राजस्थान की लोक देवियां
करणी माता
जन्म स्थान - सुआप (जोधपुर)
बचपन का नाम - 'रिद्धी बाई
इन्होंने देशनोक गांव बसाया, जहां इनका मुख्य मंदिर बना हुआ हैं।
मंदिर में अत्यधिक संख्या में चूहे होने के कारण इन्हें चूहों वाली देवी कहा जाता हैं।
इन चूहों को काबा कहा जाता हैं। सफेद काबे के चूहे के दर्शन को शुभ माना जाता हैं।
चील को करणी माता का प्रतीक माना जाता है।
राव बीका ने बीकानेर की स्थापना करणी माता के आशीर्वाद से की थी, इसलिए बीकानेर के राठौड़ो की इष्ट देवी करणी माता को माना जाता हैं।
मुख्य मंदिर से कुछ दूरी पर एक अन्य मंदिर स्थित हैं, जिसे 'नेहड़ी जी' कहते हैं।
करणी माता स्वयं तेमड़ेराय माताजी की पूजा करती थी। तेमडेराय का मंदिर भी देशनोक में बना हुआ हैं।
करणी माता को दाढ़ी वाली डोकरी कहते हैं। (151 साल जीने के कारण)
जीणमाता
चौहानों की ईष्ट देवी।
सीकर जिले के रैवासा गांव में इनका मुख्य मंदिर हैं।
इनके भाई का नाम हर्ष था, जिनका मंदिर भी पास की पहाड़ियों पर बना हुआ हैं।
जीण माता का मंदिर चौहान शासक पृथ्वीराज प्रथम के सामन्त 'हट्टड़ मोहिल' ने बनवाया था।
औरंगजेब ने भी जीणमाता के 'छत्र' चढ़ाया था।
जीण माता को मधुमक्खियों की देवी भी कहते हैं।
जीण माता के दीपक का घी आज भी केन्द्र सरकार द्वारा भेजा जाता हैं।
जीण माता का लोकगीत सबसे लम्बा हैं।
आशापुरा माता
चौहानों एंव बिस्सा ब्राहणों की कुलदेवी हैं।
नाड़ोल (पाली) एवं मोदरा (जालौर) में इनके मुख्य मंदिर हैं।
इनकी पूजा करते समय महिलाएं घूंघट निकालती हैं।
पूजा करने वाली महिलाएं हाथों में मेंहदी नहीं लगाती हैं।
शीतला माता
चाकसू (जयपुर) में इनका मुख्य मंदिर हैं।
'चैत्र कृष्ण अष्टमी' को यहां गधो का मेला भरता हैं।
इस मंदिर का निर्माण जयपुर के सवाई माधोसिंह ने करवाया था।
यह एक मात्र ऐसी देवी हैं, जिनकी खंडित प्रतिमा की पूजा की जाती हैं।
शीतला माता का वाहन गधा एवं पुजारी कुम्हार होता हैं।
चैत्र कृष्ण अष्टमी को इनको बासी भोजन का प्रसाद चढ़ाया जाता हैं। इन्हें चेचक की देवी भी कहते हैं।
बांझ स्त्रियां संतान प्राप्ति के लिए शीतला माता की पूजा करती हैं।
त्रिपुर सुन्दरी
इनका मंदिर तलवाड़ा (बांसवाड़ा) में हैं।
इन्हें (तुरताई माता) भी कहते हैं।
लुहार जाति के लोग इन्हें अपनी ईष्टदेवी मानते हैं।
त्रिपुर सुन्दरी की 8 हाथों की प्रतिमा हैं।
रानी सती
इनका वास्तविक नाम 'नारायणी देवी” था।
इन्हें दादी सती भी कहते हैं।
इनके पति का नाम तनधनदास अग्रवाल था।
झुन्झुनुं में इनका मुख्य मंदिर बना हुआ हैं।
भाद्रपद अमावस्या (सतिया अमावस्या) को इनका मेला भरता हैं।
आवरी माता
निकुम्भ (चित्तौडगढ़) में इनका मुख्य मंदिर हैं।
यहां लकवाग्रस्त लोगों का इलाज किया जाता हैं।
महामाया माता
मावली (उयपुर) में इनका मंदिर हैं।
शिशु रक्षक लोकदेवी हैं।
भदाणा माता
मुख्य मंदिर - कोटा
यहां मूठ लगे व्यक्ति का इलाज किया जाता हैं।
तन्नौट माता
इनका मुख्य मंदिर तन्नौट (जैसलमेर) में हैं।
इन्हें 'थार की वैष्णोदेवी' कहते हें।
BSF के जवान इनकी पूजा करते हैं।
इन्हें 'रूमाल की देवी' भी कहते हैं।
ब्राहृणी माता
इनका मुख्य मंदिर सोरसन (बारां) में हैं।
यहां देवी की पीठ की पूजा की जाती हैं।
'माघ शुक्ल सप्तमी' को इनका मेला भरता हैं।
छींक माता
इनका मुख्य मंदिर जयपुर में है।
'माघ शुक्ल सप्तमी' को इनका मेला भरता हैं।
छींछ माता
इनका मुख्य मंदिर बांसवाड़ा में हैं।
ब्रह्मणी माता
मुख्य मंदिर पल्लू (हनुमानगढ़) में हैं।
कैला माता
करौली के यादव राजवंश की कुल देवी।
त्रिकुट पहाड़ी पर इनका मंदिर बना हुआ है।
चैत्र शुक्ल अष्टमी को लक्खी मेला भरता हैं।
इनके भक्त लागुरिया गीत गाते हैं।
इन्हें अंजनी माता (हनुमान जी की मां) या भगवान श्रीकृष्ण की बहन का अवतार मानते है।
इनके मंदिर के सामने बोहरा भक्त की छतरी बनी हुई है, जहां तांत्रिक विद्या से बच्चों का इलाज किया जाता हैं।
आईमाता
