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राजस्थान के प्रमुख अभिलेख - 2

 
Inscription of Rajasthan - 2


राजस्थान के अभिलेख - 2

Inscription of Rajasthan.
भाब्रू अभिलेख। कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति। बडवा स्तंभ लेख। भ्रमर माता लेख। विजयगढ़ यूप स्तंभ लेख।
सामोली अभिलेख। श्रृंगि ऋषि शिलालेख।

भाब्रू अभिलेख/ बैराठ कलकत्ता अभिलेख
यह अभिलेख विराट नगर (बैराठ) की बीजक डूंगरी से प्राप्त हुआ था, जिसे कैप्टन बर्ट द्वारा भाब्रू शिविर में रखे जाने के कारण भाब्रू अभिलेख भी कहा जाता है।
• 1840 ई में कैप्टन बर्ट ने इसे कलकत्ता के संग्रहालय (एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल) में भेज दिया। अतः इसे बैराठ कलकत्ता अभिलेख भी कहा जाता है।
• यह मौर्य सम्राट अशोक का लघु शिलालेख है, जिसे वृत्ताकार बौद्ध मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगाया गया।
• इस अभिलेख में अशोक को मगध का राजा कहा गया है तथा उसे प्रियदर्शी नाम से सम्बोधित किया गया है।
इस अभिलेख में अशोक बुद्ध, संघ तथा धम्म में श्रद्धा प्रकट करता है।
इस अभिलेख से 7 बौद्ध ग्रन्थों की भी जानकारी मिलती है।
कैप्टन किटोई ने इसका अनुवाद किया था।

बीजक डूंगरी पर सर्वप्रथम अशोक के शिलालेख की खोज किसने और कब की ?
उत्तर - कैप्टन बर्ट 1837 ईस्वी।

बैराठ अभिलेख
• 1871-72 ई में कार्लाइल को बैराठ में भीमसेन की डूंगरी से अशोक का एक अन्य लघु शिलालेख प्राप्त हुआ जिसकी भाषा सासाराम और रूपनाथ अभिलेखों के समान है।
• इस अभिलेख में अशोक यह जानकारी देता है, कि उसने उपासक बनने के 2.5 वर्ष बाद तथा संघ में आने के 1 वर्ष बाद धम्म का प्रचार-प्रसार प्रारम्भ किया है।
• इस लेख का संपादन (Editing) बुहलर और सेनार्ट ने किया था।

नोट:- ह्वेनसांग ने बैराठ की यात्रा की थी। उसने यहां 8 बौद्ध मंदिरों का उल्लेख किया है, जिन्हें हूण शासक मिहिरकुल ने तुडवा दिया।
ह्वेनसांग ने बैराठ को पी-लो-ये-तो-लो (परियात्रा) कहा है।
ह्वेनसांग की पुस्तक का नाम - सी-यू-की

कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति (1460 ईस्वी)

प्रशस्तिकार (रचयिता):- अत्रि व महेश।
• यह प्रशस्ति अनुमानतः 8 शिलाओं पर लिखी गयी थी परंतु वर्तमान में हमे केवल 2 शिलाएँ ही प्राप्त होती है।
• इस प्रशस्ति से बापा से लेकर कुंभा तक मेवाड़ के गुहिलवंशीय शासकों की उपलब्धियां प्राप्त होती है।

• इस प्रशस्ति से कुंभा के विजय अभियानों की जानकारी मिलती है। जैसे:- मंडोर, गुजरात, मालवा, नागौर आदि।
इस प्रशस्ति में मालवा तथा गुजरात की संयुक्त सेनाओ को पराजित करने का वर्णन मिलता है।

• इस प्रशस्ति में कुंभा द्वारा रचित ग्रन्थों की जानकारी मिलती है‌। जैसे:- संगीतराज, चंडी-शतक तथा गीतगोविंद की टीका, सुधा-प्रबंध आदि।

कुंभा के विरूदों (उपाधियों) की जानकारी प्राप्त होती है। जैसे:-राजगुरु, दानगुरु, शैलगुरु, अभिनव-भरताचार्य...
इस प्रशस्ति से कीर्तिस्तम्भ, कुंभलगढ़, अचलगढ़ आदि में किए गए निर्माण कार्यों की तिथि मिलती है।

वह कौनसा अभिलेख है, जो महाराणा कुंभा के लेखन पर प्रकाश डालता है ?
उत्तर - कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति 1460 ईस्वी।

बड़वा स्तंभ लेख - 238 ई. (बारां)
• यहां से चार यूप (यज्ञ) स्तंभ प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 3 पर लेख उत्कीर्ण किए गए हैं।
• ये लेख मौखरी वंश की जानकारी देते हैं
• यहां पर महासेनापति बल के चार पुत्रों (बलवर्धन, सोमदेव, बलसिंह) ने त्रिरात्र यज्ञ संपन्न करवाया था।

प्रश्न.बड़वा से कितने यूप स्तंभ लेख प्राप्त हुए हैं ? - 3

विजयगढ़ यूप स्तंभ लेख - 371-72 ई. (बयाना)
विष्णुवर्धन नामक गुप्त सामंत ने पुण्डरीक यज्ञ का आयोजन करवाया तथा यहां पर भीमलाट नामक यूप स्तंभ लगवाया।

