महाराष्ट्र का संवैधानिक संकट
संपूर्ण घटनाक्रम 28 नवम्बर 2019 से शुरू हुआ, जब शिवसेना, कांग्रेस तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गठबंधन अर्थात 'महा विकास अघाड़ी' ने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद के लिए चुन लिया, जो कि न तो विधानसभा और न ही विधान परिषद के सदस्य थे।
संविधान का अनुच्छेद-164 (4) के अनुसार ऐसा कोई भी व्यक्ति, जो दोनो में से किसी भी सदन का सदस्य नही है (अर्थात विधान मंडल का सदस्य नही है), अधिकतम लगातार 6 महीने के लिए राज्य में मंत्री या मुख्यमंत्री बन सकता है। इस दौरान उसे विधानमंडल की सदस्यता लेनी होगी।
सदस्यता नहीं ले पाता है, तो उस व्यक्ति को 6 माह की समय सीमा समाप्त होने पर पद छोड़ना होगा या 6 माह पूरे होते ही उसे पद से हटा हुआ माना जाएगा ।
सदस्यता नहीं ले पाता है, तो उस व्यक्ति को 6 माह की समय सीमा समाप्त होने पर पद छोड़ना होगा या 6 माह पूरे होते ही उसे पद से हटा हुआ माना जाएगा ।
अब महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के 6 माह 28 मई 2020 को पूरे हो रहे है। पद पर बनेेेेेे रहने के लिए उन्हें 28 मई सेे पहले-2 किसी एक सदन की सदस्यता लेनी पड़ेगी।
द्विसदनीय व्यवस्था क्या है ?
केंद्र में द्विसदनीय व्यवस्था (राज्यसभा, लोकसभा) की तर्ज पर वर्तमान में भारत के 6 राज्यों में द्विसदनीय विधानमंडल है।
1. उत्तर प्रदेश 2. बिहार 3. महाराष्ट्र
4. कर्नाटक 5. आंध्र प्रदेश 6. तेलंगाना
4. कर्नाटक 5. आंध्र प्रदेश 6. तेलंगाना
द्विसदनीय विधानमंडल में –
उच्च सदन - विधान परिषद निम्न सदन - विधानसभा
अनुच्छेद 169 विधान परिषद का गठन
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संविधान के अनुच्छेद-169 में विधान परिषद के सृजन की प्रक्रिया उल्लेखित है।
इसके लिए सम्बन्धित राज्य की विधानसभा द्वारा इस सम्बंध में कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित व मत देने वाले सदस्यों की संख्या के कम से कम दो-तिहाई ( 2/3) बहुमत द्वारा प्रस्ताव पारित कर संसद में भेजा जाता है।
फिर विधान परिषद का सृजन करना या नही करना संसद पर निर्भर करता है। संसद एक कानून बनाकर विधान परिषद का सृजन करती हैै।
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अनुच्छेद 171 विधानपरिषद की संरचना
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कुल सदस्य - सम्बन्धित राज्य की विधानसभा के एक-तिहाई (1/3) से अधिक नही और किसी भी स्थिति में 40 से कम नही हो सकते है।
विधान परिषद की कुल सदस्य संख्या का –
1/3 भाग - राज्य के विधानसभा सदस्यों द्वारा निर्वाचित। (विधायकों)
1/3 भाग - नगर पालिका व जिला बोर्डो से बने निर्वाचक मण्डल द्वारा
1/12 भाग - राज्य में निवास करने वाले ऐसे व्यक्तियों द्वारा निर्वाचित किया जाता है, जिन्हें स्नातक किए हुए कम से कम 3 वर्ष हो चुके हो। (Registered Graduated)
1/12 भाग - राज्य के शिक्षकों द्वारा, जो राज्य में माध्यमिक विद्यालयों में कम से कम 3 वर्ष से पढ़ाने के काम में लगे हुए है।
1/6 भाग (यानि शेष भाग) - राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं, जिन्हें कला, साहित्य , विज्ञान, समाज सेवा तथा सहकारी आंदोलन के सम्बंध में विशेष ज्ञान या व्यवहारिक अनुभव हो। (Nomination)
इस प्रकार विधान परिषद के 5/6 सदस्यों का अप्रत्यक्ष निर्वाचन जबकि 1/6 का राज्यपाल द्वारा मनोनयन किया जाता है।
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उद्धव ठाकरे के सामने विधानमंडल की सदस्यता लेने के रास्ते और उन में निम्न मुश्किलें है -
पहला रास्ता |
25 मार्च 2020 तक विधान परिषद में 9 सीट खाली पड़ी हुई थी और इन सीटों पर 26 मार्च को चुनाव होने वाले थे।
उद्धव ठाकरे यहां से निर्वाचित होकर आगे भी मुख्यमंत्री बने रह सकते थे। परंतु 25 मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कोरोनावायरस महामारी के चलते देश में 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा कर दी गयी। यह घोषणा होते ही केंद्रीय चुनाव आयोग ने 26 मार्च की चुनाव तिथि को अनिश्चित काल के लिए आगे बढ़ा दिया और उद्धव ठाकरेे के लिए यह रास्ता बंद हो गया।