ये सीरवी जाति की कुलदेवी है।
इनका मुख्य मंदिर बिलाड़ा (जोधपुर) में हैं।
इनके मंदिर की अखण्ड ज्योति से केसर टपकती हैं।
इनके मुख्य मंदिर को 'बडेर' व मंदिर को दरगाह कहते है।
आई माता रामदेवजी की शिष्या थी। अतः इन्होंनें भी दलित उद्धार व साम्प्रदायिक सौहार्द का काम किया।
सच्चियां माता
औसियां (जोधपुर) में इनका मुख्य मंदिर है।
ये ओसवालों की कुलदेवी है।
यह मंदिर गुर्जर प्रतिहार शासकों के समय बनाया गया था, जो महामारू शैली में निर्मित हैं।
सकराय माता
खण्डेवालों की कुल देवी तथा चौहानों की ईष्ट देवी।
मुख्य मंदिर- उदयपुरवाटी (झुंझुनू)
अकाल के समय शाक - सब्जियां उत्पन्न की थी, इसलिए इन्हें शाकम्भरी माता भी कहते हैं।
अन्य मंदिर सांभर व सहारनपुर (UP) में भी हैं।
स्वांगिया माता
जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी।
जैसलमेर के राज चिन्ह में शगुन चिड़ी के हाथ में मुड़ा हुआ माला (स्वांग) हैं, इसीलिए शगुन चिड़ी को स्वांगिया माता का प्रतीक माना जाता हैं।
इनका मुख्य मंदिर भादरिया (जैसलमेर) में बना हुआ है।
यहां पर विश्व का सबसे बड़ा भूमिगत पुस्तकालय हैं।
मुख्य मंदिर - पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के लासवेला गांव में बना हैं।
अन्य मंदिर - लोद्रवा (जैसलमेर) व नारलाई (पाली)
आवड माता
भाटियों की ईष्ट देवी।
ये भी स्वांगिया माता का ही एक अवतार हैं।
इनका एक अन्य नाम तेमडेराय भी मिलता हैं, जिनकी करणी माता भी पूजा करती थी।
मुख्य मंदिर - जैसलमेर
नारायणी माता
मुख्य मंदिर - अलवर
नाई जाति के लोग इन्हें अपनी कुल देवी मानते हैं।
मीणा जाति के लोग भी इनकी पूजा करते हैैं।
जिलाड़ी माता
मुख्य मंदिर - बहरोड़ (अलवर) में।
गुर्जर जाति के लोग इनकी पूजा करते हैं।
चामुण्डा माता
मुख्य मंदिर - जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में बना हुआ हैं।
30 सितम्बर 2008 ई. को पहले नवरात्रा के दिन मची भगदड़ में कई लोग मारे गए, इसे मेहरानगढ़ दुखान्तिका कहते हैं। इसकी जांच के लिए जसराज चौप॑डा आयोग की स्थापना की गयी।
आमजा माता
मुख्य मंदिर - रीछंडा (उदयपुर) में।
भील जाति के लोग इन्हें अपनी इष्ट देवी मानते हैं।
अम्बिका माता
मुख्य मंदिर - जगत (उदयपुर) में।
इस मंदिर को 'मेवाड का खजुराहो' कहते हैं।
सुंधा माता
मुख्य मंदिर - भीनमाल (जालौर)
राजस्थान का पहला रोप-वे बनाया गया हैं।
यहां भालू अभ्यारण्य स्थापित किया जा रहा हैं।
ज्वाला माता
मुख्य मंदिर - जोबनेर (जयपुर)
खंगारोतो की ईष्ट देवी।
नकटी माता
जयपुर जिले में जयभवानीपुरा में मुख्य मंदिर।
दधीमति माता
मुख्य मंदिर - गोठ मांगलोद (नागौर)
दाधीच ब्राह्मणों की कुल देवी।
लटियाल माता
कल्ला ब्राह्मणों की कुलदेवी।
मुख्य मंदिर - फलौदी (जोधपुर)
इन्हें खेजड बेरी रायभवानी भी कहते है।
मरकण्डी माता - नीमाज (पाली)
कठेश्वरी माता - आदिवासियों की कुलदेवी।
रानाबाई
हरनावा (नागौर)
मेला - भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी
एकमात्र महिला संत जो कुआरी सती हुयी।
माता रानी भटियानी
जसोल (बाड़मेर)
मेला- भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी
वाकल माता - विरात्रा (बाड़मेर)
अधरदेवी/अर्बुदा देवी - माउण्ट आबू
कुलदेवी/इष्ट देवी | |
बीकानेर के राठौड़ो की इष्ट देवी | |
चौहानों की ईष्ट देवी | |
चौहानों एंव बिस्सा ब्राहणों की कुलदेवी | |
लुहार जाति की ईष्ट देवी | |
करौली के यादव राजवंश की कुल देवी | |
सीरवी जाति की कुलदेवी | |
ओसवालों की कुलदेवी | |
जैसलमेर के भाटी राजवंश की कुलदेवी | |
नाई जाति की कुलदेवी | |
भील जाति की ईष्ट देवी | |
आदिवासियों की कुलदेवी | |
दाधीच ब्राह्मणों की कुल देवी | |
कल्ला ब्राह्मणों की कुलदेवी | |
खण्डेलवालों की कुलदेवी तथा चौहानों की ईष्ट देवी | |
प्रश्न.राजस्थान में लोक देवता और लोक देवियों का महत्व बताइए ?
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