राज्य निर्वाचन आयोग
State Election Commission
राज्य निर्वाचन आयोग का मुख्य कार्य पंचायतीराज संस्थाओं का चुनाव करवाना है।
संविधान के अनुच्छेद 243 (K) व 243 (ZA) राज्य निर्वाचन आयोग से संबंधित है।
राजस्थान में राज्य निर्वाचन आयोग की स्थापना 1 जुलाई 1994 में की गई।
यह एक सदस्यीय निकाय है। इसके प्रमुख को राज्य निर्वाचन आयुक्त कहा जाता है।
वर्तमान (2020) में राज्य निर्वाचन आयुक्त प्रेमसिंह मेहरा है।
राज्य निर्वाचन आयुक्त - प्रेमसिंह मेहरा
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सचिव (IAS) वर्तमान में - श्याम सिंह राजपुरोहित
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उपसचिव (RAS) वर्तमान में - अशोक जैन
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जिला निर्वाचन अधिकारी व पंजीकरण अधिकारी (कलेक्टर)
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रिटर्निंग ऑफिसर
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बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर)
योग्यता - राजस्थान में प्रधान सचिव या उसके समकक्ष पद पर रहा हुआ कोई भी आईएएस अधिकारी राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया जा सकता है।
अथवा कोई भी व्यक्ति जिसका वेतनमान प्रधान सचिव के बराबर रहा हो उसे भी राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया जा सकता है
नियुक्ति - राज्यपाल द्वारा
पदावधि - 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु में से जो भी पहले हो।
हटाने की प्रक्रिया
राज्य निर्वाचन आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान होती है। [महाभियोग अनुच्छेद 124 (4)]
हटाने का आधार - असमर्थता, कदाचार, भ्रष्टाचार
लोकसभा के 100 सदस्य या राज्यसभा के 50 सदस्य ऐसा प्रस्ताव लेकर आएंगे कि उक्त राज्य के राज्य निर्वाचन आयुक्त को हटाया जाए।
जिस सदन में प्रस्ताव लाया जाता है उसका अध्यक्ष या सभापति प्रस्ताव को स्वीकार करता है, तो महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
इसके बाद एक 3 सदस्यीय जांच समिति का गठन किया जाता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश या कोई भी न्यायाधीश, हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश या कोई भी न्यायाधीश, विधि विशेषज्ञ शामिल होता है।
समिति की जांच में दोषी पाए जाने पर सदन का अध्यक्ष या सभापति मतदान करवाता है। बहुमत या सदन में उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई सदस्य प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करते हैं तो उस सदन से प्रस्ताव पारित करके दूसरे सदन को भेजा जाता है। दूसरे सदन में भी यही प्रक्रिया अपनाई जाती है।
दोनों सदनों द्वारा प्रस्ताव पारित करने पर राज्य निर्वाचन आयुक्त को पद से हटाया जा सकता है।
स्वायत्तता व स्वतंत्रता
1. यह एक संवैधानिक संस्था है, जिसका संबंध अनुच्छेद 243 (K) व 243 (ZA) से है।
2. राज्य निर्वाचन आयुक्त को केवल महाभियोग प्रक्रिया द्वारा ही हटाया जा सकता है
3. राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के बाद राज्य सरकार इसके पद को लेकर कोई भी अलाभकारी परिवर्तन नहीं करती है।
4. राज्य निर्वाचन आयुक्त को वेतन-भत्ते संचित निधि से दिए जाते हैं
2. मतदाता सूचियों का नवीनीकरण या आधुनिकीकरण।
3. चुनाव चिह्नों का आवंटन करना।
4. आचार संहिता को लागू करना।
5. निर्वाचन करवाना।
6. वार्षिक प्रतिवेदन या प्रकाशन।
7. निर्वाचन सुधार। (स्वीप कार्यक्रम)
8. मतदाताओं के लिए विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध करवाना।
(दिव्यांगों व महिलाओं के लिए स्पेशल बूथ)
2. कर्मचारियों की कमी है।
3. केंद्रीय निर्वाचन आयोग की तुलना में इसे कम शक्तियां दी गई है।
4. कार्यभार अधिक है, जबकि यह एक सदस्यीय निकाय है।