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दूसरा रास्ता |
राज्य की मंत्रिपरिषद की सलाह पर राज्यपाल को, विधान परिषद में 1/6 सदस्यों को मनोनीत करने की शक्ति प्राप्त है।
वर्तमान में महाराष्ट्र विधान परिषद की मनोनीत सीटों में 2 सीट रिक्त है क्योंकि दो सदस्य राहुल नवर्कर तथा रामाराव वाजकुटे , जिन्हें एनसीपी ने मनोनीत करवाया था, ने 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी में शामिल होने के लिए विधान परिषद से इस्तीफा दे दिया था।
इन दोनों का कार्यकाल 6 जून 2020 को समाप्त हो रहा था।
इन दो सीटों में से किसी एक पर उद्धव ठाकरे को मनोनीत करने के पक्ष में कैबिनेट की बैठक हुई और 11 अप्रेल को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी (बीजेपी के राजनीतिज्ञ है) को इसकी सिफारिश की गई।
राज्यपाल ने सिफारिश को अनसुना कर दिया। तब महाराष्ट्र सरकार बॉम्बे हाईकोर्ट में चली गई परंतु हाईकोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।
गौरतलब है कि राज्यपाल कैबिनेट की सिफारिश को मानने के लिए बाध्य होता है।
राज्यपाल के द्वारा मनोनीत नहीं किए जाने के प्रमुख दो कारण हो सकते हैं -
पहला कारण
राज्यपाल का मना करने का पहला कारण यह भी हो सकता है कि उद्धव ठाकरे मनोनीत करने के 5 विषयों में से किसी भी विषय से संबंधित नहीं हैं।
उपाय - 1961 का उत्तर प्रदेश का मामला
1961 में चन्द्रभान गुप्ता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने ,जो वहां की विधान परिषद के मनोनीत सदस्य थे। मामले के सुप्रीम कोर्ट में जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि राजनीति विषय को समाजसेवा विषय मे शामिल किया जा सकता है।
अतः राज्यपाल द्वारा उद्धव ठाकरे को मनोनीत किया जा सकता है।
दूसरा कारण
जन प्रतिनिधि अधिनियम -1951 की धारा 151-A
इस धारा के अनुसार जब रिक्त पद के सम्बंध में सदस्य के कार्यकाल की शेष अवधि एक वर्ष से कम हो तो इस स्थिति में पद का नामांकन नहीं किया जा सकता है।
यहां ठाकरे के लिए समस्या यह है कि इस्तीफा देने वाले दोनों व्यक्तियों का कार्यकाल 6 जून 2020 को ही पूरा हो रहा है।
इस अधिनियम का उल्लंघन गैर-कानूनी है। परंतु कुछ संविधानविदों के अनुसार यह प्रावधान केवल निर्वाचित सदस्यों पर ही लागू होता है, मनोनीत पर नहीं। (विवादास्पद स्थिति)
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तीसरा रास्ता |
एक दिन पूर्व इस्तीफा देकर दूसरे दिन वापस मुख्यमंत्री पद की शपथ लेना।
परंतु ठाकरे के लिए इस रास्ते में भी मुश्किलें है -
तेज प्रकाश सिंह मामला
1995 में पंजाब सरकार द्वारा तेज प्रकाश सिंह को मंत्री बनाया गया। जो कि विधानसभा के सदस्य नही थे।
इन्होंने मार्च 1996 में 6 माह पूरे होने से एक दिन पहले त्याग पत्र दिया और दूसरे दिन फिर से मंत्री पद की शपथ ले ली।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट ने 2001 में अपने निर्णय में इस तरीके से बार - 2 पद की शपथ लेने को असंवैधानिक, अवैध तथा अलोकतांत्रिक घोषित किया। हालांकि इस फैसले का असर तेज प्रकाश सिंह पर नहीं पड़ा क्योंकि वह पहले ही अपना कार्यकाल पूरा कर चुके थे।
परंतु उद्धव ठाकरे पर इस फैसले का असर पड़ना निश्चित है।
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चौथा रास्ता |
27 मई को पद से त्याग पत्र देकर अपने किसी चहेते (जैसे - पुुुुत्र आदित्य ठाकरे) को मुख्यमंत्री पद की दावेदारी सौंप दे।
बाद में जब भी विधान परिषद के चुनाव होंगे तब निर्वाचित होकर पुनः मुख्यमंत्री बन जाए।
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14 मई 2020 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे सहित 9 लोग विधान परिषद के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए हैं।
इस प्रकार महाराष्ट्र का संवैधानिक संकट समाप्त हो गया है।
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