• संभव है विष्णुवर्धन समुद्रगुप्त का सामंत रहा होगा।
समुद्रगुप्त ने प्रयाग प्रशस्ति में लिखा है कि उसने बयाना के  यौद्धेयों को हराया। 
अतः भीमलाट को समुद्रगुप्त का विजय स्तंभ माना जाता है।
प्रश्न.राजस्थान का पहला विजय स्तंभ किसने लगवाया था ? - समुद्रगुप्त 
• बयाना के अन्य नाम:- बाणासुर, भदानक, श्रीप्रस्थ, श्रीपंथ, संतपुर, सुल्तानकोट।
 
नांदसा यूप स्तम्भ लेख - भीलवाड़ा (225 ई.) 
बर्नाला यूप स्तम्भ लेख - बर्नाला, जयपुर (227 ई.)

भ्रमर माता का लेख - 490 ई. (छोटी सादडी, प्रतापगढ़)
गौर वंश के शासकों (पुण्यशोभ, राज्यवर्धन, यशोगुप्त) ने छोटी सादडी में इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
औलिकार वंश के आदित्यवर्धन की भी जानकारी मिलती है।
• इस अभिलेख से शक्ति पूजा, ब्राह्मणों को दान और सामंत प्रथा की जानकारी मिलती है।

सामोली अभिलेख - 646 ई.(उदयपुर)
• यह गुहिल राजा शिलादत्य (गुहिल वंश का 5वां राजा) के समय का अभिलेख है, जो संस्कृत भाषा में लिखा गया है।
• इसके अनुसार वटनगर (सिरोही) से आये हुए महाजन समुदाय के मुखिया जेंतक ने अरण्यवासिनी देवी (जावर माता का मंदिर बनवाया था।
जेंतक ने देवलुक नामक स्थान पर अग्नि समाधि ले ली।
• यह अभिलेख जावर में तांबे व जस्ते के खनन उद्योग की जानकारी देता है।
• यह अभिलेख गुहिल वंश का समय निर्धारण करने में सहायक है।

श्रृंगि ऋषि शिलालेख - 1428 ई.
• उदयपुर में एकलिंगजी के समीप यह अभिलेख प्राप्त हुआ है, जो संस्कृत भाषा में लिखा गया है।
रचयिता - कविराज वाणीविलास।
उत्कीर्णक - फना
• यह अभिलेख मेवाड़ महाराणा मोकल के समय का है।
इस अभिलेख के अनुसार मोकल ने अपनी पत्नी गौराम्बिका की आत्मा मुक्ति के लिए श्रृंगी ऋषि के पवित्र स्थान पर एक कुण्ड का निर्माण करवाया।
• मोकल ने इस कुण्ड के निर्माण की आज्ञा गुरु त्रिलोचन से प्राप्त की थी तथा अपनी अन्य रानी मायापुरी के साथ प्रतिष्ठा समारोह में भाग लिया था।
• इस अभिलेख से हम्मीर से लेकर मोकल तक मेवाड़ के शासकों की जानकारी मिलती है।
इसके अनुसार हम्मीर ने जीलवाड़ा, ईडर, पालनपुर को जीता तथा भीलों को हराया। (भील गुफा में रहते थे)
**राणा लाखा ने काशी, प्रयाग तथा गया जाने वाले हिन्दुओं से लिए जाने वाले करों को हटवाकर वहाँ पर शिव मन्दिर का निर्माण करवाया था।
मोकल ने एकलिंग मंदिर की प्राचीर का निर्माण करवाया।

नोट:- श्रृंगि ऋषि ने राजा दशरथ के लिए पुत्र प्राप्ति यज्ञ करवाया था।
इस अभिलेख की जानकारी सर्वप्रथम गौरीशंकर ओझा देते है। जबकि संपादन (Editing) अक्षय कीर्ति व्यास ने किया।
है।

रणकपुर प्रशस्ति (1439 ई)
• रणकपुर के जैन चौमुख मंदिर में लगी इस प्रशस्ति में मेवाड़ के बापा से कुम्भा तक की जानकारी मिलती है।
• इसमें नाणक (नाणा) शब्द का प्रयोग मुद्रा के लिए किया गया है।

रायसिंह प्रशस्ति (1594 ई)
• बीकानेर के संस्थापक राव बीका से रायसिंह तक जानकारी।
• रचयिता:- जइता।

आमेर के लेख में कछवाह शासकों को 'रघुवंशतिलक' कहा गया है।

जगन्नाथ राय प्रशस्ति (1652 ई) का लेखक - कृष्णभट्ट
इस प्रशस्ति से हल्दीघाटी युद्ध की जानकारी मिलती है।