सुझाव - इसे बहुसदस्यीय निकाय बनाया जाए।
संविधान के अनुच्छेद 243 (K) व 243 (ZA) राज्य निर्वाचन आयोग से संबंधित है।
राजस्थान में राज्य निर्वाचन आयोग की स्थापना 1 जुलाई 1994 में की गई।
संगठन व संरचना
यह एक सदस्यीय निकाय है। इसके प्रमुख को राज्य निर्वाचन आयुक्त कहा जाता है।
वर्तमान (2020) में राज्य निर्वाचन आयुक्त प्रेमसिंह मेहरा है।
राज्य निर्वाचन आयुक्त - प्रेमसिंह मेहरा
⬇️
सचिव (IAS) वर्तमान में - श्याम सिंह राजपुरोहित
⬇️
उपसचिव (RAS) वर्तमान में - अशोक जैन
⬇️
जिला निर्वाचन अधिकारी व पंजीकरण अधिकारी (कलेक्टर)
⬇️
रिटर्निंग ऑफिसर
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बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर)
योग्यता - राजस्थान में प्रधान सचिव या उसके समकक्ष पद पर रहा हुआ कोई भी आईएएस अधिकारी राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया जा सकता है।
अथवा कोई भी व्यक्ति जिसका वेतनमान प्रधान सचिव के बराबर रहा हो उसे भी राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाया जा सकता है
नियुक्ति - राज्यपाल द्वारा
पदावधि - 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु में से जो भी पहले हो।
हटाने की प्रक्रिया
राज्य निर्वाचन आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान होती है। [महाभियोग अनुच्छेद 124 (4)]
हटाने का आधार - असमर्थता, कदाचार, भ्रष्टाचार
लोकसभा के 100 सदस्य या राज्यसभा के 50 सदस्य ऐसा प्रस्ताव लेकर आएंगे कि उक्त राज्य के राज्य निर्वाचन आयुक्त को हटाया जाए।
जिस सदन में प्रस्ताव लाया जाता है उसका अध्यक्ष या सभापति प्रस्ताव को स्वीकार करता है, तो महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
इसके बाद एक 3 सदस्यीय जांच समिति का गठन किया जाता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश या कोई भी न्यायाधीश, हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश या कोई भी न्यायाधीश, विधि विशेषज्ञ शामिल होता है।
समिति की जांच में दोषी पाए जाने पर सदन का अध्यक्ष या सभापति मतदान करवाता है। बहुमत या सदन में उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई सदस्य प्रस्ताव के पक्ष में मतदान करते हैं तो उस सदन से प्रस्ताव पारित करके दूसरे सदन को भेजा जाता है। दूसरे सदन में भी यही प्रक्रिया अपनाई जाती है।
दोनों सदनों द्वारा प्रस्ताव पारित करने पर राज्य निर्वाचन आयुक्त को पद से हटाया जा सकता है।
स्वायत्तता व स्वतंत्रता
1. यह एक संवैधानिक संस्था है, जिसका संबंध अनुच्छेद 243 (K) व 243 (ZA) से है।
2. राज्य निर्वाचन आयुक्त को केवल महाभियोग प्रक्रिया द्वारा ही हटाया जा सकता है
3. राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के बाद राज्य सरकार इसके पद को लेकर कोई भी अलाभकारी परिवर्तन नहीं करती है।
4. राज्य निर्वाचन आयुक्त को वेतन-भत्ते संचित निधि से दिए जाते हैं
राज्य निर्वाचन आयोग के कार्य
1. चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन व आरक्षण संबंधी कार्य ।2. मतदाता सूचियों का नवीनीकरण या आधुनिकीकरण।
3. चुनाव चिह्नों का आवंटन करना।
4. आचार संहिता को लागू करना।
5. निर्वाचन करवाना।
6. वार्षिक प्रतिवेदन या प्रकाशन।
7. निर्वाचन सुधार। (स्वीप कार्यक्रम)
8. मतदाताओं के लिए विभिन्न सुविधाएं उपलब्ध करवाना।
(दिव्यांगों व महिलाओं के लिए स्पेशल बूथ)
राज्य निर्वाचन आयोग की आलोचना/सीमाएं/कमियां
1. इसके पास वित्तीय संसाधनों की कमी है।2. कर्मचारियों की कमी है।
3. केंद्रीय निर्वाचन आयोग की तुलना में इसे कम शक्तियां दी गई है।
4. कार्यभार अधिक है, जबकि यह एक सदस्यीय निकाय है।
सुझाव - इसे बहुसदस्यीय निकाय बनाया जाए।
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