आपका स्वागत है, डार्क मोड में पढ़ने के लिए ऊपर क्लिक करें PDF के लिए टेलीग्राम चैनल DevEduNotes2 से जुड़े।

चाबहार प्रोजेक्ट

www.devedunotes.com



चाबहार रेल परियोजना

चाबहार ईरान का तटीय शहर है, जो दक्षिण-पूर्व में मौजूद दूसरे सबसे बड़े प्रांत सिस्तान और बलूचिस्तान में ओमान की खाड़ी से सटा है। यहां एक बंदरगाह है, जो ईरान का एकमात्र बंदरगाह है।
15 दिसंबर 2020 को भारत, ईरान और उज्बेकिस्तान के बीच चाबहार पोर्ट के इस्तेमाल को लेकर बैठक आयोजित की गई।
भारत ने पहली बार इस पोर्ट के विकास में अफगानिस्तान के अलावा किसी दूसरे देश को शामिल करने पर आधिकारिक तौर पर बातचीत की है।
• भारत ने जनवरी 2021 में चाबहार दिवस मनाने का भी प्रस्ताव किया है।

इस परियोजना को मार्च 2022 तक पूर्ण किया जाना है।
हाल के समय में ईरान सरकार द्वारा 628 किलोमीटर लम्बी चाबहार-ज़ाहेदान लाइन के लिये ट्रैक/पटरी बिछाने की प्रक्रिया का उद्घाटन किया गया है, जिसे अफगानिस्तान में सीमा पार ज़ारंज (Zaranj) तक बढ़ाया जाएगा।


ईरान-अफगानिस्तान-भारत त्रिपक्षीय समझौता

वर्ष 2016 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा के दौरान वैकल्पिक मार्ग की प्रतिबद्धता को ध्यान में रखकर भारत एवं ईरान के मध्य 'चाबहार समझौते' पर हस्ताक्षर किये गए।
• इस समझौते के तहत ईरानी रेलवे तथा इंडियन रेलवे कंस्ट्रक्शन लिमिटेड (इरकॉन) द्वारा चाबहार-ज़ाहेदान रेलवे के निर्माण के लिये भारत, ईरान एवं अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय समझौता संपन्न हुआ। इसके तहत भारत को बंदरगाह के कुछ हिस्सों के विकास के लिए 10 साल की लीज मिली। 
• साथ ही भारत को सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी जाहेदान तक रेलमार्ग बनाने के लिए भी बुलाया गया। जाहेदान से अफगानिस्तान की सीमा लगभग 40 किलोमीटर दूर है। 


भारत के लिए चाबहार का महत्त्व

भौगोलिक महत्व:- मध्यकालीन यात्री अलबरूनी ने चाबहार को भारत का प्रवेश द्वार कहा था। चाबहार का अर्थ है - चार झरने।
यह गहरे पानी का बंदरगाह है, जो मुख्य भूभाग से जुड़ा है। 
यहा मौसम सामान्य रहता है और समुद्री रास्तों से पहुंचना आसान है।
रणनीतिक महत्व:- चाबहार को भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण माना जाता है। पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के ग्वादर बंदरगाह के विकास के जरिए चीन अरब सागर में उपस्थिति बढ़ाना चाहता है। इसके जवाब में भारत ने चाबहार बंदरगाह के विकास में निवेश का फैसला किया। यह इस क्षेत्र में पाकिरतान और चीन के प्रभाव को संतुलित करने का जरिया है। चाबहार से ग्वादर की दूरी सड़क के रास्ते से 400 किलोमीटर से कम और समुद्र से लगभग 100 किलोमीटर पड़ती है।
आर्थिक महत्व:- चाबहार भारत के लिए आर्थिक रूप से भी अहमियत रखता है। 
ईरान तक भारत की पहुंच होने पर रूस, यूरोप और
मध्य एशिया तक का रास्ता खुल सकता है, सामानों के आयात- निर्यात की एक नई राह तैयार हो सकती है।


www.devedunotes.com



• चाबहार-जाहेदान रेल मार्ग से भारत अफगानिस्तान के निकट तक पहुंच जाएगा। वहीं भारत पहले ही ईरान-अफगानिस्तान सीमा पर जरांज से डेलाराम की 218 किमी लंबी सड़क को बना चुका है। भारत द्वारा निर्मित जरांज-डेलाराम रोड के जरिये अफगानिस्तान के -गारलैंड हाईवे- तक आवागमन आसान हो जाएगा। उस हाईवे से अफगानिस्तान के चार बड़े शहरों हेरात, कंधार, काबुल और मजार-ए-शरीफ तक सड़क के जरिये पहुंचना संभव होगा।


चीन की गतिविधियां
चीन ने ईरान के साथ 400 अरब डॉलर का समझौता किया है। निवेश कर इस रास्ते को रोकने की कोशिश की है। दोनों देशों के बीच हुआ यह रणनीतिक और व्यापारिक समझौता अगले 25 वर्षों तक मान्य होगा।
पश्चिम एशिया की राजनीति में अपनी अतिवादी नीतियों के कारण ईरान अमेरिकी प्रतिबंधों का शिकार है। उसके विकल्प सीमित हैं।

