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राजस्थान के इतिहास के प्रमुख स्त्रोत । राजस्थान के प्रमुख अभिलेख - 1

 
Inscription of Rajasthan - 1


राजस्थान के इतिहास के प्रमुख स्त्रोत

संपूर्ण राजस्थान का इतिहास लिखने की दिशा में पहला कदम मुहणोत नैणसी ने उठाया।
कर्नल जेम्स टॉड
• आधुनिक काल में सबसे पहले कर्नल जेम्स टॉड ने संपूर्ण राजस्थान का इतिहास लिखा।
• जेम्स टॉड ने 1829 में 'एनल्स एण्ड एण्टीक्वीटीज ऑफ राजस्थान' का प्रकाशन करवाया।
अन्य नाम:- सेंट्रल एंड वेस्टर्न राजपूत स्टेट्स ऑफ इंडिया।
• जेम्स टॉड को राजस्थान के इतिहास का जनक कहा जाता है।
• वे 1818-21 तक मेवाड़ के पोलिटिकल एजेन्ट थे।
• कर्नल टाॅड को घोडे वाला बाबा भी कहा जाता है।
• कर्नल जेम्स टाॅड की एक अन्य पुस्तक ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया का इनकी मृत्यु के पश्चात 1837 में इनकी पत्नी ने प्रकाशन करवाया।

A. पुरातात्विक स्त्रोत
राजस्थान में पुरातात्विक सर्वेक्षण का कार्य सर्वप्रथम 1871 ईस्वी में A.C.L. कार्लाइल ने किया।
राजस्थान पुरातत्व विभाग की स्थापना:- 1950 (जयपुर)

1. उत्खनित पुरावशेष:- बागौर, कालीबंगा, नगरी, बैराठ, आहड़, गिलुण्ड, तिलवाड़ा, गणेश्वर, रंगमहल, सांभर, मण्डोर, डीडवाना, सुनारी, जोधपुरा, बालाथल, नोह, रैढ़ आदि।
नोट:- इन्हें प्राचीन सभ्यताओं (पुरातात्विक स्थल) वाले टॉपिक में पढ़ेंगे।

2. शैल चित्र:- अरावली पर्वत श्रृंखला, चंबल नदी घाटी, छाजा नदी क्षेत्र (बूंदी) में शैलाश्रय प्राप्त हुए हैं।
यहां के शैल चित्रों में आखेट (शिकार) के दृश्य सर्वाधिक है।
• विराटनगर (जयपुर), सोहनपुरा (सीकर) तथा हरसौरा (अलवर) से भी चित्रित शैल चित्र मिले हैं।
नोट:- राजस्थान की चित्रकला वाले टॉपिक में पढ़ेंगे।

3. शिलालेख/अभिलेख:- प्रारंभिक शिलालेखों की भाषा संस्कृत है जबकि मध्यकालीन शिलालेखों की भाषा संस्कृत, फारसी, उर्दू, राजस्थानी आदि है।
• प्रशस्ति:- जिन शिलालेखों में मात्र किसी शासक की उपलब्धियों की यशोगाथा होती है, उन्हें प्रशस्ति कहते हैं।

4. सिक्के
5. ताम्रपत्र

B. साहित्यिक स्त्रोत
1. संस्कृत साहित्य
2. राजस्थानी साहित्य
3. फारसी साहित्य
नोट:- राजस्थानी साहित्य वाले टॉपिक में पढ़ेंगे।

C. पुरालेख सामग्री
उदाहरण:- खरीता, अखबारात, परवाना, तलकी आदि।
नोट:- पुरालेख सामग्री वाले टॉपिक में पढ़ेंगे।

राजस्थान के प्रमुख शिलालेख
अभिलेखों का अध्ययन एपिग्राफी (Epigraphy) कहलाता है।

कौनसा शिलालेख राजस्थान का प्राचीनतम शिलालेख है ?
उत्तर - बड़ली अभिलेख

अभिलेख
 वर्ष
 शासक
 मंदिर
बडली (अजमेर)
 487 ई. पू
 
 भिलोट माता
बसंतगढ़ (सिरोही)
 625 ई.
वर्मलात
 क्षेमकरी माता
बुचकला (जोधपुर)
 815 ई.
नागभट्ट प्रतिहार-॥
 पार्वती माता 
बिजौलिया (भीलवाड़ा)
 1170 ई.
सोमेश्वर चौहान
 पार्श्वनाथ

बडली अभिलेख
1912 ई. में गौरीशंकर हीराचंद ओझा को बडली गांव (अजमेर) के भिलोट माता मंदिर से प्राप्त हुआ।
वर्तमान में अजमेर संग्रहालय में सुरक्षित है।
• यह राजस्थान का प्राचीनतम अभिलेख है, जो उत्तर प्रदेश के पिपरावा अभिलेख (487 ई. पू.) के बाद भारत का दूसरा सबसे प्राचीन अभिलेख माना जाता है।
• यह अभिलेख वीर सम्तव 84 और विक्रम सम्वत 368 का है, जो माध्यमिका के एक जैन केंद्र होने की जानकारी देता है।
• यह ब्राह्मी लिपि में है।

