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कहानी - भानगढ़ किले का रहस्य

भानगढ़ किले का रहस्य

भानगढ़ किले का रहस्य

इतने दिनों से कहां थे यार ? मैंने अपने जिगरी दोस्त नरेन से पूछा। इन दिनों मैं एक खजाने की खोज के चक्कर में पुराने किलों और हवेलियों के खंडहरों में भटक रहा था। फिर कोई खजाना हाथ लगा क्या ? मैंने जिज्ञासा की। उसने कहा लोगों से सुना था कि भानगढ़ के किले में बहुत खजाना गड़ा हुआ है। मैंने सोचा की छुट्टियों के स्पेयर टाइम में क्यों नहीं खजाने की तलाश की जाए, अगर हाथ लग गया तो समझ लो लॉटरी निकल गई। मुझे भी साथ ले लो मैंने रिक्वेस्ट की। मुझे तुम्हें साथ लेने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन सुना है उस खजाने पर प्रेतात्माओं का पहरा है, अगर कोई उस खजाने तक पहुंच भी जाता है, तो दूसरे दिन उसकी लाश ही मिलती है। इसलिए, मैंने तुम्हें साथ लेना ठीक नहीं समझा था। तुम्हारी जिद है, तो तुम भी साथ हो लो। तय हुआ कि किले में खजाने की खोज की जाए। शाम 6:00 बजे बाद वहां किसी को अंदर नहीं जाने दिया जाता। दिन ढलने के साथ ही हम पास की पहाड़ियों में लगे खुशबूदार केवड़े के जंगलों में छुप गए और जब रात का घना अंधेरा किले के आस-पास उतरा तो हम किले के ठीक पीछे वाली पहाड़ी से उतरकर किले के महल में दाखिल हो गए। चारों और रात का सन्नाटा पसरा हुआ था। सर्दियों की बारिश हो चुकी थी। तीखी और तेज हवा बिना खिड़की और दरवाजों वाले खंडहरनुमा महल के कमरों में आकर ठिठरा रही थी। झींगुरों की आवाज और छतों से लटके चमगादड़ों की फड़फड़ाहट के अलावा वातावरण एकदम शांत था।
हम एक बड़े से गलियारे से गुजर कर एक विशाल हॉल में प्रविष्ट हो गए। उसकी छत से टूटे-फूटे झाड़फानूस अब भी  लटके हुए थे। जगह-जगह हॉल के कोनों में मकड़ियों ने जाले बना रखे थे। कई-2 इंच मोटी धुल की चादर पर घुप्प अंधेरे में हम टॉर्च की रोशनी के सहारे आगे बढ़ रहे थे।
उसी हॉल में से एक दरवाजा शायद किसी और कमरे में खुल रहा था। मैं आगे-2 और नरेन ठीक मेरे पीछे-2 चल रहा था। उस कमरे में दाखिल होने के बाद सामने की दीवार में मुझे एक और छोटा दरवाजा नजर आया। शायद महल की इसी भूलभुलैया में कहीं खजाना छुपाया गया है। यह सोचकर मैं उस बंद दरवाजे की ओर बढ़ने ही वाला था, कि लगा किसी ने मेरे कोट के कॉलर को पकड़कर जोर से पीछे खींचा। ये इतना अचानक हुआ था, कि अगर मैं नहीं संभलता तो सिर के बल पीछे की और गिर जाता।
मैंने पलटकर देखा नरेन ठीक मेरे पीछे खड़ा था। यह क्या हरकत है नरेन ? मैंने नाराजगी से पूछा।
जरा पलट कर वापस सामने की ओर देखो सामने एक ट्रैप डोर है, अगर मैंने तुम्हें नहीं रोका होता तो तुम भी मेरी तरह उसमें गिरकर अभी तक मर चुके होते।
क्या मतलब ? ये कहकर मैंने सामने टॉर्च घुमाई तो मेरे से कुछ फासले पर एक बड़ा सा गड्ढा था, एक कदम और आगे बढ़ता तो शायद फिर मैं न जाने किन अंधेरी गहराइयों में खो जाता। मैंने पलटकर नरेन को धन्यवाद देना चाहा, लेकिन उसका  कहीं अता-पता नहीं था। मैंने नरेन को कई बार पूरी ताकत से आवाज लगाई लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। मैंने टॉर्च की रोशनी में उसे जहां भी संभव था, तलाश किया लेकिन नरेन जैसे हवा में पिघल गया था, कोई रिस्पांस नहीं, इतनी सी देर में कहां गायब हो गया नरेन ? रात के 12:00 बजे को थे, अब इन वीरान और बियाबान खंडहरों में मुझे बहुत डर लगने लगा। मैं जल्दी से जल्दी उस मनहूस जगह से गिरते-पड़ते निकलकर भागा‌। रह-रहकर ये विचार आ रहा था कि कहींं किसी मुसीबत में तो नहीं फंस गया नरेेन ? ये सोचकर मैंं चिंतित हो गया, एक बार तो दिल नेे कहा कि वापस खंडहरों मेंं चलकर उसे तलाश किया जाए, लेकिन वीरान और खौफनाक महल के माहौल को देखकर, जिसके किसी भी कोने में मौत छुपी हुई हो सकती थी, दोबारा जाने की हिम्मत नहीं हुई, लेकिन नरेन के कहे हुए शब्दों ने एक बार फिर मेरी बेचैनी बढ़ा दी। जब मैंनेेे उसे कोट का कॉलर पकड़कर अचानक पीछे खींचने की गुस्ताखी के लिए बहुत नाराजगी से पूछा था, तो उसने कहा था, आगेे एक ट्रैप डोर है, जिसमें गिरने से तुम्हें बचाने को ही मैंने तुम्हें पीछे खींच लिया था, वरना तुम भी मेरी तरह कभी के मर गए होते।
