाया गया था।
इस अधिनियम में 321 अनुच्छेद, 10 अनुसूचियां और 14 भाग थे।
वर्तमान भारतीय संविधान में इस अधिनियम का लगभग 60% भाग लिया गया है। अतः इसे लघु संविधान या मिनी संविधान भी कहते हैं।
• पहली बार अखिल भारतीय संघ की स्थापना के प्रयास किए गए। यह 11 ब्रिटिश प्रांतों और 4 चीफ कमिश्नर क्षेत्रों एवं देशी रियासतों से मिलकर बनना था। परंतु रियासतों ने इंकार कर दिया।
प्रांतों में द्वैध शासन समाप्त कर उन्हें स्वायत्तता दी गई।
• केंद्र में द्वैध शासन की शुरुआत की गई।
• केंद्र और राज्यों के बीच पहली बार शक्तियों का विभाजन किया गया।
संघ सूची - 59 विषय - केंद्र
राज्य सूची - 54 विषय - राज्य
समवर्ती सूची - 36 विषय - दोनों कानून बना सकते थे।
अवशिष्ट शक्तियां वायसराय को दी गई।

• सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का और अधिक विस्तार करके इसमें महिलाओं, दलित जातियों और मजदूर वर्ग को भी शामिल किया।

• भारत शासन अधिनियम 1858 द्वारा स्थापित भारत परिषद को समाप्त कर दिया गया।
• भारत में मुद्रा के नियंत्रण एवं साख विस्तार हेतु 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।

• संघीय न्यायालय की स्थापना - 1937
• बर्मा को भारत से अलग किया गया - 1937

नोट - एटली ने 1935 के अधिनियम को अविश्वास का प्रतीक कहा।
जवाहरलाल नेहरू ने इस अधिनियम को दासता का घोषणा पत्र कहा।
पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1935 के अधिनियम के बारे में कहा कि यह अधिनियम बाहर से देखने पर जनतंत्रीय शासन व्यवस्था लगता है, लेकिन अंदर से एकदम खोखला है।
पंडित मदन मोहन मालवीय को महामना भी कहते हैं।


क्रिप्स मिशन - 1942
वेवेल योजना - 1945
कैबिनेट मिशन योजना - 1946
माउंटबेटन योजना - 3 जून 1947

1947 ई. का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम

4 जुलाई 1947 को भारत का स्वतंत्रता विधेयक ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली के द्वारा ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत किया गया, जो 18 जुलाई 1947 को पारित हो गया।

• 14-15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश भारत, पाकिस्तान व भारत नामक दो राष्ट्रों के रूप में आजाद हो गया।
• वायसराय का पद समाप्त कर दिया गया और उसके स्थान पर गवर्नर जनरल का पद सृजित किया गया।
स्वतंत्र भारत के प्रथम व अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन थे।
भारत सचिव के पद को समाप्त कर दिया गया।
• नए संविधान के निर्माण तक 1935 के अधिनियम के अनुसार शासन हुआ।

स्वतंत्र भारत के अंतिम गवर्नर जनरल कौन थे ? - सी राजगोपालाचारी

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