बसंतगढ़ अभिलेख
यह बसंतगढ़ (सिरोही) के क्षेमकरी (खिमेल) माता मंदिर से प्राप्त हुआ है, जो वर्तमान में अजमेर के राजपूताना म्यूज़ियम में सुरक्षित है।
• यह अर्बुद देश के राजा वर्मलात के सामंत राज्जिल तथा राज्जिल के पिता वज्रभट्ट (सत्याश्रय) का वर्णन करता है।
वर्मलात चावडा वंश का शासक था।
इस अभिलेख में 'राजस्थानी आदित्य' नामक शब्द आया है।

प्रश्न.कौनसा अभिलेख सामंत प्रथा की जानकारी देता है ? - बसंतगढ़ अभिलेख

नोट:- चावड़ा/चाप/चापोत्कट वंश का शासन गुजरात राजस्थान के मिले-जुले क्षेत्र (गुर्जरात्रा प्रदेश) में था।
चावड़ा वंश की राजधानी - भीनमाल
• 641 ईस्वी में ह्वेनसांग ने भीनमाल की यात्रा की थी। ह्वेनसांग ने लिखा है कि मैं गुर्जर प्रदेश से गुजर रहा हूं जिसकी लंबाई 300 मील और परिधि (परिमाप) 833 मील है। यहां क्षत्रियों का शासन हैं।
ह्वेनसांग ने भीनमाल को पी-लो-मो-लो कहा है।
• भीनमाल के प्राचीन विद्वान:-
कवि माघ की पुस्तक - शिशुपाल वध
ब्रह्मगुप्त की रचनाएं - ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, खंड खाद्यक
• ब्रह्मगुप्त को भारत का न्यूटन कहा जाता है।
 
घोसुंडी अभिलेख - दूसरी शताब्दी ई. पू.
• यह अभिलेख चित्तौड़ के नगरी के निकट घोसुंडी गांव से प्राप्त हुआ है, जिसकी भाषा संस्कृत एवं लिपि ब्राह्मी है।
• इस अभिलेख के अनुसार गजवंश के राजा सर्वतात ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करवाया तथा संकर्षण और वासुदेव के पूजाग्रह के चारों ओर पत्थर की चारदीवारी का निर्माण करवाया।
• यह अभिलेख राजस्थान में वैष्णव संप्रदाय (भागवत संप्रदाय) से संबंधित प्राचीनतम अभिलेख है, जिसे डॉ डी आर भंडारकर द्वारा प्रकाशित किया गया था।

नोट:- कविराजा श्यामलदास ने इस अभिलेख का उल्लेख किया है।
• अकबर ने यहां हाथीबड़ा और प्रकाश स्तंभ (ऊब दीवड) बनवाया था। इसलिए इसे हाथीबड़ा अभिलेख भी कहा जाता है।
घोसुंडी बावड़ी अभिलेख -1504 ईस्वी
राणा कुंभा के पुत्र रायमल की पत्नी रानी श्रृंगार देवी ने यहां एक बावड़ी का निर्माण करवाया और एक अभिलेख लगवाया था।
वास्तुकार - महेश्वर
इस अभिलेख में श्रृंगार देवी द्वारा अपने पति रायमल तथा अपने पिता मारवाड़ के राव जोधा और दादा रणमल की प्रशंसा की गई है।
 
नोट:- राजस्थान शब्द का प्राचीनतम उल्लेख दो शिलालेखों में मिलता है।
1. चित्तौड़गढ़ शिलालेख (घोसुंडी शिलालेख) में।
2. बसंतगढ़ शिलालेख में।

बुचकला अभिलेख
यह अभिलेख बिलाड़ा (जोधपुर) के पार्वती मंदिर के सभामंडप से प्राप्त हुआ है।
• यह अभिलेख नागभट्ट-॥ (गुर्जर प्रतिहार शासक वत्सराज का पुत्र) की जानकारी देता है।

बिजौलिया अभिलेख
• यह अभिलेख पार्श्वनाथ मंदिर से प्राप्त हुआ है।
इसे दिगंबर जैन श्रावक लोलाक ने पार्श्वनाथ मंदिर तथा कुंड के निर्माण की स्मृति में लगवाया था।
• भाषा:- संस्कृत।
• इसके अनुसार चौहान राजा वासुदेव ने सांभर झील का निर्माण करवाया था तथा नागौर को राजधानी बनाया था। (551 ई)
• इसमें सांभर तथा अजमेर के चौहानों की वंशावली की जानकारी मिलती है। इस अभिलेख में चौहानों को वत्स गौत्रीय ब्राह्मण बताया गया है।