इसका क्या मतलब था ? तो क्या नरेन इस दुनिया में नहीं है ? तो फिर मेरे साथ वह कौन था ? बचपन के दोस्त को पहचानने की गलती मैं कैसे कर सकता था ?
इस अजीब रहस्य को बीते कुछ ही दिन बीते थे, कि नरेन अचानक आ धमका। मेरे लिए यह खुशियों से भरा आश्चर्य था। सबसे ज्यादा तो खुशी इस बात की थी कि नरेन मेरा जिगरी दोस्त सही सलामत था। मैंने पूछा नरेन! तुम अचानक इस तरह कहां गायब हो गए थे मुझे उस वीराने में छोड़कर ? डर के मारे अकेले तो मेरी मौत ही हो गई थी। नरेन ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। उसके हमेशा मुस्कुराते रहने वाले चेहरे पर उदासी थी, चेहरा एकदम सफेद हो गया था। उसने मुझसे कहा सोमेन तुम मुझ पर एक एहसान करोगे ? मैंने कहा दोस्ती में ये एहसान शब्द कहां से आ गया ? काम बोलो। मैं हर तरह सेे तुम्हारी मदद करनेेे के लिए तैयार हूं। नरेेन ने बताया महल के खजाने की खोज के दौरान उस ट्रैैप डोर से गिरकर मैं एक बहुत गहरे तहखाने में गिर गया था। गिरनेेे के तुरंत बाद मैंने एक घरघराहट की आवाज सुनी, देखा जिस ट्रैैप डोर से मैं गिरा था, उसका ढक्कन बंद हो गया था।
उस अंधेरे कुएं जैसे तहखाने में जहां हवा और रोशनी का नाम तक नहीं था, मैंने टॉर्च की रोशनी में देखा कि सोने-चांदी और हीरे-जवाहरात से बने गहनों और अशर्फियों से भरे संदूक रखे हुए थे। मैंने अपनी जेबें भर ली, लेकिन जब मुझे एहसास हुआ कि मैं एक तहखाने की कैद में हूं, तो एकदम घबरा गया। मैं अपनी पूरी ताकत से आवाज लगा-2 कर थक गया, वहां पर मेरी मदद को कोई नहीं आया। भूख-प्यास और थकान के मारे मुझे पता नहीं कैसी बेहोशी ने अपने आगोश में ले लिया। जब मुझे होश आया तो मैं अपने आप को बहुत हल्का महसूस कर रहा था, लग रहा था जैसे मैं हवा में तैर रहा हूं। एक और हैरत की बात यह थी कि मैं हवा में तैरता सामने अपनी ही लाश को देख रहा था, मैं अब दीवारों के आर-पार भी जा सकता था। तुमसे एक रिक्वेस्ट है सोमेन! उस तहखाने से मेरी लाश निकलवाकर उसका अंतिम संस्कार करवा दो, वरना पता नहीं कितनी सदियों तक मुझे उस मनहूस तहखाने के अंधेरों में कैद रहना पड़ेगा। ये क्या बहकी-बहकी बातें कर रहे हो नरेन तुम ? तुम जीते-जागते मेरे सामने बैठे हुए हो, तुम मरे हुए कैसे हो सकते हो ? मेरा ये कहना ही था कि मेरे देखते-देखते नरेन वहां से अचानक गायब हो गया। ये सब क्या रहस्य था ? आखिर लोगों को साथ लेकर खंडहर महलों में उस तहखाने की तलाश करवाई गई। जहां नरेन ने मुझे ट्रैप डोर में गिरने से बचाया था, वहां हमने बड़ा पत्थर खिसकाया। घर-घराहट की आवाज से वह ट्रैप डोर एक भारी चट्टान के खिसकने से खुल गया था। अंदर देखा नरेन की लाश पड़ी थी। उसेे वहां से हटाकर अंतिम संस्कार करवाया गया। उसके बाद मेरी नरेन से मुलाकात नहीं हुई, पर क्या वो आखिरी मुलाकात थी ? क्या इस भौतिक दुनिया के अलावा कोई और भी समानांतर दुनिया है, जहां हम मौत के बाद चले जाते हैं ? क्या नरेन अपनी एस्ट्रल बॉडी में मुझसे मिला था ? प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टाइन भी तो यह साबित कर चुकेे हैं कि मैटर केन बी चेंज्ड इन टू एनर्जी एंड एनर्जी केेन बी चेंज्ड इन टू मैटर।
लगता है इस भौतिक शरीर के अलावा और भी डायमेंशंस है।
Matter can be changed into energy.   Energy can be changed into matter.
कहानी का स्त्रोत - राजस्थान पत्रिका (अप्रैल 2010)
कहानी का लेखक - डॉ. देवेंद्र जैन

भानगढ़ किले के बारे में
भानगढ़ किला


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