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प्रेरक प्रसंग - तीन उत्तर

कन्फ्यूशियस का प्रेरक प्रसंग

प्रेरक प्रसंग - तीन उत्तर

छठी शताब्दी में कन्फ्यूशियस ने अपने पुत्र कांग ली को समकालीन चिंतक चेन जिकिन के पास शिक्षा लेने के लिए भेजा। दोनों रहस्यदर्शियों के बारे में कहा जाता है, कि किसी ने उन्हें संवाद करते हुए नहीं देखा। मगर दोनों एक-दूसरे का बहुत आदर करते थे। वे एक-दूसरे पर किसी तरह की टिप्पणी नहीं करते थे।

चेन जिकिन ने कन्फ्यूशियस के पुत्र से पूछा, क्या तुम्हारे पिता ने तुम्हें ऐसा कुछ भी सिखाया है, जो हम नहीं जानते ?
नहीं, कन्फ्यूशियस के पुत्र ने कहा, लेकिन एक बार जब मैं अकेला था तो उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं कविता पढ़ता हूं या नहीं ? मेरे मना करने पर वे बोले कि मुझे कविता पढ़नी चाहिए क्योंकि यह आत्मा को दिव्य प्रेरणा के पथ पर अग्रसर करती है।
और एक बार उन्होंने मुझसे देवताओं को अलंकृत करने की रीतियों के बारे में पूछा, मैं यह नहीं जानता था इसलिए उन्होंने मुझे इसका अभ्यास करने के लिए कहा ताकि देवताओं को अलंकृत करने से मैं स्वयं का बोध भी कर सकूं लेकिन उन्होंने यह देखने के लिए मुझ पर नजर नहीं रखी कि मैं उनकी आज्ञाओं का पालन कर रहा हूं या नहीं।

चेन जिकिन ने मन ही मन में कहा, मैंने इससे एक प्रश्न पूछा और मुझे तीन उत्तर मिले। मैंने काव्य के बारे में कुछ जाना।
मुझे देवताओं को अलंकृत करने के विषय में भी ज्ञान मिला और मैंने यह भी सीखा कि ईमानदार व्यक्ति दूसरों की ईमानदारी की छानबीन नहीं करते।

• एक गलती करने के बाद जो उसे सुधारता नहीं वह असल में दूसरी गलती कर रहा होता है - कन्फ्यूशियस

• बुराई को देखना और सुनना ही बुराई की शुरुआत है - कन्फ्यूशियस

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