एफडीआई और एफपीआई में अंतर
अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए सरकार विभिन्न प्रयास करती है। जैसे - निवेश को बढ़ाना, हेलीकॉप्टर मनी का प्रयोग, यूनिवर्सल बेसिक इनकम का प्रयोग (यूबीआई)वर्तमान में कोविड-19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था संकट में है। अतः सरकार अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए निवेश बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है, क्योंकि बढ़े हुए निवेश से उत्पादन बढ़ता है जिससे कर्मचारियों को वेतन अधिक मिलता है। अतः आय बढ़ने के कारण खर्च व मांग में भी वृद्धि होती है।
विदेशी निवेश क्या है ?
जब किसी देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी नागरिकों अथवा कंपनियों द्वारा निवेश किया जाता है, तो इसे विदेशी निवेश कहते है।
विदेशी निवेश के विकास के चरण
चीन में 1970 के दशक में वैश्विक आर्थिक सुधार लागू किए गए जबकि भारत में 1991 से वैश्विक आर्थिक सुधार लागू किए गए। (विदेशी निवेश को आकर्षित किया गया)वैश्विक आर्थिक सुधारों के अंतर्गत वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण को शामिल किया जाता है।
वैश्वीकरण - पूरे विश्व एक बाजार बनाना।
उदारीकरण - व्यापार से संबंधित नियमों एवं नीतियों में लचीलापन।
निजीकरण - निजी क्षेत्र को बढ़ावा देना।
• शुरुआती दौर में उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में विदेशी निवेश को अनुमति दी गई।
• इसके बाद अन्य क्षेत्रों में भी विदेशी निवेश को अनुमति दी गई परंतु व्यापार में भारतीय साझेदार होना अनिवार्य रखा गया। (भारतीय ब्रांड)
• बाद में विदेशी निवेशकों को अपने ब्रांड का नाम उपयोग करने की छूट दी गई।
• लाभांश संतुलन में छूट दी गई।
लाभांश - कंपनी द्वारा अपने अंशधारियों (मालिकों) को लाभ में दिया जाने वाला हिस्सा लाभांश कहलाता है।
लाभांश संतुलन का नियम - इस नियम के अनुसार निर्यात में योगदान के अनुपात में विदेशी मालिकों को लाभांश में हिस्सा दिया जाता था।
• क्षेत्रीय सीमा (Sectoral cap) को कम किया गया।
चित्र सीमा के तहत किसी क्षेत्र विशेष की कंपनी (खाद्य कंपनी) में एक निर्धारित सीमा तक ही विदेशी निवेश की अनुमति थी।
• सरकार द्वारा कई क्षेत्रों में अधिकतम 100% विदेशी निवेश की अनुमति दी गई।
• विदेशी निवेश से संबंधित प्रशासनिक सुधार किए गए।
विदेशी निवेश के प्रकार
विदेशी निवेश दो प्रकार का होता है -1. फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई)
2. फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट (एफपीआई)
एफडीआई में सीधे कंपनी में निवेश किया जाता है जबकि एफपीआई में शेयर बाजार के माध्यम से निवेश किया जाता है।
एफडीआई में निवेशक को कंपनी में प्रबंध एवं नियंत्रण के अधिकार दिए जाते हैं जबकि एफपीआई में ऐसे अधिकार नहीं दिए जाते हैं निवेशक केवल अंशों का व्यापार करता है। अतः एफपीआई में निवेशक लाभ को जल्द से जल्द अपने देश में लेे जाते है जिस कारण इसेे चलायमान मुद्रा (Hot Money) कहते है।
एफडीआई में निवेश दीर्घकालिक जबकि एफपीआई में अल्पकालिक होता है।
कोई भी विदेशी निवेशक एफपीआई के अंतर्गत कंपनी की कुल शेयर पूंजी के 10% से अधिक निवेश नहीं कर सकता।
एफडीआई के प्रकार
एफडीआई दो प्रकार का होता है -A. ग्रीन फील्ड एफडीआई
B. ब्राउन फील्ड एफडीआई
A. ग्रीन फील्ड एफडीआई
विदेशी निवेशक द्वारा नए सिरे से व्यवसाय शुरू करना। जैसे - HUTCH कंपनी द्वारा भारत में व्यवसाय
B. ब्राउन फील्ड एफडीआई
विदेशी निवेशक द्वारा पहले से विद्यमान कंपनी में निवेश करना। जैसे - हाल ही फेसबुक ने रिलायंस जिओ में 9.99% का निवेश किया है। (मई 2020)
एफडीआई को अनुमति
एफडीआई को अनुमति के लिए भारत में दो मार्गों का प्रयोग किया जाता है।1. ऑटोमेटिक रूट
2. अप्रूवल रूट
1. ऑटोमेटिक रूट - इसके अंतर्गत विदेशी निवेशक को निवेश करने से पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है। परंतु 30 दिन के अंदर निवेश की सूचना आरबीआई को देना अनिवार्य है। आरबीआई का मुख्यालय मुंबई में होने के कारण इसे बॉम्बे रूट भी कहा जाता है।
2. अप्रूवल रूट - इसके अंतर्गत निवेश के लिए सरकार की पूर्वानुमति आवश्यक है। इसे दिल्ली रूट भी कहा जाता है।
विदेशी निवेश को अनुमति देने के लिए 1991 में विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड (FIPB) की स्थापना की गई।
2017 में एफआईपीबी को समाप्त कर दिया गया।
वर्तमान में आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा विदेशी निवेश की अनुमति दी जाती है।
अपडेट एवं सुधार के लिए
www.devedunotes.com देखते रहे।
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