नोट:- फतेहपुर (सीकर) के नवाब न्यामत खां (जान कवि) ने भी अपनी पुस्तक कायमरासौ में चौहानों को ब्राह्मण बताया है।
इतिहासकार दशरथ शर्मा ने अपनी पुस्तक द अर्ली चौहान डायनेस्टी में चौहानों की उत्पत्ति ब्राह्मणों से मानी है।
 
• इस अभिलेख से विग्रहराज-चतुर्थ की दिल्‍ली विजय की जानकारी प्राप्त होती है।
• भूमि अनुदान की जानकारी मिलती है।
रचनाकर-गुणभद्र, लेखक-केशव, उत्कीर्णक-गोविंद

नोट:- यह मेनाल के शिव मंदिरों की जानकारी देता है। भूमि अनुदान की जमीन को डोहली कहा जाता था।
जैनों के उत्तम शिखर पुराण की भी जानकारी देता है।

बिजौलिया अभिलेख से प्राचीन नगरों की जानकारी प्राप्त होती है -

नगर

 प्राचीन नाम

नगर

 प्राचीन नाम

जालौर

 जाबालिपुर

नाडोल

  नड्डल

सांभर

 शाकंभरी

दिल्ली

  ढिल्लिका

भीनमाल

 श्रीमाल

मांडलगढ़

 मंडलकर

बिजौलिया

 विज्यवल्ली

नागदा

 नागहृद

उपरमाल

 उत्तमाद्री

नागौर

 अहिछत्रपुर


घटियाला अभिलेख - 861 ईस्वी (जोधपुर)
• यह लेख संस्कृत भाषा में है‌।
• ये अभिलेख प्रतिहार राजा कक्कुक द्वारा स्थापित करवाए गए थे।
इनमें से एक लेख एक प्राचीन जैन मंदिर (माता की साल) में प्राकृत भाषा में उत्कीर्ण है तथा अन्य 4 लेख संस्कृत भाषा में मंदिर के पास ही खाखू देवल नामक स्थान पर उत्कीर्णित है।
• इस लेख में हरिश्चन्द्र से लेकर कुक्कुक तक प्रतिहार शासकों की वंशावली मिलती है।
• कुक्कुक ने घटियाला तथा मंडोर में जय स्तम्भ स्थापित करवाए थे।
• कुक्कुक ने घटियाला (रोहिन्सकूप) में मारवाड़ के आभीरों के उपद्रवों का दमन कर उसे व्यापारिक केंद्र के रूप में स्थापित किया।
लेखक:- मातृरवि नामक मग ब्राह्मण 
उत्कीर्णक (engraver):- कृष्णेश्वर।

बाउक प्रशस्ति- 837 ईस्वी
यह अभिलेख मंडोर के किसी विष्णु मंदिर में लगा हुआ था, जिसे बाद में जोधपुर शहर के परकोटे में लगा दिया गया।
• यह प्रशस्ति प्रतिहार राजा बाउक ने खुदवाई थी।

नोट:- बाउक, कुक्कुक का भाई था।

प्रश्न.निम्नलिखित में से कौन-कौन से अभिलेख प्रतिहार शासकों की जानकारी देते हैं ? -
1.घटियाला अभिलेख  2.बाउक प्रशस्ति
3.घोसुंडी अभिलेख  4.चीरवा का शिलालेख
उत्तर - घटियाला अभिलेख  और बाउक प्रशस्ति।

चीरवा का शिलालेख - 1273 ईस्वी
• उदयपुर के चीरवा गाँव में यह अभिलेख स्थित है, जो कि संस्कृत भाषा व नागरी लिपि में उत्कीर्णित है।
• यह शिलालेख गुहिलवंश के शासक जैत्रसिंह, तेजसिंह, समरसिंह आदि शासकों के बारे में जानकारी देता है।
• इस शिलालेख में टांटेड जाति (जैन) के तलारक्ष नामक प्रशासनिक पद का वर्णन है, जो नगर के सज्जन व्यक्ति की रक्षा तथा दुष्ट व्यक्ति को दण्ड देते थे।
• इसमें जैत्रसिंह को शत्रु राजाओं के लिए प्रलय-मारुत के समान बताया गया है।
• इस अभिलेख में चैत्रगच्छ के आचार्यों का वर्णन है, जिससे उस समय की शिक्षा व्यवस्था की जानकारी मिलती है।
• यह अभिलेख सती प्रथा की जानकारी देता है। 
(तातेड जाति के बालक नामक व्यक्ति की युद्ध में मृत्यु होने पर पत्नी भोली सती हुई)
रचियता:- रत्नप्रभ सूरि, लेखक:- पार्श्वचन्द्र
शिल्पी:- देलहण

आगे पढ़े 👉 राजस्थान के अभिलेख-2

SAVE WATER

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