बलूचिस्तान का लोभ
ईरान से सटा पाकिस्तान का बलूचिस्तान सूबा एशिया में सोने, तांबे और गैस के सबसे बड़े भंडारों में से एक है। चीन की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं को अंजाम तक पहुंचाने के लिए खास जगह है। 
दो दशक पहले पाकिस्तान सरकार ने बलूचिस्तान के रेगिस्तान में ही परमाणु परीक्षण किए थे और पाकिस्तान को दुनिया की सातवीं परमाणु ताकत का दर्जा मिला था।

ईरान का रुख 
चाबहार-जाहेदान रेलमार्ग की लंबाई 628 किमी है। ईरान में 2021 में चुनाव हैं। इसलिए ईरान चाहता है कि प्रारंभिक 150 किमी रेलखंड को मार्च 2021 तक पूरा कर लिया जाए, जबकि शेष भाग मार्च 2022 तक। 
ईरान इस प्रोजेक्ट का काम खातम-अल-अनबिया कंस्ट्रक्शन कंपनी से कराना चाहता है, जबकि भारत को ईरान की आइआरजीसी यानी इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स की इस कंपनी के प्रोजेक्ट में शामिल होने से दिक्कत है। इसकी वजह यह है कि अमेरिका ने आइआरजीसी पर प्रतिबंध लगा रखा है।
अमेरिका और चीन के कारण संकट
चीन खाड़ी देशों में जहां अमेरिका विरोधी ईरान से घनिष्ट संबंध बना रहा है, वहीं अमेरिका के परंपरागत मित्र सऊदी अरब एवं संयुक्त अरब अमीरात के साथ भी लगातार वार्ता कर रहा है।
सऊदी अरब द्वारा वह रणनीतिक तेल भंडार का सृजन करना चाहता है, वहीं यूएई के द्वारा वह इस क्षेत्र में अपने प्रभाव में वृद्धि करना चाहता है।
यूएई की सरकारी संचार कंपनियों ने 5जी नेटवर्क के लिए चीनी कंपनी हुआवे के साथ समझौता किया है। इस तरह चीन खाड़ी क्षेत्र में अमेरिका समर्थक देश एवं अमेरिका विरोधी देश दोनों से घनिष्ट संबंध रख रहा है।

भारत-ईरान संबंधों में शिथिलता का कारण 
भारत अपनी आवश्यकता का 80 प्रतिशत से भी अधिक तेल आयात करता है। अमेरिका के दबाव में भारत ने एक मई 2019 से ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया। ईरान से तेल आयात करने वाले देशों में भारत, चीन के बाद दूसरे स्थान पर था। ईरान भारत को अंतर्राष्ट्रीय स्तर से कम से कम 25 प्रतिशत कम दर पर तेल दे रहा था। इसके अतिरिक्त वह एशियाई प्रीमियम चार्ज भी नहीं लगा रहा था। साथ ही ईरानी तेल गुणवत्ता की दृष्टि से दुनिया में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

पिछले दो वर्षों में भारत ने अमेरिका से तेल आयात में दस गुना वृद्धि कर दी। अब भारत महज दो वर्षों में अमेरिकी कच्चे तेल का बड़ा खरीदार बन चुका है। 

भारत केवल संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को ही महत्व देता था, लेकिन अब अमेरिकी प्रतिबंधों को महत्व देने तथा ईरान से तेल नहीं लेने के कारण ईरान भारत से से नाराज हुआ।
अमेरिकी प्रतिबंधों तथा कोविड-19 के कारण ईरान आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। ऐसे में चीन के साथ 400 अरब डॉलर के 25 वर्षीय समझौते से ईरान को काफी आशाएं हैं, जिससे चीन वहां सैकड़ों विकास परियोजनाओं में निवेश करेगा तथा ईरान के वित्तीय एवं आधारभूत संरचनाओं की स्थिति मजबूत हो सकेगी।
• चीन की नजर चाबहार प्रोजेक्ट पर भी है। ध्यातव्य है कि चीन-ईरान के प्रस्तावित समझौते के एक अनुच्छेद के मुताबिक चीन को ईरान की हर रुकी या अधूरी पड़ी परियोजनाओं को दोबारा शुरू करने का प्रथम अधिकार होगा। यदि चीन इस विकल्प को चुनता है तो चाबहार बंदरगाह का प्रभावी नियंत्रण अपने हाथ में ले सकता है।

सुझाव
भारत को कूटनीतिक दृष्टि से स्वतंत्र विदेश नीति को स्वीकार करते हुए अमेरिकी दबावों से बाहर आना होगा।

गौरतलब है कि जुलाई 2020 में ईरान ने भारत को चाबहार बंदरगाह से जाहेदान, और अफगानिस्तान की सीमा के साथ लगने वाली रेलवे लाइन, चाबहार रेल परियोजना से बाहर कर दिया था।

• ईरान ने गैस फील्ड फरजाद बी ब्लॉक से भी भारत को बाहर कर दिया था।

नोट - ईरान ने चाबहार प्रोजेक्ट से भारत को बाहर करने का फैसला बदल दिया। भारत अभी भी इस प्रोजेक्ट का हिस्सा है।
इस परियोजना को भारत की सरकारी रेलवे कंपनी इरकान (IRCON) पूरा करने वाली है।

परंतु फरजाद बी ब्लॉक मामले में ईरानी रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। पहले इस प्रोजेक्ट में भारतीय कंपनी ओएनजीसी शामिल थी, लेकिन अब ईरान का कहना है कि वह इस प्रोजेक्ट को अकेले पूरा करेगा।
 
SAVE WATER

Post a Comment

0 Comments