राज प्रशस्ति (1676 ई.)
• यह प्रशस्ति राजसमन्द झील के उतरी भाग के 9 चौकी पाल पर लिखी हुई है तथा यह प्रशस्ति 25 शिलालेखों पर रणछोड़ भट्ट द्वारा संस्कृत भाषा मे लिखी गई हैं।
• यह देश का सबसे बड़ा शिलालेख है।
• इसमें मुगल-मेवाड़ संधि का उल्लेख है। 
• राजसमन्द झील का निर्माण अकाल राहत कार्यो के दौरान किया गया।

वैद्यनाथ मन्दिर प्रशस्ति (1719 ई.)
• सीसाराम गाँव (उदयपुर)
• इसकी रचना रूपभट्ट ने की थी। इस प्रशस्ति में संग्रामसिंह द्वितीय तथा मुगल सेनापति रणबाज खाँ के मध्य बाँदनवाड़ा के युद्ध का वर्णन हैं।

मानमोरी का शिलालेख - चितौड़ (713 ई.)
• जेम्स टॉड इस शिलालेख को इंग्लैण्ड ले जा रहा था लेकिन भारी होने के कारण इस शिलालेख को समुद्र में फेंक दिया।
• इस शिलालेख में अमृत मंथन का उल्लेख हैं।
• इस शिलालेख में चार मौर्य राजाओं का उल्लेख है - महेश्ववर, भीम, भोज तथा मान।

शंकरघट्टा का शिलालेख - चितौड़गढ़ (713 ई.)
• यह शिलालेख चितौड़ में सूर्य मन्दिर का उल्लेख करता हैं।

कणसवा का लेख - कोटा (738 ई.)
• इसमें मौर्य राजा धवल का उल्लेख मिलता हैं।

प्रतापगढ़ का शिलालेख (946 ई.)
• इस शिलालेख में संस्कृत भाषा के साथ कुछ प्रचलित देशी भाषाओं का भी उल्लेख हुआ हैं। 
• प्रतिहार वंश के शासकों की नामावली भी इसी शिलालेख में हैं।

ओसियां का लेख - जोधपुर (956 ई.)
• इस लेख में मानसिंह को भूमि का स्वामी तथा वत्सराज को रिपुओं/शत्रुओं का दमन करने वाला कहा गया हैं।
• यह शिलालेख वर्ण व्यवस्था की जानकारी देता हैं।

सुण्ड़ा पर्वत शिलालेख - जालौर (1262 ई.)
• इस लेख में प्रशस्तिकार, लेखक व उत्कीर्णक के नामों के साथ उनके गुरूओं व पिताओं के नाम भी उत्कीर्ण हैं।

देलवाड़ा का शिलालेख - सिरोही (1428 ई.)
• मेवाड़ी भाषा में लिखित इस शिलालेख में टंक नामक मुद्रा व स्थानीय करों का उल्लेख मिलता हैं।

नागदा का शिलालेख - उदयपुर (1437 ई.)
• समाज में बहुविवाह तथा संयुक्त परिवार की जानकारी।

माचेड़ी का शिलालेख - अलवर (1382 ई.)
• इसमें पहली बार ‘‘बड़गूजर’’ शब्द का प्रयोग हुआ है।

किराड़ू का शिलालेख - बाड़मेर (1161 ई.) 
• इस शिलालेख में परमारों की उत्पति ऋषि वशिष्ठ के अग्निकुंड से हुई। (आबू पर्वत पर यज्ञ से)

नेमिनाथ (आबू) मंदिर की प्रशस्ति (1230 ई.)
• माउण्ट आबू के देलवाड़ा गाँव में तेजपाल द्वारा उत्कीर्ण की गई। इसे लूणवसही प्रशस्ति भी कहा जाता है।
• इस शिलालेख में आबू के परमार शासकों तथा वास्तुपाल व तेजपाल का वर्णन हैं।
• तेजपाल ने देलवाड़ा गाँव में लूणवसही नामक स्थान पर नेमिनाथ का मन्दिर अपनी पत्नी अनुपमा देवी के श्रेय के लिए बनवाया था।
• आबू के शासक धारावर्ष का वर्णन भी इस शिलालेख में हैं

राजस्थान में फारसी शिलालेख

अजमेर का फारसी लेख - (1200 ई.)
यह राजस्थान में फारसी भाषा का सबसे प्राचीन शिलालेख है, जो अढ़ाई दिन के झोंपड़े के गुंबज की दीवार पर लगा हुआ हैं।

चित्तौड़ का फारसी लेख (1325 ई)
• धाईबी पीर दरगाह पर मिले इस लेख से पता चलता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद कर दिया था।

पुष्कर के जहांगीर महल के लेख (1615 ई) से राणा अमरसिंह पर जहांगीर की विजय की जानकारी मिलती है।
शाहजहानी मस्जिद शिलालेख - अजमेर (1637 ई.)

राजस्थान राज्य अभिलेखागार की स्थापना जयपुर में 1955 ई. में की गई थी जिसका मुख्यालय 1960 में जयपुर से बीकानेर स्थानान्तरित कर दिया गया था। इस अभिलेखागार में उर्दू व फारसी के अभिलेख स्थित है।

जोधपुर संग्रहालय में मारवाड़ रियासत के पुराने रिकॉर्ड है जिन्हें दस्त्री रिकार्ड कहा जाता है।


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